Ramayan: जब सागर के सीरियल ‘रामायण’ से चली देश में राम लहर

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) बनने के कारण आज पूरा देश राम मय हो गया है। हालांकि देश के कई राज्यों में इन दिनों शीत लहर चल रही है। लेकिन सच यह है कि शीत लहर से कहीं ज्यादा देश भर में राम लहर है। यहाँ तक विदेशों में भी राम मंदिर (Ram Mandir) को लेकर ऐसा उत्साह है कि कई देशों में राम और राम मंदिर (Ram Mandir) सुर्खियों में हैं।

भगवान श्रीराम प्राचीन काल से ही हमारे आराध्य रहे हैं। हर बरस देश में व्यापक स्तर पर राम लीला का मंचन भी होता है। लेकिन देश में इतनी बड़ी राम लहर तो शायद ही कभी चली हो। इससे पहले देश राम मय तब दिखा था जब सन 1987 में दूरदर्शन पर ‘रामायण’ (Ramayan) सीरियल का प्रसारण शुरू हुआ था। यह संयोग ही है कि अब राम मंदिर (Ram Mandir) का शुभारंभ 22 जनवरी को हो हुआ है। जब 37 बरस पहले दूरदर्शन पर ‘रामायण’ (Ramayan) शुरू हुआ वह तारीख 25 जनवरी थी।

सुप्रसिद्द फ़िल्मकार रामानन्द सागर (Ramanand Sagar) द्वारा निर्मित और निर्देशित ‘रामायण’ सीरियल ने तब ऐसी लोकप्रियता पाई थी कि अधिकांश घरों में राम नाम गूंज उठा था। देखते देखते उस ‘रामायण’ सीरियल की लोकप्रियता इतनी हो गयी थी कि कई अन्य देशों ने भी अपने यहाँ इस सीरियल का प्रसारण शुरू कर दिया।

घर बन गए थे मंदिर

देश में तो यह हाल था कि रविवार सुबह 9 बजे दर्शक नहा धोकर अपने टीवी सेट के सामने बैठ जाते थे। कई घरों में टीवी सेट को तिलक लगाया जाता था। टीवी के साथ धूप-अगरबत्ती जलाकर रखी जाती थी। अनेक लोग तो टीवी के सामने सोफ़े-कुर्सी की जगह दरी-चटाई या चादर बिछाकर फर्श पर बैठते थे।  अधिकांश महिलाएं अपने सिर को चुन्नी-पल्ले से ढक लेती थीं। सीरियल के प्रसारण के बीच विभिन्न प्रसंगों में जय श्री राम, जय सिया राम और जय बजरंगबली के नारे गूँजते थे। गीत-भजन आने पर लोग साथ साथ गाते थे।हर घर एक मंदिर प्रतीत होता था।

सन 1987-1988 में ‘रामायण’ सीरियल के दौरान, देश-विदेश में प्रभु श्रीराम के प्रति करोड़ों लोगों की इस आस्था के बाद देश में राम नंदिर आंदोलन तेज हो गया था। भारतीय जनता पार्टी ने भी लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में 1990 में सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा शुरू की थी। तभी भाजपा के एजंडे में  राम मंदिर निर्माण अहम हो गया था।

‘रामायण’ सीरियल की लोकप्रियता का नया शिखर आज के दौर में भी कोरोना काल में खूब दिखा। मार्च 2020 में कोरोना के चलते देश में ‘लॉकडाउन’ हुए अभी एक ही दिन गुजरा था कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बहुत से लोगों ने एक अपील शुरू कर दी। वह अपील थी कि ‘लॉकडाउन’ के 21 दिनों में सरकार को दूरदर्शन पर ‘रामायण’ धारावाहिक फिर से दिखाना चाहिए। जिससे लोग घरों में रहेंगे और बोर भी नहीं होंगे। साथ ही कोरोना के इस संकट काल में प्रभु श्रीराम का स्मरण और ‘रामचरितमानस’ का पाठ भी हो जाएगा। लोगों की यह अपील जब प्रधानमंत्री कार्यालय और सूचना प्रसारण मंत्रालय पहुंची तो उन्हें यह विचार अच्छा लगा और तुरंत इसे लागू करने के निर्देश प्रसार भारती को दे दिये गए। 28 मार्च से प्रतिदिन सुबह 9 से 10 और रात 9 से 10 बजे का समय में दूरदर्शन पर ‘रामायण’ का प्रसारण शुरू कर दिया गया।

‘रामायण’ के साथ बी आर चोपड़ा के ‘महाभारत’ का पुनर्प्रसारण भी 28 मार्च से शुरू किया गया। लेकिन ‘रामायण’ के इस प्रसारण की घोषणा मीडिया के लिए इतनी बड़ी खबर बनी कि जहां बहुत से समाचार पत्रों ने इसे अपने पहले पेज की खबर बनाया वहाँ टीवी न्यूज़ चैनल्स के लिए भी यह समाचार सुर्खियां बना। तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने खुद ट्वीट करके इस समाचार को सभी के साथ साझा किया। इस पर अनेक दर्शकों ने अपनी खुशी जताते हुए सरकार का आभार भी प्रकट किया।

