Happy Birthday Jeetendra: जीतेंद्र ने किस फिल्म में सबसे पहले पहने थे सफेद जूते, वह फिल्म जिसने जीतेंद्र की किस्मत बदल दी
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
फिल्म संसार में यूं ऐसे कई कलाकार मौजूद हैं, जो बढ़ती उम्र के बाद उम्र के शिकंजे में नहीं आए। जैसे धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, रेखा, जया प्रदा। लेकिन इनके साथ एक ऐसे कलाकार भी हैं जो अपनी 82 की उम्र में भी किसी युवा की तरह फिट और आकर्षक हैं। यह नौजवान हैं-जीतेंद्र (Jeetendra)।
जीतेंद्र (Jeetendra) आज 7 अप्रैल को 82 साल के हो गए हैं। लेकिन बढ़ती उम्र का साया भी उन पर नहीं पड़ा है। जीतेंद्र (Jeetendra) को लेकर पिछले बरस मेरी उनके बेहद खास दोस्त राकेश रोशन (Rakesh Roshan) से बात हुई थी। तब उन्होंने उनकी इस चिर युवा छवि को लेकर कहा था – ‘’जीतेंद्र (Jeetendra) ने अपने आप को इस तरह फिट रखा हुआ है कि इस उम्र में भी वह 55 के लगते हैं। सच कहूँ तो वह हमारे रोल मॉडल हैं। हम भी उनको फॉलो करने की कोशिश करते हैं।‘’
जीतेंद्र (Jeetendra) को मैं पिछले 45 बरसों से देख रहा हूँ। वह आज भी करीब करीब वैसे ही दिखते हैं जैसे बरसों पहले लगते थे। देखा जाये तो उन्होंने अपने नाम को साकार कर दिया है। जीतेंद्र (Jeetendra) यानि जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो। जीतेंद्र (Jeetendra) ने सच में अपनी इंद्रियों को ऐसे जीत लिया है कि बढ़ती उम्र की परछाईं भी उनके नजदीक नहीं आ पा रही है। देखा जाये तो वह रियल लाइफ हीरो हैं। एक लिविंग लिजेंड हैं। उनका आकर्षक व्यक्तित्व और अंदाज़ देख, उनकी नज़र उतारने को मन करता था।
यूं जीतेंद्र (Jeetendra) ने यहाँ तक पहुँचने के लिए काफी संघर्ष किया। अमृतसर में 7 अप्रैल 1942 को जन्मे जीतेंद्र (Jeetendra) का मूल नाम रवि कपूर (Ravi Kapoor) है। परिस्थितियाँ कुछ ऐसे बनीं कि अमरनाथ कपूर को अमृतसर से मुंबई आना पड़ा। जहां गिरगांव की रामचन्द्र बिल्डिंग की एक चॉल में इनका परिवार रहा। जिसमें इनके माता-पिता के साथ इनकी दो बहनें और एक भाई भी थे।
जीतेंद्र ने फिल्मों में आने की बात पर एक बार कहा था-‘’मैं पढ़ाई में बहुत कमजोर था। फिर मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति भी कमजोर थी। यदि पढ़ाई में अच्छा होता तो कहीं अच्छी नौकरी मिल सकती थी। या फिर परिवार में अच्छे खासे पैसे होते तो अपना कोई बिजनेस कर सकता था। इसलिए मेरे लिए दोनों रास्ते ही बंद से थे। इसलिए मैंने फिल्मों में आने के लिए हाथ पैर मारने शुरू किए।‘’
17 साल की उम्र में जागा फिल्मों में काम करने का शौक
इनके पिता आर्टिफ़िशियल ज्यूलरी का काम करते थे। जिसके चलते फिल्म निर्माताओं को भी वह ऐसे गहने किराये पर देते थे। इस सिलसिले में रवि भी गहने देने के लिए विभिन्न स्टूडियो आया-जाया करते थे। जिनमें उस दौर के प्रतिष्ठि फ़िल्मकार वी शांताराम का स्टूडियो राजकमल भी था। रवि तब 17 साल के थे कि एक दिन उन्होंने शांताराम से कहा कि मैं फिल्मों में करियर बनाना चाहता हूँ। आप मेरी कुछ मदद कीजिये।
शांताराम ने तत्काल तो कुछ बड़ी मदद करने से इंकार कर दिया। हाँ अपनी एक फिल्म ‘नवरंग’ (1959) में उसे एक बहुत ही छोटी भूमिका दे दी। उसके बाद एक और फिल्म ‘सेहरा’ में भी उन्हें एक ऐसे भूमिका मिली जिसमें जीतेंद्र को तब के दिग्गज अभिनेता उल्हास के साथ एक संवाद भी बोलना था।
पहली बार कैमरे का सामना करने पर हकलाने लगे
