राष्ट्रपति ने एक साथ 3 वर्षों के संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप और पुरस्कार प्रदान किए
नई दिल्ली, पुनर्वास न्यूज़ डेस्क। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज (23 फरवरी, 2023) को नई दिल्ली में साल 2019, 2020 और 2021 के लिए संगीत नाटक अकादमी की फैलोशिप (अकादमी रत्न) और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (अकादमी पुरस्कार) प्रदान किए।
गौरतलब है कि इस वर्ष 128 कलाकारों को साल 2019, 2020 और 2021 के लिए प्रतिष्ठित अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ 10 अकादमी फेलो के रूप में राष्ट्रीय संगीत, नृत्य और नाटक अकादमी परफॉर्मिंग आर्ट्स के क्षेत्र में प्रतिष्ठित हस्तियों का चुनाव करती है।
फेलो के रूप में भरतनाट्यम नृत्यांगना सरोजा वैद्यनाथन, कथकली व्याख्याता सदनम कृष्णन कुट्टी, मणिपुरी नृत्यांगना दर्शना झावेरी, शास्त्रीय गायक छन्नू लाल मिश्र, कर्नाटक शहनाई वादक एकेसी नटराजन, तबला वादक स्वप्न चौधरी, शास्त्रीय गायिका मालिनी राजुरकर, कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीतकार टीवी गोपालकृष्णन, लोक गायिका तीजन बाई, और संगीत विज्ञानी भरत गुप्त को सम्मानित किया गया।
बता दें कि अकादमी फेलो के सम्मान में तीन लाख की पुरस्कार राशि दी जाती है, जबकि अकादमी पुरस्कार में एक ताम्रपत्र और अंगवस्त्रम के साथ एक लाख रुपये की नकद राशि दी जाती है।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि सभ्यता किसी राष्ट्र की भौतिक उपलब्धियों को प्रदर्शित करती है, लेकिन अमूर्त विरासत उसकी संस्कृति के माध्यम से सामने आती हैं। संस्कृति ही देश की वास्तविक पहचान होती है। भारत की अद्वितीय प्रदर्शन कलाओं ने सदियों से हमारी अतुल्य संस्कृति को जीवंत बनाए रखा है। हमारी कलाएं और कलाकार हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संवाहक हैं। ‘विविधता में एकता’ हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं की सबसे बड़ी विशेषता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी परंपरा में कला एक साधना है, सत्य की खोज का माध्यम है, प्रार्थना व पूजा का माध्यम है, लोक कल्याण का माध्यम है। सामूहिक उल्लास और एकता भी नृत्य व संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। कला भाषाई विविधता और क्षेत्रीय विशेषताओं को एक सूत्र में बांधती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में कला की सबसे प्राचीन और सबसे श्रेष्ठ परिभाषाएं व परंपराएं विकसित हुई हैं। आधुनिक युग में हमारे सांस्कृतिक मूल्य और अधिक उपयोगी हो गए हैं। आज के तनाव और संघर्ष से भरे युग में, भारतीय कलाओं द्वारा शांति और सौहार्द का प्रसार किया जा सकता है। इसके अलावा भारतीय कलाएं भी भारत की सॉफ्ट पावर का बेहतरीन उदाहरण हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि जिस तरह हवा और पानी जैसे प्राकृतिक उपहार मानवीय सीमाओं को नहीं मानते, उसी तरह कला की विधाएं भी भाषा और भौगोलिक सीमाओं से ऊपर होती हैं। एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी, पंडित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, लता मंगेशकर, पंडित भीमसेन जोशी और भूपेन हजारिका का संगीत भाषा या भूगोल से बाधित नहीं होते थे। उन्होंने अपने अमर संगीत से केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में संगीत प्रेमियों के लिए एक अमूल्य विरासत छोड़ी है।