Balraj Sahni Birthday: अभिनय के सरताज बलराज साहनी को रजिस्टर कहकर क्यों चिढ़ाते थे लोग

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

बलराज साहनी (Balraj Sahni) हिन्दी सिनेमा के ऐसे अभिनेता रहे जिनका आज भी कोई सानी नहीं है। उनकी गिनती सिनेमा के ऐसे गिने चुने अभिनेताओं में होती है,जिन्हें अभिनय का सरताज कहा जाता है। एक से एक शानदार फिल्म उनके खाते में है।

दिलचस्प यह है कि भारत में जहां फिल्मों की शुरुआत 3 मई 1913 को हुई वहाँ बलराज साहनी का जन्म उससे ठीक दो दिन पहले एक मई 1913 को हुआ। कह सकते हैं,उनका जन्म सिनेमा के लिए ही हुआ। ईश्वर ने उन्हें दो दिन पहले ही धरती पर भेज दिया।

अविभाजित भारत के रावलपिंडी के निकट एक छोटे शहर भेरे में जन्मे बलराज के पिता हरबंस लाल साहनी कपड़े के व्यापारी थे। जबकि माँ लक्ष्मी देवी एक गृहणी। पिता ने अपने इस बड़े बेटे का नाम युधिष्ठिर रखा और दूसरे बेटे का नाम पांडवों की तर्ज पर भीष्म। लेकिन बाद में युधिष्ठिर को अपना यह नाम तब अखरने लगा जब कुछ लोग उन्हें युधिष्ठिर की जगह रजिस्टर कहने लगे। जबकि पिता ने इनका नाम पांडव पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर से प्रभावित होकर रखा था। लेकिन नाम को लेकर बेटे ने पिता से शिकायत करते हुए कहा कि मुझे लोग रजिस्टर कहकर चिढ़ाते है, इसलिए मेरा नाम बदल दो। तब हरबंस लाल जी ने इनका नाम बलराज रख दिया। जिससे धर्मराज युधिष्ठिर का बोध भी थोड़ा सा होता रहे और बल और शक्ति का भी।

आगे चलकर बलराज साहनी अभिनय की दुनिया के बलराज बने और इनके छोटे भाई भीष्म साहनी साहित्य की दुनिया के भीष्म। जिनके उपन्यास ‘तमस’ पर इसी नाम से बनी दूरदर्शन सीरिज ने लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित किये थे। यूं बलराज साहनी का भी साहित्य से गहरा लगाव रहा। उन्होंने कई कवितायें लिखीं तो कुछ फिल्मों की पटकथा भी। यहाँ तक उनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। जिनमें उनकी अपनी आत्मकथा भी शामिल है। लेकिन अभिनय और रंगमंच का शौक उन्हें अभिनय की दुनिया में ले आया।

बलराज साहनी ने अपनी फिल्म यात्रा सन 1946 में शुरू की थी। जबकि उनकी अंतिम फिल्म ‘अमानत’ उनके निधन के 4 साल बाद सन 1977 में प्रदर्शित हुई थी। असल में यह एक रुकी हुई फिल्म थी जो देर से प्रदर्शित हुई। लेकिन सही मायने में उनकी अंतिम फिल्म ‘गर्म हवा’ थी। जो उनके निधन के कुछ दिन बाद सन 1973 में प्रदर्शित हुई थी। बलराज साहनी का निधन अब से 50 साल पहले 13 अप्रैल 1973 को हुआ था।

बलराज साहनी के फिल्म करियर की बात करें तो सन 1946 से 1973 के दौरान इनकी कुल करीब 125 फिल्में प्रदर्शित हुईं। इन फिल्मों में से बलराज साहनी की 60 से अधिक हिट और लोकप्रिय फ़िल्में हैं। उनकी प्रमुख फिल्मों की बात करें तो उनमें उनकी शुरूआती फ़िल्में जस्टिस,गुंजन,धरती के लाल,गुड़िया,हम लोग और हलचल के बाद सन 1952 में आई ‘दो बीघा ज़मीन’ ने पहली बार उन्हें एक अच्छे कलाकार के रूप में स्थापित किया। उसके बाद उन्होंने अपने अभिनय के ऐसे ऐसे रंग दिखाए कि सभी दंग रह गए।

उनकी बेमिसाल अभिनय की अदायगी की बानगी जिन अन्य फिल्मों में देखी जा सकती है उनमें- औलाद,सीमा,गर्म कोट,भाभी,सोने के चिड़िया,लाजवंती,घर संसार, घर गृहस्थी, हीरा मोती ,छोटी बहन, दिल भी तेरा हम भी तेरे, अनुराधा, भाभी की चूड़ियाँ, कठपुतली, अनपढ़, वक्त, नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, आए दिन बहार के, हमराज, नील कमल, तलाश, नन्हा फ़रिश्ता,पहचान,पवित्र पापी, नया रास्ता, होली आई रे,पराया धन,जवानी दीवानी,हिन्दुस्तान की कसम,हँसते ज़ख्म और गर्म हवा हैं।

जिन फिल्मों से बने सरताज

इन उपरोक्त फिल्मों में से जिन फिल्मों के कारण बलराज अभिनय के सरताज बने उनमें सबसे ऊपर दो फ़िल्में आती हैं। एक वह जिसके कारण वह सबसे पहले सफल हुए यानी ‘दो बीघा ज़मीन’ और दूसरी उनकी अंतिम फिल्म ‘गर्म हवा’। इन दो फिल्मों के बाद काबुलीवाला,वक्त,हकीकत,खजांची,एक फूल दो माली, दो रास्ते  और घर घर की कहानी आदि फिल्मों को कतार से लिया जा सकता है। लेकिन यदि बलराज साहनी को ‘दो बीघा ज़मीन’ और ‘गर्म हवा’ जैसी फ़िल्में उनके करियर में नहीं आतीं तो वह इतने बड़े अभिनेता नहीं कहलाते।

‘दो बीघा ज़मीन’ को लेकर बलराज साहनी ने एक बार लिखा था- “मरते समय अपने जीवन की कम से कम एक प्राप्ति का मुझे जरुर गर्व होगा कि मैंने ‘दो बीघा ज़मीन’ जैसी फिल्म में काम किया।”

हालांकि अपनी दूसरी मील का पत्थर फिल्म ‘गर्म हवा’ बलराज साहनी के मरणोपरांत प्रदर्शित हुई। जिस कारण वह ‘गर्म हवा’ को पूरी तरह बनने के बाद देख ही नहीं सके। और न ही इस फिल्म के अपने अभिनय के लिए दर्शकों –समीक्षकों की मिलीं शानदार प्रतिक्रियाओं को वह जान सके। अन्यथा वह शायद ये लिखते कि ‘दो बीघा ज़मीन’ और ‘गर्म हवा’ में काम करने का गर्व रहा।

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