वह एक छोटा सा संवाद था। ‘’सरदार सरदार दुश्मन बेदर्दी से गोलियां बरसाता हुआ आ रहा है।‘’ दिलचस्प बात यह रही कि अपनी फिल्मी ज़िंदगी का यह पहला संवाद बोलने के लिए जब जीतेंद्र ने कैमरे का सामना किया तो वह बुरी तरह हकलाने लगे। बड़ी मुश्किल से करीब 20 टेक के बाद जीतेंद्र वह संवाद बोल पाये।
इसके कुछ समय बाद एक दिन शांताराम ने जीतेंद्र (Jeetendra) को अपनी फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ के नायक विजय की भूमिका सौंप दी। जिसमें उनकी बेटी राजश्री नायिका थी। ‘गीत गाया पत्थरों ने’ सन 1964 में प्रदर्शित हुई तो यह फिल्म काफी पसंद की गयी। यही वह फिल्म थी जिसमें रवि कपूर को शांताराम ने जीतेंद्र (Jeetendra) नाम देकर रुपहले पर्दे का राजकुमार बना दिया। ऐसा राजकुमार जिसका आकर्षण आज करीब 60 साल बाद भी बरकरार है।
हालांकि अपनी पहली फिल्म हिट होने के बाद भी जीतेंद्र (Jeetendra) को नयी फिल्म आने में समय लग गया। इस फिल्म के करीब तीन साल बाद जीतेंद्र की 1967 में तीन फिल्म प्रदर्शित हुईं। गुनाहों का देवता, बूंद जो बन गयी मोती और फर्ज़।
‘फर्ज़’ ने बदली किस्मत
जीतेंद्र (Jeetendra) को पहली बड़ी सफलता फिल्म ‘फर्ज़’ से मिली। जिसमें जीतेंद्र (Jeetendra) की नायिका बबीता थीं। ‘फर्ज़’ तेलुगू की एक सुपर हिट फिल्म ‘गुड़ाचरी 116’ का रिमेक थी। जो असल में जेम्स बॉन्ड की फिल्मों से प्रभावित थी। तेलुगू में फिल्म के नायक कृष्णा और नायिका जयललिता थीं।
‘फर्ज़’ जीतेंद्र (Jeetendra) के लिए कई तरह से अहम साबित हुई। ‘फर्ज़’ से जीतेंद्र (Jeetendra) की दक्षिण फिल्मों के रिमेक में काम करने की ऐसी शुरुआत हुई कि जीतेंद्र (Jeetendra) उसके बाद दक्षिण की हर हिन्दी फिल्म के रिमेक की पहली पसंद बन गए। जीतेंद्र (Jeetendra) ने जितनी रिमेक में काम किया है उतना किसी और हीरो ने नहीं।
‘फर्ज़’ में सफ़ेद जूते पहनकर जिस तरह डांस करते हुए –‘’मस्त बहारों का मैं आशिक’ गीत पर जो हरकतें कीं वह जीतेंद्र (Jeetendra) का अंदाज़ बन गए। इसी से जीतेंद्र के सफ़ेद जूते मशहूर हुए और इसी फिल्म के डांस ने उन्हें ‘जंपिंग जैक’ की उपाधि दी।
जीतेंद्र (Jeetendra) अब करीब करीब 20 बरसों से फिल्मों में अभिनय नहीं कर रहे। इस दौरान वह कभी कभार किसी फिल्म या वेब सीरीज में मेहमान या स्वयं जीतेंद्र के रूप में जरूर नज़र आए। लेकिन 1960 से 1990 के 30 बरसों में जीतेंद्र (Jeetendra) ने करीब 250 फिल्मों में काम करके अपनी नाम की ऐसी पताका फहलाई जो अभी तक शान से लहरा रही है।
सन 1960 से 1980 के 20 बरसों में जीतेंद्र ने धरती कहे पुकार के, मेरे हुज़ूर,जीने की राह, खिलौना, हमजोली, कारवां, अनोखी अदा, नागिन, उधार का सिंदूर, धर्मवीर, अपना पन, बदलते रिश्ते, स्वर्ग नर्क, लोक परलोक और आशा जैसी कई हिट फिल्में दीं। वहाँ इसी दौरान उनकी परिचय, खुशबू, किनारा और बिदाई जैसी लीक से हटकर फिल्में भी आयीं। जिनसे जीतेंद्र का अभिनय और खूबसूरत और सशक्त हुआ।
यूं अपनी इस फिल्म यात्रा में उनका बुरा समय भी आया। जब उनके पास कुछ महीनों के लिए बिलकुल काम नहीं था। या तब जब जीतेंद्र ने 1982 में निर्माता बनकर ‘दीदार ए यार’ फिल्म बनाई तो वह फिल्म के फ्लॉप होने से बुरी तरह कर्ज़ में डूब गए।
जीतेंद्र (Jeetendra) कहते हैं- मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ जब लगा कि अब क्या होगा। लेकिन प्रभु का शुक्रगुजार हूँ कि हर बार मैं जल्द ही उन मुश्किल पलों से निकल आया।