Gulzar: गुलज़ार ने किया निराश, लोग सुनना चाहते थे दिल के जज़्बात, वो अंग्रेजी में लिखे पन्ने पढ़कर चले गए
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
पिछले दिनों दिल्ली में ‘साहित्योत्सव’ (Sahityotsav 2024) का शानदार आयोजन सम्पन्न हुआ। साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) द्वारा आयोजित विश्व के इस सबसे बड़े महोत्सव में देश के करीब 1100 लेखक एक ही मंच पर एकत्र हुए। जिनमें गीतकार-फ़िल्मकार गुलज़ार (Gulzar) भी थे।
गुलज़ार (Gulzar) ने समारोह में ‘सिनेमा और साहित्य’ विषय पर संवत्सर व्याख्यान देना था। गुलज़ार (Gulzar) ने पिछले कुछ बरसों में अपने गीतों और शायरी से जो विशिष्ट पहचान बनाई है वह किसी से छिपी नहीं है। फिल्मों से जुड़े रहने के कारण उनकी ख्याति और भी ज्यादा है। मैं स्वयं गुलज़ार (Gulzar) के गीतों का बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। उनकी बनाई कुछ फिल्में भी मुझे बहुत पसंद हैं। उनको मैंने कुछ बार इंटरव्यु किया, जबकि उन पर लिखा तो बहुत कुछ है। बरसों पहले जब वह ‘मिर्जा गालिब’ सीरियल बना रहे थे। तब भी मैंने उनका ‘इंडिया टुडे’ के लिए इंटरव्यू भी किया था और उनके इस सीरियल पर एक बड़ी स्टोरी भी। उन्हीं दिनों अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान वह एक बार मेरे घर भी आए थे। उनकी बातें, मुलाकातें खास होती हैं। उनको सुनना, उनको पढ़ना अच्छा लगता है।
लेकिन इस बार अपने संवत्सर व्याख्यान के दौरान गुलज़ार (Gulzar) ने काफी निराश किया। हालांकि उन्हें सुनने और देखने के लिए मेघदूत ओपन थिएटर खचाखच भरा था। जिनमें देश भर से आए कई बड़े लेखक-कवि और विद्वान ही अधिक थे। उनके सम्मान में सभी ने खड़े होकर उनका अभिवादन भी किया।
गुलज़ार (Gulzar) ने अपने व्याख्यान की शुरुआत तो दिलचस्प ढंग से की। लेकिन बाद में उन्होंने जो किया उससे निराशा ही नहीं दुख भी हुआ। इसके दो बड़े कारण रहे। एक तो यह कि गुलज़ार (Gulzar) ‘सिनेमा और साहित्य’ के अपने मूल विषय पर ना बोलकर सिनेमा के इतिहास, तकनीक पर ज्यादा बोले। दूसरा वह वही सब पढ़कर बोलते रहे जो वह अँग्रेजी में लिखकर लाये थे। इस पर वहाँ बैठे कुछ लोगों ने उन्हें दो तीन बार अनुरोध भी किया कि आप हिन्दी-उर्दू में ही बोलें। लेकिन गुलज़ार हाँ-हूँ करकर भी, सभी को अनसुना सा कर, अपने लिखे अंग्रेज़ी पन्नों को ही पढ़ते रहे।
अंत में उन्होंने अपनी एक कविता –‘’मैं अपनी फिल्मों में सब जगह हूँ’’ जरूर हिन्दी-उर्दू में पढ़ी। लेकिन सुनाया कुछ नहीं। जिसे सुनने के लिए वहाँ बड़े से बड़े लोग कब से बैठे थे। असल में गुलज़ार (Gulzar) जैसा ज्ञानी व्यक्ति और वरिष्ठ हिन्दी फ़िल्मकार, अपनी बात अंग्रेज़ी लिखे पन्नों को पढ़कर बोले तो दुख और निराशा स्वाभाविक है। यह निराशा तब और भी ज्यादा हो गयी, जब वह अपने मूल विषय पर कम और बाकी विषयों पर ज्यादा बोले।
उधर वहां बैठे कई लेखक, साहित्यकार,जिन्होंने गुलजार को पहली बार इतने करीब से देखा, वे कार्यक्रम के बाद उनसे मिलना या उनके साथ एक फोटो लेने की भी इच्छा रखते थे। लेकिन गुलजार ने उन सभी को भी निराश किया। यहाँ तक उन्होंने पुरस्कार विजेता लेखकों और अकादेमी से जुड़े अहम सदस्यों के साथ भी मिलने या बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
उम्मीद थी अपने व्याख्यान में गुलज़ार (Gulzar) साहित्य और सिनेमा पर बेबाक बोलेंगे। इस संबंध में अपने लंबे फिल्म जीवन के यादगार अनुभव बताएँगे, कुछ दिलचस्प संस्मरण सुनाएँगे। साहित्य पर बनी फिल्मों का सिनेमा उद्योग में कितना योगदान है, विश्व सिनेमा में साहित्य कितना है, सिनेमा और साहित्य का संगम कैसा रहा। उनके गुरु बिमल राय या जब उन्होंने स्वयं साहित्यक कृतियों पर फिल्म बनायीं तो उनके अनुभव कैसे रहे। लेकिन गुलज़ार (Gulzar) ने ऐसा कुछ नहीं बताया।
देखा जाए तो श्रोता इस बेहद खास मौके पर गुलजार के दिल के जज़्बात सुनना चाहते थे। लेकिन गुलजार अंग्रेज़ी में लिखे अपने पेज पढ़कर चले गए।