गीतकार शैलेंद्र की जन्मशती के अविस्मरणीय कार्यक्रम में शामिल हुए कई दिग्गज, जावेद अख्तर को सम्मान के साथ, इंद्रजीत की पुस्तक ‘शैलेंद्र’ का भी लोकार्पण

कृतार्थ सरदाना। नयी दिल्ली के आकाशवाणी भवन में 2 सितंबर की शाम एक ऐसी शाम बन गयी जिसे सिने,साहित्य और संगीत प्रेमी शायद ही कभी भुला सकें। मौका था देश के महान कवि और सिनेमा के अमर गीतकार शैलेंद्र का जन्म शताब्दी समारोह। स्थान था दिल्ली के आकाशवाणी भवन का भव्य सभागार।

जन जन के गीतकार शैलेंद्र का गत 30 अगस्त को सौंवां जन्म दिन था। लेकिन शैलेंद्र के परिवार के साथ उनको जानने समझने वाले अधिक से अधिक लोग जिस दिन समारोह में उपस्थित हो सकें उसके लिए 2 सितंबर का दिन अधिक उपयुक्त हुआ।

इस समारोह की विशेषताओं की बात करें तो इसमें कई विशेषताएँ थीं। समारोह में शामिल होने के लिए देशभर से ही नहीं विदेशों से भी कई नामचीन हस्तियाँ शामिल हुईं। बड़ी बात यह भी कि इस समारोह के लिए शैलेंद्र की बेटी अमला शैलेंद्र मजूमदार दुबई से, शैलेंद्र के बड़े पुत्र मनोज शैलेंद्र अमेरिका से और उनके छोटे पुत्र दिनेश शैलेंद्र मुंबई से विशेष रूप से दिल्ली आए।

समारोह का खूबसूरत लम्हा- शैलेंद्र के 2 बेटों और बेटी के साथ प्रदीप सरदाना

उधर मंच पर आसीन हस्तियों की संख्या भी इतनी हो गयी कि कितने ही बड़े नामों को खचाखच भरे सभागार में कहीं भी बैठने को विवश होना पड़ा। यहाँ तक कार्यक्रम के आयोजक भी मंच पर नहीं बैठ सके।

कार्यक्रम का आयोजन शैलेंद्र मेमोरियल ट्रस्ट रुड़की ने किया था। जिसके अध्यक्ष वह इंद्रजीत सिंह हैं, जो शैलेंद्र को दिल-ओ-जान से चाहते हैं। वह शैलेंद्र पर दो पुस्तकों का सम्पादन भी कर चुके हैं। शैलेंद्र के परिवार से भी उनका आत्मीय रिश्ता है। इस ट्रस्ट में भी उन्होंने शैलेंद्र के परिवार के लोगों को साथ जोड़ा हुआ है। ।

इस समारोह का आकर्षण शैलेंद्र का जन्म शताब्दी समारोह तो था ही। साथ ही समारोह के दो और बड़े आकर्षण भी थे। एक तो यह कि इस बार जाने माने गीतकार जावेद अख्तर को शैलेंद्र शताब्दी सम्मान से सम्मानित किया गया। दूसरा इस मौके पर लेखक इंद्रजीत की एक और पुस्तक –‘भारतीय साहित्य के निर्माता –शैलेंद्र’ का भी लोकार्पण किया गया। शैलेंद्र पर लिखी इस पुस्तक का प्रकाशन साहित्य अकादेमी ने किया है।

इस मौके पर समारोह में लेखक इंद्रजीत सिंह ने अपनी यह पुस्तक वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार और जाने माने फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना को भेंट की।

जावेद अख्तर की उपस्थिती और शैलेंद्र पर आई पुस्तक से तो इस समारोह को एक शिखर मिला ही। साथ ही समारोह में उपस्थित अन्य कई गणमान्य व्यक्तियों से भी समारोह का आभामंडल देखते ही बनता था।

समारोह के मुख्य अतिथि साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक थे तो अध्यक्षता प्रसिद्द कथाकार असगर वजाहत ने की। जबकि विशिष्ट अतिथियों में  प्रसिद्द कवि अशोक चक्रधर, जाने माने गीतकार इरशाद कामिल,वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना और साहित्य अकादेमी के सचिव श्रीनिवास राव भी थे।

साथ ही प्रतिष्ठित कवि बुद्धिनाथ मिश्र, प्रसिद्द फिल्म आलोचक प्रोफेसर प्रह्लाद अग्रवाल और डॉ वाई एन शर्मा ‘अरुण’ की उपस्थिती से भी समारोह की शोभा बढ़ती रही।

समारोह में अशोक चक्रधर ने जावेद अख्तर को लेकर जहां अपने कुछ दिलचस्प संस्मरण सुनाये। वहाँ शैलेंद्र और जावेद अख्तर को लेकर अपने चिरपरिचित अंदाज़ में जो कहा उससे सभागार में ठहाके भी गूँजते रहे और तालियाँ भी। उधर डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने भी सभी अतिथियों का परिचय और अभिनंदन बहुत ही खूबसूरती के साथ किया।

