रेल परिवहन में बड़ी क्रान्ति ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’, सुख, सुविधाओं और गति से रच रही है नया इतिहास

  • प्रदीप सरदाना

    वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकर एवं समीक्षक 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 27 जून को एक साथ 5 वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाने के बाद अब देश के सभी राज्य, इस आधुनिक, सुसज्जित और तीव्र गति की गाड़ी से जुड़ गए हैं। देश में पहली वंदे भारत एक्सप्रेस 15 फरवरी 2019 को नयी दिल्ली से वाराणसी के लिए चली थी। तब से अब तक 23 वंदे भारत रेल पटरी पर दौड़ चुकी हैं। एक दिन में एक साथ 5 नयी वंदे भारत एक्सप्रेस चलने का तो यह बड़ा रिकॉर्ड है ही। साथ ही सिर्फ सवा चार साल की अवधि में,देश में सेमी हाई स्पीड 23 नयी रेल गाडियाँ चलने का भी यह अद्धभुत रिकॉर्ड है।

जब देश की पहली वंदे भारत एक्सप्रेस चली थी तो इसने सभी का मन मोह लिया था। इतनी सुंदर,आरामदायक और तीव्र गति वाली ट्रेन देख हर कोई सोचता कि वह भी इसमें यात्रा करे और इस ट्रेन की सौगात उनके राज्य को भी मिले। हालांकि पीएम मोदी ने वंदे भारत को पूरे देश से जोड़ने और जल्द से जल्द ऐसी नयी रेल चलाने की बड़ी योजना पहले ही बना ली थी। इसी कड़ी में नयी दिल्ली से कटरा जम्मू के लिए,दूसरी वंदे भारत भी उसी वर्ष 3 अक्तूबर को शुरू कर दी थी। लेकिन सन 2021 के शुरू में कोरोना महामारी ने देश-दुनिया में रफ्तार पकड़ी तो नयी वंदे भारत रेल शुरू करने की रफ्तार थम गयी।

अब जब से कोरोना से राहत मिली है,तब से नयी वंदे भारत आरंभ करने के  कार्य में आश्चर्यचकित गति आ गयी है। असल में मोदी सरकार से पहले,देश में संसद में रेल बजट के दौरान एक नयी रेल शुरू करने की घोषणा भर से ही, संसद तालियों से गूंज उठता था। इस दौरान संबन्धित क्षेत्र के सांसद रेल मंत्री को गले  लगाने और धन्यवाद देने से लेकर लड्डू बांटने तक कई जश्न मनाते थे।उसी देश में अब आए दिन जिस तरह नयी नयी वंदे भारत शुरू हो रही हैं,वह किसी ने कभी कल्पना तक नहीं की थी।

अब यदि सांसदों ने इस खुशी में रेल मंत्री को गले लगाना शुरू किया तो उनके कंधे ही जवाब दे देंगे। अब इस एक्सप्रेस के शुरू होने की रफ्तार ऐसी है कि साल 2022 में तो 5 नयी वंदे भारत चलीं। लेकिन इस बरस के पहले 6 महीने में ही 17 नयी वंदे भारत शुरू होने का अनुपम कीर्तिमान बन चुका है। देश के तीन राज्यों को छोड़कर बाकी राज्य मई में ही वंदे भारत की पहुँच में आ गए थे। लेकिन 27 जून को गोवा, बिहार और झारखंड के लिए वंदे भारत शुरू होने से देश वंदे भारत माला से जुड़ गया है।

देखा जाए देश स्वतंत्र होने के 71 बरसों बाद पिछले 4 बरसों में रेल परिवहन का इतिहास बदल गया है। साथ ही वंदे भारत ‘भारतीय रेल परिवहन’ की ऐसी  क्रान्ति है,जो स्वर्ण काल के रूप में अंकित हो रही है। अभी आगामी वर्षों में नयी वंदे भारत एक्सप्रेस शुरू करने की जो योजना है वह तो और भी आकर्षक है। सब कुछ ठीक रहा तो अप्रैल 2024 तक देश में कुल लगभग 85 वंदे भारत रेल चलने लगेंगी। जबकि पीएम मोदी का सपना देश में 400 वंदे भारत चलाने का है।जिससे देश का हर राज्य ही नहीं,हर क्षेत्र,हर छोटे–बड़े शहर वंदे भारत के स्वर से गूंज उठें।

असल में भारतीय रेल के इतिहास में वंदे भारत एक्सप्रेस स्वयं ही एक क्रान्ति है। इसका बाहरी डिजायन और रंग रूप तो अपनी ओर आकर्षित करता ही है। इसकी आंतरिक साज सज्जा और सुविधाएं तो देश में चल रही अन्य सभी रेल गाड़ियों से अद्धभुत है। बड़ी बात यह है कि इसका निर्माण देश में ही हो रहा है। चेन्नई की ‘इंटीग्रेड कोच फैक्ट्री’ इसका निर्माण कर रही है। यह देश की पहली इंजनलेस ट्रेन भी है। यह कहीं 16 बोगियों और कहीं 8 बोगियों में चल रही है। इसकी हर वैकल्पिक कोच में इस तरह की मोटर और यंत्र लगे हैं जो इंजन का काम करके दो बोगियों को खींचते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर की बहुत सी सुविधाएं वाली इस 16 डिब्बों वाली कुर्सीयान में 1128 यात्रियों के बैठने की व्यवस्था है। रेल में सफर करते हुए वायु यान का अनुभव होता है। दो श्रेणियाँ हैं एक इकॉनोमी और दूसरा एग्जीक्यूटिव। दोनों में बड़ा अंतर यह है कि एग्जीक्यूटिव  में अपनी सीट को आप अपनी सुविधा से अलग दिशा में घूमा सकते हैं।