हालांकि कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि 1987 में पुरानी तकनीक पर बने दूरदर्शन पर प्रसारित ‘रामायण’ को क्या अब भी दर्शक पसंद करेंगे। क्योंकि  आज सैंकड़ों चैनल होने के साथ मनोरंजन के अनेक विकल्प हैं। लेकिन इस सबके बावजूद सन 2020 में ‘रामायण’ लोकप्रियता के नए आयाम बनाकर विश्व में सबसे ज्यादा देखे जाने वाला कार्यक्रम बन गया।

आज भी पूजनीय बने हैं कलाकार

यह रामानन्द सागर के उसी ‘रामायण’ सीरियल की लोकप्रियता ही है कि इस सीरियल में राम, सीता और लक्ष्मण बनने वाले कलाकारों को,कितने ही लोग भगवान की तरह पूजने लगते हैं। राम मंदिर के मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी 22 जनवरी को इन तीनों कलाकारों अरुण गोविल, दीपिका चिखलिया और सुनील लहरी को अयोध्या आमंत्रित किया गया है। चंद दिन पहले ये तीनों एक कार्यक्रम के लिए अयोध्या पहुंचे तो इनका स्वागत कुछ भगवान की तरह ही किया गया। इनके चरण छूने के लिए लोग उमड़ पड़े।

‘रामायण’ की आज भी इतनी लोकप्रियता देख मैं स्वयं भी अति प्रसन्न हूँ। असल में देश में टीवी पर नियमित पत्रकारिता की शुरुआत सबसे पहले मैंने ही की थी। इसलिए मैंने दूरदर्शन पर वह समय स्वयं बहुत करीब से देखा है,जब दूरदर्शन पर सीरियल युग की शुरुआत हुई। यूं ‘रामायण’ से पहले सन 1984 में दूरदर्शन पर प्रसारित ‘हम लोग’ सीरियल ने लोकप्रियता की नींव रख दी थी। लेकिन सफलता और लोकप्रियता का जो इतिहास ‘रामायण’ ने रचा आज भी उसका कोई सानी नहीं है।

दूरदर्शन ने पहली बार जनवरी 1987 में जब ‘रामायण’ का प्रसारण शुरू किया था, तब किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि सुप्रसिद्द फिल्म लेखक, निर्माता,निर्देशक रामानन्द सागर का एक सीरियल ‘रामायण’ उनकी कई जुबली फिल्मों पर भारी पड़ जाएगा। सागर की तमाम हिट फिल्मों को इतने दर्शक नहीं मिले जितने एक ‘रामायण’ सीरियल को मिल गए। उनके ‘रामायण’ सीरियल के कारण ही रामानन्द सागर का नाम कुछ मामलों में प्राचीन ‘रामायण’ ग्रंथ के रचयिता महाऋषि बाल्मिकी और ‘रामचरितमानस’ के रचयिता संत तुलसीदास के साथ जुड़ गया। यहाँ तक ‘रामायण’ सीरियल के भारत के साथ कई विदेशों में भी हुए सफल प्रसारण से, तब कुछ लोग तो सागर को महाऋषि रामानन्द कहकर पुकारने लगे थे।

उन दिनों बहुत ज्यादा घरों में टीवी नहीं होता था। रंगीन टीवी तो गिने चुने घरों में होता था। लेकिन जिन घरों में भी टीवी होता था उनके यहाँ आस पड़ोस के ही नहीं दूर दराज के लोग भी ‘रामायण’ देखने के लिए आन पहुँचते थे। ‘रामायण’ प्रसारण के दौरान घरों के बाहर गलियों में कर्फ़्यू जैसे कुछ ऐसे ही नज़ारे होते थे जैसे पिछले दिनों लॉकडाउन में हो गए थे।

पाक में भी देखते थे ‘रामायण’

बड़ी बात यह भी थी कि ‘रामायण’ को सभी धर्म के लोग देखते थे। यहाँ तक उन दिनों पाकिस्तान में भी ‘रामायण’ सीरियल की लोकप्रियता इस कद्र थी कि पाक में  कई जगह से वहाँ के लोग रविवार सुबह लाहौर अपने किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर पहुँच जाते थे। क्योंकि अमृतसर से दूरदर्शन के लिंक लाहौर तक पहुँचने से वहाँ के टीवी सेट ‘रामायण’ का प्रसारण पकड़ लेते थे। तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री एच के एल भगत ने भी अपनी एक बातचीत में मुझे बताया था कि ‘रामायण’ पाकिस्तान में भी चाव से देखा जाता है। सागर भी बताते थे कि उन्हें पाक से भी आए दिन अनेक पत्र ‘रामायण’ की प्रशंसा में मिलते हैं’।

