अभिनेता शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने लिखी अपनी माँ के नाम कविता “ एक वरदान “
एक वरदान
प्रिय माँ…!!!
इक्कीस फ़रवरी
आज ही के दिन…
तुमने जन्मा था मुझे
पृथ्वी पे लाया था मुझे
पाला- पोसा था मुझे
और सम्भाला था मुझे
कौन हूँ मैं बताया था मुझे
प्रिय माँ…!!!
तू जब पृथ्वी पे होती थी…
आज का दिन विशेष होता था
घर में उत्सव निवेश होता था
गोभी की खीर तुम बनाती थी
मुट्ठी भर काजू भी खिलाती थी
दिव्य भोजन भी तुम पकाती थी
प्रिय माँ…!!!
क्या तुम्हें पता है ???
तुम्हारे हाथों के स्पर्श मात्र से…
साधारण भोजन भी…
छप्पन भोग सा लगता था…
अमृत सदृश हो जाता था…
जब हाथ से मिलाके तुम खिलाती थी
माँ… अदभुत स्वाद तुम चखाती थी
आशीष दे स्नेह से नहलाती थी
प्रिय माँ…!!!
दूर अन्यत्र कहीं होता तो…
भोर में फ़ोन प्रथम करती थी
बधाई जन्मदिन की देती थी
दुलार सारा उड़ेल देती थी
बलाएँ सारी ओढ़ लेती थी
प्रिय माँ…!!!
तुम अब जहाँ भी रहती हो…!
फ़ोन सुविधा नहीं है वहाँ
किन्तु सच ये भी है…
उन्नत तकनीक है वहाँ
दूरानुभूति होते ही…
तुम प्रकट हो जाती हो
हृदय की बात करके जाती हो
झोली आशीष से भर जाती हो
प्रिय माँ…!!!
अब तुम मेरे हृदय में रहती हो
रक्त बन धमनियों में बहती हो
मन की गंगा में सदा रमती हो
तुम मेरे आस पास रहती हो
जो मिला है मुझे तुम्हीं से मिला
आज कुछ और माँग लूँ तुमसे?
एक वरदान दे दे माँ मुझको…
पुनर्जन्म पाऊँ कभी तो…
तेरी ही कोख़ से मैं जन्मूँ
तेरी ही गोद में पलूँ मैं बढ़ूँ
जब भी जीवन मिले…
तेरे आँचल में मिले…
तेरे आँगन में ही मैं खेलूँ माँ…
मैं तुझसे प्यार करूँ
मैं लड़ूँ तो तुमसे लड़ूँ
तू रूठ जाए…
तो मैं मनाऊँ तुझे
तू क्षमा कर दे मुझे…
जैसे तू कर देती थी
मेरी त्रुटियों को…
अपने अश्रु से धुल देती थी
एक वरदान मेरी माँ…
आज दे दे मुझे…
एक उपहार मेरी माँ…
आज दे दे मुझे…
एक वरदान मेरी माँ…
आज दे दे मुझे…
ओम् श्रीमातृ शरणम्
– डॉ. शैलेन्द्र श्रीवास्तव