साथ ही उसमें आगे पीछे की सीट में ज्यादा अंतर होने से पैर फैलाकर बैठने की सुविधा है। बाकी इस ट्रेन में मनोरंजन और अच्छे खान पान से लेकर आधुनिक शौचालय, वाई फाई, जीपीएस और सीट के नीचे मोबाइल चार्ज करने सहित कुछ अन्य सुविधाएं हैं। यहाँ तक दिव्यांग यात्रियों के लिए सीट के हैंडल पर ब्रेल अक्षरों में सीट नंबर भी दिये हैं। उधर ट्रेन यात्रा के दौरान बेच बीच में झटके लगने के बुरे और कष्ट दायक अनुभव वंदे भारत में नहीं होते।

वंदे भारत ने देश की कम रफ्तार वाली पुरानी सभी रेल को पीछे छोड़ आधुनिक अध्याय लिखा है। यह रेल 160 किमी प्रति घंटे की गति से दौड़ सकती है। जबकि इसकी गति 180 किमी तक की योजना है। लेकिन कुछ रुट्स पर इसकी गति कुछ कारणों से कम करनी पड़ती है। इसके गति क्षमता ऐसी है कि 160 किमी की गति पकड़ने में इसे सिर्फ 140 सेकेंड लगते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से भी ये अग्निशमन और कवच प्रणाली से युक्त हैं। तीव्र गति पर ब्रेक लगाने में भी इसकी व्यवस्था काफी बेहतर है।

मैंने स्वयं पिछले दिनों देहारादून से दिल्ली की उद्घाटन रेल में यात्रा की तो इसके अनुभव बेमिसाल रहे। हमारे साथ इस यात्रा में केंद्रीय रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव भी मौजूद थे।

अश्वनी वैष्णव जुलाई 2021 में रेल मंत्री बने थे। राजनीति में नए वैष्णव भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुशल अधिकारी रहे हैं। मोदी ने वैष्णव की पुरानी योग्यता देखते हुए उन्हें रेल मंत्रालय की बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी। मोदी चाहते थे कि देश की हाँफती–थकती रेल की पुरानी तस्वीर बदले। इस क्षेत्र में बड़े सुधार हों और यात्री सुख सुविधा और सुरक्षा के साथ कम समय में बड़ी दूरी तय कर सकें। राजनीति में नया होने के बावजूद दो बरस के इतने कम समय में भारतीय रेल का जो कायापलट उन्होंने किया है वह अकल्पनीय है।

वैष्णव ने इस रेल यात्रा के दौरान बताया कि देहरादून-आनंद विहार (दिल्ली)  वंदे भारत  एक्सप्रेस चलने से देहरादून  के साथ उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों और तीर्थ स्थलों  की यात्रा अब और सुगम तथा सुविधाजनक हो गयी है। अभी वंदे भारत से  दिल्ली से देहरादून का सफर 4 से साढ़े 4 घंटे की अवधि में पूरा हो रहा है। लेकिन राजा जी नेशनल पार्क क्षेत्र में पटरियों का नया काम होने से यह यात्रा 3 से साढ़े 3 घंटे में पूरी हो जाएगी। साथ ही वंदे भारत स्लीपर कोच और वंदे भारत मेट्रो पर भी तेजी से काम हो रहा है। इससे वंदे भारत के ये दो और संस्करण भी जल्द शुरू करने की योजना है।  रेल पटरियों का विकास, रेल मार्ग के विद्युतीकरण और कवच प्रणाली का काम भी तेजी से हो रहा है।”

वंदे भारत के प्रति लोगों का आकर्षण कितना है उस बात का बेमिसाल अनुभव किसी नयी वंदे भारत के उदघाटन और उसकी पहली यात्रा के दौरान साफ देखा जा सकता है। देहरादून से दिल्ली आते हुए तो मुझे कमाल के अनुभव हुए। देहारादून रेलवे स्टेशन पर इस पल के साक्षी बनने के लिए हजारों लोग जमा थे। पूरे शहर में जश्न का माहौल था। वंदे भारत जिस स्टेशन से गुजरती वहाँ दोनों ओर के प्लेटफॉर्म खचाखच भरे थे। यहाँ तक ट्रेन के गुजरने के दौरान जहां भी कुछ आबादी आती वहाँ कितने ही लोग वंदे भारत के अजूबे को देखने के लिए कब से लालायित खड़े थे। स्टेशन पर तो कितने ही यात्री इस ट्रेन में चढ़कर चारों ओर इस तरह अचरज भरी नज़र घूमा रहे थे जैसे कोई उड़न तश्तरी जमीं पर उतर आयी हो। जिन्हें इस ट्रेन में की प्रथम यात्रा करने का पास मिला वे तो अपने भाग्य पर खूब इतरा रहे थे।

यह देख 170 बरस पुराने उन लम्हों का अहसास होने लगा जो हमने किताबों में पढ़े या चित्रों में देखे। देश की पहली यात्री गाड़ी को देखने के लिए मुंबई से ठाणे के लगभग 35 किमी की दूरी पर जगह जगह लोगों की भारी भीड़ जमा थी। हर कोई आँखें मल मल कर से वह दृश्य देख रहा था। यहाँ तक जब वह पहली रेल चली तो उसे 21 तोपों की सलामी दी गयी।

अब वंदे भारत के चलने पर तोपों की सलामी चाहे ना हो लेकिन भीड़ वैसे हे उमड़ रही है। ढ़ोल नगाड़ों की आवाज़ खूब गूंज रही है। निश्चय ही वंदे भारत से हम रेल परिवहन के नए युग में पहुँच गए हैं।

 

 

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