देश में सिनेमा के हुए 111 साल फिर भी परेशान क्यों है बॉलीवुड

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

इस 3 मई को भारतीय सिनेमा ने अपने 111 साल पूरे कर लिए। यूं यह प्रसन्नता की बात है कि 3 मई 1913 को दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) ने ‘राजा हरिश्चंद्र’ (Raja Harishchandra) प्रदर्शित करके जिस नए युग की शुरुआत की थी,वह आज नए इतिहास रच रहा है। ‘राजा हरिश्चंद्र’ (Raja Harishchandra) भारत में बनी पहली फिल्म थी। जबकि अब भारत विश्व में सबसे ज्यादा फिल्म बनाने वाला देश है।

जब चीन में भारत से भी ज्यादा बिजनेस करने लगीं बॉलीवुड फिल्में

हमारे यहाँ बनी फिल्में आज लगभग पूरी दुनिया में दिखाई जा रही हैं। कभी चीन जैसे देश भारतीय फिल्मों को अपने यहाँ प्रदर्शित करने से परहेज करते थे। लेकिन कुछ बरस पहले जब चीन ने भारतीय फिल्मों को दिखाना शुरू किया तो वहाँ फिल्म क्रान्ति आ गयी। हमारी फिल्में चीन में इतनी लोकप्रिय हुईं कि वहाँ कुछ ही समय में ही सैंकड़ों नए सिनेमा थिएटर खुल गए। भारतीय फिल्मों ने चीन में भारत से ज्यादा बिजनेस करके सिद्द कर दिया कि वहाँ हिन्दी फिल्मों की कितनी बड़ी दीवानगी है।

इससे पहले पाकिस्तान फिल्म उद्योग भी भारतीय फिल्मों की बैसाखी पर चलता रहा। पाक में अपनी फिल्में तो अधिकतर औंधे मुंह गिरती रहीं। लेकिन हिन्दी फिल्मों के कारण वहाँ के थिएटर आबाद रहे। पिछले कुछ बरसों में भारतीय सिनेमा ने विश्व के लगभग सभी देशों की सीमा लांघ कर अपना वर्चस्व स्थापित किया है।

आवारा,मदर इंडिया मुगल-ए-आजम और शोले

सिनेमा (Indian Cinema) के इतिहास को देखें तो हमारी आवारा, मदर इंडिया, मुगल-ए-आजम, शोले, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे और बाहुबली जैसी कितनी ही फिल्में मील का पत्थर बनकर सिनेमाई यात्रा को शान से आगे बढ़ाती रही हैं। हालांकि बीच-बीच में हमारी फिल्मों को बड़ी असफलता के साथ बड़ी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। जब वीडियो आया या फिल्मों की पाइरेसी ने ज़ोर पकड़ा या फिर पीछे जब कोरोना काल आया। तब लगा कि हिन्दी सिनेमा दम तोड़ देगा। लेकिन जल्द ही हालात ठीक हो गए।

दर्शकों की साउथ की फिल्मों में बढ़ती दिलचस्पी

लेकिन इधर अब एक बार फिर हिन्दी फिल्मों की स्थिति नाजुक हो चली है। कोरोना के बाद हालात कुछ ठीक होते लगे। थिएटर की ओर दर्शक लौटने लगे। लेकिन हिन्दी फिल्मों से कहीं ज्यादा दक्षिण की हिन्दी में डब फिल्मों में दर्शकों ने ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। मुंबई के फिल्म उद्योग के लिए यह बेहद दुखदायी था कि दक्षिण की पुष्पा (Pushpa: The Rise), केजीएफ चैप्टर टू (KGF: Chapter 2), कांतारा (Kantara) और आरआरआर (RRR) तो सुपर हिट रहीं। लेकिन हिन्दी की कई बड़ी फिल्में कतार से धराशायी होती गईं।

हालांकि पिछले साल जहां पठान, गदर-2, जवान, टाईगर-3, केरला स्टोरी, सैम बहादुर, रॉकी रानी की प्रेम कहानी और एनिमल जैसी फिल्में हिट रहीं। तो इस साल शुरू में आर्टिकल 370, शैतान, तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया और क्रू जैसी फिल्मों की सफलता से कुछ उम्मीद तो बंधी। लेकिन अक्षय कुमार (Akshay Kumar)- टाइगर श्राफ (Tiger Shroff) की बड़े बजट की ‘बड़े मियां छोटे मियां’ (Bade Miyan Chote Miyan) और अजय देवगन (Ajay Devgn) की ‘मैदान’ (Maidaan) फ्लॉप होने से फिर निराशा हो गयी है।

चुनाव और आईपीएल से आगे खिसकती फिल्में

फिर इन दिनों चुनाव (Lok Sabha Election 2024) और आईपीएल (IPL) होने से निर्माता अपनी नयी फिल्में प्रदर्शित करने से घबरा रहे हैं। इसीलिए अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की ‘कल्कि’ (Kalki 2898 AD) सहित कुछ और फिल्मों की रिलीज भी आगे खिसका दी है।

ओटीटी के जादू से खतरे में मल्टीप्लेक्स  

दूसरी बड़ी निराशा ओटीटी (OTT) से भी है। क्योंकि ओटीटी प्लेटफॉर्म इन दिनों काफी लोकप्रिय हो रहा है। यह देख कई बड़े फ़िल्मकार अब थिएटर की जगह ओटीटी के लिए फिल्में बना रहे हैं।

हाल ही में संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) जैसे बड़े फ़िल्मकार ने भी अपने पुराने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘हीरामंडी’ (Heeramandi) को भी थिएटर की जगह नेटफ्लिक्स को दे दिया। थिएटर की जगह ओटीटी पर फिल्में आने से फ़िल्मकारों और कलाकारों को तो खास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन देश में बने 4 हज़ार मल्टीफ़्लेक्स पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा।

एक थिएटर के कारण थिएटर ही नहीं कैंटीन, पार्किंग और ट्रांसपोर्ट का भी व्यापार फलता फूलता है। लेकिन थिएटर पर फिल्म न लगने और न चलने से करोड़ों की जिंदगी ठहर से जाती है। इसलिए भारतीय सिनेमा की इस जयंती पर सिनेमा उद्योग से जुड़ा, एक बड़ा वर्ग असमंजस में है।

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