Manna Bahadur: मन्ना बहादुर, पंखों से नहीं हौसलों से होती है उड़ान, ‘दूरदर्शन डेज’ और ‘अभिशप्त नालंदा’ पुस्तकों से मिली नई पहचान

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

मन्ना बहादुर (Manna Bahadur) लेखन की दुनिया में अब एक ऐसा नाम बन चुकी हैं जिनकी लिखीं पुस्तकें पाठकों में काफी लोकप्रिय हो रही हैं। उनकी पिछली पुस्तक ‘दूरदर्शन डेज’ (Doordarshan Days) के बाद हाल ही में आई ‘अभिशप्त नालंदा’ (Abhishapt Nalanda) भी इन दिनों चर्चा में है।

हालांकि एक वह दौर था जब मन्ना बहादुर (Manna Bahadur) दूरदर्शन (Doordarshan) के चर्चित चेहरों में एक थीं। सन 1978 से 1990 के समय में मन्ना (Manna Bahadur) दूरदर्शन पर एक एंकर और न्यूज़ रीडर के रूप में अच्छी ख़ासी लोकप्रिय थीं।

एक दिलचस्प बात यह भी कि आज तो टीवी जगत में बिहार से आई प्रतिभाओं की भरमार है। लेकिन मन्ना (Manna Bahadur) टीवी में बिहार से आने वाली पहली एंकर मानी जाती  थीं। पटना में आकाशवाणी (Akashvani) से बाल कलाकार के रूप में प्रसारण की दुनिया में आने वाली मन्ना (Manna Bahadur) जब युवा होकर कॉलेज कि पढ़ाई के लिए दिल्ली पहुंची तो कुछ समय बाद वह दूरदर्शन (Doordarshan) से भी जुड़ गईं।

करियर में भरी ऊंची उड़ान लेकिन जब हुई एक अनहोनी

दूरदर्शन (Doordarshan) में उनका करियर ऊंची उड़ान भर चुका था कि तभी उनके साथ एक अनहोनी हो गयी। वह अपनी आवाज़ खो बैठीं। लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी मन्ना (Manna Bahadur) ने अपनी हिम्मत नहीं खोयी। वह दूरदर्शन (Doordarshan) से चाहे दूर हो गईं। लेकिन उन्होंने अपने जज़्बातों को कैनवास पर उकेरना शुरू कर दिया।

सलमा सुल्तान, साधना श्रीवास्तव, मन्ना बहादुर, मीनू तलवार और नीथि रविन्द्रन

देखते देखते मन्ना (Manna Bahadur) ने एक चित्रकार के रूप में अपनी अच्छी पहचान बना ली। उसके बाद मन्ना (Manna Bahadur) का मन लेखन के लिए मचल उठा। शुरुआत कविताओं से हुई। सन 2006 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘अक्स मेरे जज़्बात के’ छप कर आया। तो अगले ही बरस उनका एक उपन्यास ‘नीलांजना’ प्रकाशित हो गया। फिर 2009 में उनका एक और काव्य संग्रह ‘धूप छाँह’ भी आ गया।

अपने हिन्दी लेखन के बाद मन्ना बहादुर (Manna Bahadur) ने अंग्रेज़ी लेखन की ओर अपनी कलम चलायी। जिसका परिणाम 2012 में, अंग्रेज़ी उपन्यास ‘द डांस ऑफ डैथ’(The Dance of Death) के रूप में सामने आया। पेंगुइन (Penguin Publications) से प्रकाशित उनके इस इस अंग्रेज़ी उपन्यास का मराठी में भी अनुवाद आया।

इससे मन्ना (Manna Bahadur) के हौंसले और बुलंद हो गए। सन 2016 में उनकी एक और अंग्रेज़ी पुस्तक ‘द कर्स ऑफ नालंदा’ (The Curse of Nalanda) प्रकाशित  हुई। नालंदा (Nalanda) के ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित उनकी यह काल्पनिक कहानी वाला उपन्यास तो मराठी के साथ सिंहली भाषा में भी प्रकाशित हुआ।

पुस्तक ‘दूरदर्शन डेज’ को मिली अच्छी सफलता

इधर पिछले वर्ष उनकी एक और अंग्रेज़ी पुस्तक ‘दूरदर्शन डेज’ (Doordarshan Days) आई। जिसमें उन्होंने दूरदर्शन (Doordarshan) के अपने व्यक्तिगत संस्मरणों के साथ दूरदर्शन (Doordarshan) के पुराने दिनों की खूबसूरत बानगी प्रस्तुत की है। उनकी इस पुस्तक ने विश्व पुस्तक मेलों सहित विभिन्न स्थानों पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। इसलिए अब इसे हिन्दी में भी प्रकाशित करने की मांग उठ गयी है।

ज्योत्सना, साधना श्रीवास्तव, शम्मी नारंग, मन्ना बहादुर, सलमा सुल्तान, शहनाज़ युसुफ जेई और सुनीत टंडन

और अब ‘अभिशप्त नालंदा’

इस सबके साथ मन्ना (Manna Bahadur) की अब एक और हिन्दी पुस्तक ‘अभिशप्त नालंदा’ (Abhishapt Nalanda) आई है। जो यूं तो ‘द कर्स ऑफ नालंदा’ (The Curse of Nalanda) का हिन्दी संस्करण है। जिसकी कहानी तो वही है लेकिन यह अनुवाद नहीं मौलिक है।

हाल ही में मन्ना से मुलाक़ात हुई तो वह ‘अभिशप्त नालंदा’ (Abhishapt Nalanda) को लेकर काफी उत्साहित थीं। इधर कुछ बरसों में ऐसा हुआ कि अब वह थोड़ा बहुत बोलने लगी हैं। मन्ना (Manna Bahadur) बताती हैं-‘’सदियों पहले नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) की प्रतिष्ठा देख कभी अनेक देशों से छात्र यहाँ पढ़ने आते थे। लेकिन उसे सिर फिरों ने जला दिया। असल में नालंदा को लेकर लिखने का विचार मुझे तब आया, जब मार्च 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) साहब ने बिहार विधानमण्डल के संयुक्त सत्र में नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के पुनरुद्वार का प्रस्ताव रखा था। जिसे बाद में स्वीकार भी कर लिया था। बस तभी से इस विषय को केंद्र में रख मैंने एक कहानी बुनी। मुझे खुशी है इसके अंग्रेज़ी संस्करण के बाद हिन्दी संस्करण को भी पाठकों का अच्छा स्नेह मिल रहा है।‘’

मन्ना बहादुर की यह यात्रा देख मुझे एक कवि की लिखी पंक्तियाँ याद आ रही हैं

मंज़िल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है

पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है

 

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