Streedesh Film: प्राचीन कश्मीर का अकल्पनीय सच दिखाती है फिल्म ‘स्त्रीदेश’

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

हाल ही में फिल्म ‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) देखने का मौका बना। एक घंटे की इस डॉक्यूमेंटरी फिल्म में कश्मीर का ऐसा प्राचीन इतिहास दिखाया है जो हैरान कर देता है। असल में बरसों से हम कश्मीर का जो इतिहास सुनते,पढ़ते या देखते आए हैं, उस इतिहास में वह सब नहीं है जो ‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) में है। इसलिए जब हम वो अकल्पनीय सच देखते हैं तो चौंकना स्वाभाविक है।

कश्मीर को लेकर यह तो पढ़ा कि धरती के इस स्वर्ग को कश्यप ऋषि ने बसाया था। लेकिन मुस्लिम आक्रांताओं ने कश्मीर के साथ जो किया उससे कश्मीर का गौरवशाली इतिहास धूमिल हो गया। लेकिन ‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) फिल्म बताती है कि पिछले 5 हज़ार बरसों में यहाँ ऐसी कई रानियाँ-वीरांगनाएँ हुईं जिन्होंने कश्मीर में हजारों साल पहले महिला सशक्तिकरण की ऐसी नींव रख दी थी कि तब दुनिया इस कश्मीर को विस्मय दृष्टि से देखती थी। इन वीरांगनाओं ने कश्मीर की रक्षा और सुरक्षा के लिए अपने-अपने ढंग से कश्मीर की बागडोर संभाली। इसके लिए उन्हें चाहे युद्द करना पड़ा या अपना बलिदान देना पड़ा।

‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) में ऐसी ही 13 वीरांगनाओं की वीर गाथा दिखाई है, जिन्होंने कश्मीर की शान बनाए रखने के लिए सभी संभव प्रयास किए। ‘इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ द्वारा निर्मित और आशीष कौल द्वारा निर्देशित ‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) की कहानी 3 हजार ईसा पूर्व की रानी यशोवती से आरंभ होती है। यह कथा प्रचलित है कि यशोवती के राज्याभिषेक के समय भगवान श्रीकृष्ण ने कश्मीर के लिए कहा था कि आज से कश्मीर को स्त्री देश कहा जाएगा।

आशीष कौल (Ashish Kaul) बताते हैं-‘’कभी स्त्रीदेश (Streedesh) कहे जाने वाले कश्मीर के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए शेफाली चतुर्वेदी और मैंने लंबे समय तक गहन शोध किया। तब जाकर ऐसी कुछ स्त्रियाँ मिलीं। इनमें से हमने 13 ऐतिहासिक और अविस्मरणीय वीरांगनाओं को चुना। उसके बाद कश्मीर जाकर कई विषम परिस्थितियों में हमने फिल्म की शूटिंग की। यह काम पहली बार हुआ है। लेकिन अब कश्मीर के अनुपम इतिहास को हमने सभी के सामने रख दिया है।‘’

फिल्म में ईसा पूर्व की ईशान देवी और रानी वाक्पुष्टा भी हैं। तो 902 ईसवी से 1389 ईसवी के दौरान रहीं सुगंधा देवी, रानी दिद्दा, श्रीलेखा, सिल्ला, कमांडर चुड्डा, सूर्यमती, कल्हनिका, लछमा और बीबी होरा हैं। साथ ही वह रानी कोटा देवी भी जिनकी मृत्यु के साथ ही कश्मीर में हिन्दू राज्य का अंत हो गया था।

असल में कश्मीर का यह इतिहास इतना पुराना है कि दो तीन वीरांगनाओं को छोड़कर किसी के चित्र भी उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन नरेंद्र पाल सिंह के अच्छे रेखा चित्रों, डॉ यूथिका मिश्रा, डॉ सतीश गंजू, पदमश्री के एन पंडिता जैसे इतिहासकारों तथा सामाजिक सांस्कृतिक विशेषज्ञ अलका रघुवंशी के सरल सहज शब्दों और कुशल निर्देशन से उन रानियों का स्वरूप मस्तिक पटल पर उतरने लगता है।

बता दें ‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) को लेकर संस्थान अपने ‘नारी संवाद ग्रंथमाला’ के अंतर्गत एक पुस्तक भी हिन्दी और अँग्रेजी में प्रकाशित कर चुका है। कुछ माह पूर्व केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी (Meenakshi Lekhi) ने इस पुस्तक का विमोचन किया था। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts) के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी (Sachchidanand Joshi), नारी संवाद प्रकल्प की परियोजना निदेशक डॉ सुषमा जतू और आशीष कौल तथा शेफाली चतुर्वेदी भी इस मौके पर मौजूद थे।

इधर हाल ही में ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ में ‘स्त्रीदेश’ (Streedesh) फिल्म का विशेष प्रदर्शन किया गया। जिसमें आशीष कौल (Ashish Kaul) और शेफाली चतुर्वेदी सहित फिल्म से जुड़े कुछ और व्यक्ति भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम के दौरान आईजीएनसीए (Indira Gandhi National Centre for the Arts) के मीडिया केंद्र नियंत्रक अनुराग पुनेठा (Anurag Punetha) ने आशीष कौल को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित भी किया।

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