Happy Birthday Anandji: 39 सिल्वर जुबली और 17 गोल्डन जुबली फिल्मों के संगीतकार आनंद जी हुए 91 साल के

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

फिल्म संगीत की दुनिया में कल्याणजी आनंदजी (Kalyanji Anandji) की जोड़ी ने जो धमाल किया है वह किसी से छिपा नहीं है। चाहे पिछले करीब 26 बरसों से इस जोड़ी ने किसी फिल्म के लिए कोई धुन नहीं बनाई लेकिन आज भी इनके संगीत का जादू सभी के सिर चढ़ कर बोलता है। कोई भी संगीत समारोह इनके गीतों के बिना पूरा नहीं होता। कल्याणजी आनंदजी (Kalyanji Anandji) की सफलता और लोकप्रियता की बानगी इस बात से भी मिलती है कि करीब 250 फिल्मों में संगीत देने वाली इस जोड़ी की 39 फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई तो 17 फिल्मों ने गोल्डन जुबली।

साथ ही वह हिन्दी सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले पहले संगीतकार भी हैं। इन्हें यह पुरस्कार फिल्म ‘सरस्वती चंदर’ फिल्म के लिए मिला था, जिसके ‘फूल तुम्हें भेजा है खत में’ जैसे गीतों ने धूम मचा दी थी।

घर पर ही मनायेंगे आज अपना जन्म दिन

दो मार्च 1933 को गुजरात के कच्छ में जन्मे आनंदजी आज 91 बरस के हो गए हैं। पिछले वर्ष मुंबई के वर्ली में उनके यहाँ एक शानदार पार्टी का आयोजन हुआ था। हालांकि इस वर्ष आनंदजी घर पर ही जन्म दिन मनायेंगे।

फिल्मों में गरबा की शुरुआत भी इन्हीं की गीत से हुई

यहाँ यह भी बता दें कि फिल्मों में गरबा की शुरुआत भी ‘सरस्वती चंदर’ में इन्हीं के सुपर हिट गीत ‘मैं तो भूल चली बाबुल का देश’ से हुई थी। इन्हें और भी कई पुरस्कार मिले जिनमें देश के सर्वोच्च चौथे नागरिक सम्मान पदमश्री के साथ फिल्म ‘कोरा कागज’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी है।

 

कल्याणजी आनंदजी की जोड़ी तब टूट गयी थी जब कल्याणजी का अगस्त 2000 में निधन हो गया। उसके बाद इनके छोटे भाई आनंदजी अब फिल्मों में संगीत तो नहीं दे रहे।

लेकिन कुछ समय पहले मुंबई में आनंदजी के घर में उनसे एक यादगार मुलाक़ात हुयी तो देखा फिल्म संगीत की विभिन्न गतिविधियों के साथ सामाजिक कार्यों में भी वह आज भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। हमेशा खुश रहते है। सोनी चैनल के लोकप्रिय शो ‘इंडियन आइडल’ में भी आनंदजी अपनी पत्नी के साथ आते रहते हैं।

कल्याणजी आनंदजी के एक जैन व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके पिता की मुंबई के गिरिगांव में परचून की दुकान थी। जहां से कई बड़े सितारे राशन लेते थे। इसलिए फिल्मों से इनका प्रेम बचपन में ही हो गया था। ये दोनों भाई संगीतकार बनने का सपना देखते थे। इसकी शुरुआत पहले बड़े भाई कल्याणजी ने की जो 1954 में संगीतकार हेमंत कुमार के सहायक बन गए। हेमंत दा तब प्रदीप कुमार, वैजयंतीमाला की फिल्म ‘नागिन’ का संगीत दे रहे थे।

कल्याणजी ने इस फिल्म के लिए लंदन से लाये एक नए संगीत यंत्र क्ले-वायलिन से सपेरे वाली ऐसी धुन बनाई कि सभी दंग रह गए। आजतक नागिन की वह मस्त धुन वह उतनी ही लोकप्रिय है जितनी 70 साल पहले थी।

इसके बाद फिल्म ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ में कल्याणजी ने पहली बार स्वतंत्र संगीतकार के रूप में संगीत दिया। बाद में जब कल्याणजी को लगा कि उनका काम पटरी पर आ रहा है तो उन्होंने आनंदजी को भी अपने साथ मिला लिया। और सन 1960 में आई मनमोहन देसाई की पहली फिल्म ‘छलिया’ में पहली बार कल्याणजी आनंदजी की जोड़ी के रूप में इनका संगीत आया।

नायक राज कपूर की इस फिल्म ने ‘डम डम डिगा डिगा’ जैसे गीतों ने इन्हें एक सफल संगीतकार बना दिया। उसके बाद तो दिल भी तेरा हम भी तेरे, जब जब फूल खिले, हिमालय की गोद में, उपकार, जॉनी मेरा नाम, सच्चा झूठा, होली आई रे, गीत, पूरब और पश्चिम, सफर, ज़ंजीर, मुकद्दर का सिक्न्दर, विधाता, धर्मात्मा, कुर्बानी  और जाँबाज जैसी बहुत सी फिल्मों के लिए करीब 1200 गीतों कों इन्होंने अपनी धुन से सजाया।

यूं तो इनकी (Kalyanji Anandji) कुछ फिल्में सन 1994 तक प्रदर्शित होती रहीं। लेकिन सही मायने में इनकी अंतिम सफल फिल्म सन 1989 में आई ‘त्रिदेव’ थी। जिसके गीत ‘ओए ओए… तिरछी टोपी वाले और गली गली में फिरता है’ ने आधुनिक फिल्म संगीत की दुनिया में समां बांध दिया था।

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