शैलेंद्र को लेकर कई वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे। जिनमें असगर वजाहत,प्रोफेसर प्रहलाद अग्रवाल और नरेश सक्सेना ने अपने अपने ढंग से महान गीतकार के जीवन और उनके गीतों का विश्लेषण किया। उधर आज के दौर के लोकप्रिय गीतकार इरशाद कामिल जहां युवा पीढ़ी का लगातार आकर्षण बने रहे, वहाँ जावेद अख्तर को लेकर व्यक्त किए उनके कुछ शब्द भी बहुत कुछ कह गए।

प्रहलाद अग्रवाल ने शैलेंद्र के गीतों की बहुत सी विषताओं को बताने के साथ यह भी बताया कि शैलेंद्र पर पहली पुस्तक उन्होंने कई बरस पहले लिखी थी। माधव  कौशिक ने भी शैलेंद्र के पुराने गीतों की चर्चा के साथ अपने पिता, चाचा  और अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों को याद किया। साथ ही यह भी कि अब समय बदल रहा है। योग्य व्यक्तियों को ढूंढ-ढूंढ कर भी सम्मानित किया जा रहा है।

उधर जब जावेद अख्तर को सम्मानित करने का समय आया तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। असगर वजाहत और माधव कौशिक ने उन्हें जहां शॉल पहनाकर सम्मानित किया। वहाँ अशोक चक्रधर ने उन्हें स्मृति चिह्न प्रदान किया। वाई एन शर्मा ‘अरुण’ ने जावेद अख्तर के नाम के सभी अक्षरों पर एक एक करके अपनी दोहावली में उनका बखूबी चरित्र चित्रण किया। साथ ही संस्था की सचिव डॉ मधुराका सक्सेना ने उन्हें अभिनंदन पत्र भेंट किया। जबकि 21 हज़ार रुपए की पुरस्कार राशि जावेद अख्तर को शैलेंद्र परिवार ने सौंपी।

सम्मान ग्रहण करने के पश्चात जब जावेद अख्तर ने शैलेंद्र के बारे में बोलना शुरू किया तो समां ही बंध गया। अख्तर ने कहा मैंने बहुत से सूरज से रोशनी ली है। उन्होंने बड़ों से साहिर से, मजरूह से कई बातें सीखीं। लेकिन शैलेंद्र से बहुत कुछ सीखा। इसलिए मुझसे जब मेरे आदर्श गीतकारों  या सबसे अच्छे गीतकार के बारे में सवाल पूछा जाता है मैं शैलेंद्र का नाम सबसे पहले लेता हूँ।

मजरूह सुल्तानपुरी की एक पुरानी बात को साझा करते हुए जावेद अख्तर कहते हैं, मजरूह साहब ने मुझसे कहा था हम लोग गीत लिख लेते हैं। लेकिन शैलेंद्र जैसा गीतकार कोई नहीं है। मैं खुद भी जब शैलेंद्र के गीतों को सुनता हूँ तो ताज्जुब करता हूँ कि वह ऐसे ऐसे शब्द कैसे लिख लेते थे, जो हम सोच भी नहीं सकते। जैसे उनके गीत में लिखे तीन शब्द –‘क्यूँ नाचे सपेरा’ ही बताते हैं कि वह कितनी बड़ी सोच के गीतकार थे। मैं ऐसे तीन शब्द लिख लूँ मैं समझूँगा मैं कामयाब हो गया। ऐसे ही उनके एक गीत को मैंने कितनी ही बार सुना जिसके शब्द झकझोर कर रख देते हैं। घायल मन का पागल पंछी, उड़ने को बेकरार, पंख हैं कोमल आँख है धुंधली जाना है सागर पार। ऐसे शब्द शैलेंद्र जैसा व्यक्ति ही लिख सकता है, जो अपने दिल से यह दर्द महसूस कर सकता है। तभी उस दौर के बड़े बड़े गीतकारों और शायरों को पीछे छोड़कर शैलेंद्र मुक़ाबले में सभी से आगे निकल गए। वह सादी से सादी जुबान में आम इंसान को बड़े से बड़ी बात कह जाते थे। वह सबसे अच्छे गीतकार ही नहीं वह सार्वजनिक दार्शनिक थे, जनता के दार्शनिक थे।

समारोह में बीच बीच में शैलेंद्र और जावेद अख्तर के लिखे गीतों का गायन सोने पे सुहागा रहा। कार्यक्रम में मुंबई से आई पार्श्व गायिका सुप्रिया जोशी, देहरादून से आए पीयूष निगम और दिल्ली के नवीन आनंद के सुरों से महफिल संगीत से खूब सजी। तू प्यार का सागर है, अबके बरस भेज भैया को बाबुल, वहाँ कौन है तेरा, हाए रे वो दिन क्यूँ ना आए, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा और संदेसे आते हैं जैसे गीत उपस्थित श्रोताओं के दिलों में उतर गए।

समारोह में  गीत, संगीत, साहित्य, पत्रकारिता और शिक्षा क्षेत्र के और भी कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। जिनमें अनुपम तिवारी, यादवेन्द्र, मनमोहन चड्ढा, इन्दु शास्त्री, तेजेंद्र सिंह लूथरा, संस्कृति शर्मा, प्रो सत्येन्द्र मित्तल, रोहित जैन और सोनू सैनी भी थे। कार्यक्रम का खूबसूरत संचालन यूनुस खान ने किया।

कुल मिलाकर यह एक ऐसा यादगार समारोह रहा जिसकी गूंज बरसों रहेगी।

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