दूरदर्शन ने ‘रामायण’ के 52 एपिसोड की मंजूरी दी थी। लेकिन इसकी लोकप्रियता की पराकाष्ठा देख दूरदर्शन को इसके लिए 26 अतिरिक्त एपिसोड की मंजूरी देने के लिए विवश होना पड़ा। यहाँ तक कुछ समय बाद सागर ने दूरदर्शन के लिए लव कुश गाथा के रूप में ‘उत्तर रामायण’ भी बनाया।

पिछले बरसों में ज़ी टीवी और इमेजिन सहित कुछ चैनल्स पर अन्य ‘रामायण’ सीरियल का प्रसारण भी हुआ और बहुत से अन्य सैंकड़ों धार्मिक सीरियल का भी। लेकिन रामानन्द सागर की इस ‘रामायण’ को जो लोकप्रियता और जितने दर्शक मिले उतने किसी और को नहीं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सागर ने जहां इसके लिए गहन शोध कर इसे दिलचस्प बनाया,वहाँ ‘रामायण’ को उन्होंने आज के समय से भी जोड़ इसके महत्व को बढ़ाया। साथ ही इसके लिए रविन्द्र जैन ने जो गीत लिखे और जो संगीत दिया उससे भी ‘रामायण’ सीरियल में चार चाँद लग गए।

आज जब अयोध्या में राम मंदिर बनने का लंबा सपना साकार हो गया है तो रामानन्द सागर भी याद आ रहे हैं और दारा सिंह तथा अरविंद त्रिवेदी भी, जिन्होंने सीरियल में हनुमान और रावण की भूमिका की। अरविंद त्रिवेदी से तो मेरी बहुत ज्यादा बातें नहीं हुईं। लेकिन मैं जानता हूँ रावण की भूमिका करने वाले त्रिवेदी स्वयं बहुत बड़े राम भक्त थे। जबकि रामानन्द सागर और दारा सिंह से तो मेरे बरसों घनिष्ठ और मधुर संबंध रहे। सागर साहब ने ‘रामायण’ सीरियल बनाने के लिए जितना संघर्ष किया वह मैं अच्छे से जानता हूँ। कोई और होता तो टूट जाता। क्योंकि ‘रामायण’ सीरियल की स्वीकृति मिलने के बाद भी कुछ हिन्दू विरोधी तत्व इस सीरियल के प्रसारण के घोर विरोधी थे। इसलिए प्रसारण से पहले वे इसके एपिसोड में इतनी खामियां निकालते थे कि सागर को इसकी बार बार फिर से शूटिंग करनी पड़ती थी। लेकिन रामानन्द सागर का जन्म तो मूलतः ‘रामायण’ सीरियल के निर्माण के लिए हुआ था।

बता दें लाहौर के एक गाँव असल गुरुके में, 29 दिसंबर 1917 को लाला दीनानाथ चोपड़ा और ईशा देवी के पहली संतान के रूप में जन्मे रामानन्द का असली नाम चंद्रमौली था। हालांकि इनका परिवार प्रतिष्ठित और धनवान था। लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि युवा अवस्था में पहुँचते पहुँचते इनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गयी थी। सन 1940 का दशक इनके लिए बेहद चुनौती पूर्ण रहा। इस दौरान वह जहां मिलाप और प्रताप जैसे उर्दू अखबारों के रिपोर्टर बने।वहाँ यह टीबी रोग से ऐसे ग्रस्त हो गए कि तब इस रोग से बचना चमत्कार ही होता था। इनके साथ चमत्कार हुआ यह स्वस्थ भी हुए और फिर एक मशहूर लेखक भी बन गए। इससे पहले ट्रक सफाई करने, साबुन बेचने और चपरासी की नौकरी तक इनका जीवन बेहद संघर्षमय रहा। लेकिन 1949 में राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’ के लेखक के रूप में फिल्म नगरी में इनका आगमन इतना सफल रहा कि देखते देखते रामानन्द एक सफल निर्माता निर्देशक बन गए।

जब 12 दिसंबर 2005 को इनका 88 बरस की उम्र में निधन हुआ तो इनका जीवन उपलब्धियों से भरा था। आरजू, घूँघट, गीत,आँखें, ललकार और चरस जैसी कितनी ही सफल फिल्में इनके खाते में पहुँच चुकी थीं। जबकि ‘रामायण’ (Ramayan) सीरियल ने तो रामानन्द सागर (Ramanand Sagar) की पूरी जिंदगी ही बदल दी थी। यूं सागर ने श्रीकृष्ण सीरियल के साथ जय गंगा मैया, जय महालक्ष्मी, साईं बाबा जैसे कुछ और धार्मिक सीरियल भी बनाए। लेकिन ‘रामायण’ ने उन्हें अमर कर दिया।

-लेखक देश में टीवी पर पत्रकारिता शुरू करने वाले पहले पत्रकार हैं

 

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