प्रूफ रीडर के रूप में पत्रकारिता की शुरुआत करके वैदिक ने रचा सफलता का इतिहास

  • प्रदीप सरदाना

     वरिष्ठ पत्रकार 

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक (Dr Ved Pratap Vaidik) के निधन से पत्रकारिता जगत स्तब्ध है, शोकाकुल है। वैदिक जी जिस तरह पत्रकारिता में दिन रात सक्रिय थे उसे देख कभी लगा ही नहीं कि वह इतनी जल्दी मात्र 78 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह देंगे।

लेकिन आज 14 मार्च सुबह जब संदेश मिला कि वैदिक जी का हृदयगति रुकने से निधन हो गया है, तो सहसा विश्वास नहीं हुआ। हर रोज सुबह वह मुझे व्हाट्सएप पर अपना उस दिन प्रकाशित लेख तो भेजते ही थे। साथ ही देश-विदेश की अपनी गतिविधियों की सचित्र जानकारी भी वह अक्सर भेजते रहते थे।

वैदिक जी को मैं 1980 के दशक की शुरुआत से जानता था। तब से अब तक उनके साथ मेरे मधुर संबंध रहे। कई बार न्यूज़ चैनल्स पर भी हम साथ रहे। कुछ बार हमने पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े मंच भी संग साझा किए। उनके लेख हम अपने अखबार ‘पुनर्वास’ में भी प्रकाशित करते रहे। अब भी उनके भेजे लेखों को मैं अक्सर पढ़ता था। बहुत कम शब्दों में अपनी बात अच्छे ढंग से कहने की उनमें अद्धभुत कला थी। विदेश मामलों में तो उनकी बड़ी और मजबूत पकड़ गज़ब की थी। अभी कल ही उन्होंने मुझे अपना एक लेख ‘कश्मीर पर भुट्टो की निराशा’ भेजा था। नहीं जानता था कि यह उनका भेजा अंतिम लेख होगा। आज उनके यहाँ से लेख की जगह उनके निधन का समाचार मिला तो बहुत दुख हुआ।

 

वैदिक जी से मेरी पहली मुलाक़ात सन 1982 के दिनों में तब हुई जब मैं ‘नवभारत टाइम्स’ दिल्ली में उप संपादक नियुक्त हुआ। तब वह ‘नवभारत टाइम्स’ में सहायक संपादक थे। हालांकि बाद में, मैं भी नभाटा की नियमित नौकरी छोड़कर वहाँ स्तंभकार, पत्रकार और समीक्षक के रूप में जुड़ गया। उधर 1986 में पीटीआई संवाद एजेंसी ने जब अपनी हिन्दी सेवा ‘भाषा’ के नाम से शुरू की तो वैदिक जी भी वहाँ संपादक बनकर चले गए। लेकिन उनसे मिलना जुलना अक्सर होता ही रहा। कभी कहीं तो कभी कहीं।

अनुपम प्रतिभा और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी डॉ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा के दिन इंदौर में हुआ था। पहले उन्होंने 1963 में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से राजनीति और दर्शन शास्त्र के साथ संस्कृत, हिन्दी और अँग्रेजी विषयों के साथ बी ए किया। फिर इंदौर विश्वविद्यालय के इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम ए। दिलचस्प यह है कि वह हमेशा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। हिन्दी के विकास और सुधार के लिए कुछ बड़ा करने की चाहत छात्र जीवन से थी। हालांकि वह रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी अच्छे जानकार थे। लेकिन हिन्दी के लिए कुछ अलग करने की उनमें विशेष ललक थी।

वैदिक जी ने पत्रकारिता की शुरुआत तो एक प्रूफ रीडर के रूप में 1958 में अपनी स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही कर दी थी। साथ ही वह आगे की पढ़ाई भी करते रहे और जहां जहां लेखन, पत्रकारिता के अवसर मिलते रहे वह भी करते रहे। सन 1962 से 1966 के दौरान वह इंदौर से प्रकाशित एक पत्रिका ‘अग्रवाही’ के संपादक भी रहे। साथ ही अपने कॉलेज की एक पत्रिका का सम्पादन भी उन्होंने लगभग इसी दौरान किया। उसके बाद 1974 से 1977 तक वह हिंदुस्तान समाचार के निदेशक रहे। कुछ इसी अवधि में वैदिक ने ‘हिन्दी पत्रकारिता –विविध आयाम’ नाम से 1100 पृष्ठों के एक ग्रंथ का भी सम्पादन किया। जिसे तब काफी चर्चा मिली। इस सबसे वैदिक जी को एक नयी पहचान मिली।

इधर वेद प्रताप ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ  इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। शायद तब वह पहले शोधार्थी थे जिसने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। बताया जाता है कि इससे काफी विवाद हुआ,यहाँ तक उनका निष्कासन भी हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि 1965-67 के दौरान मामला संसद में भी उठता रहा।

वैदिक जी बताते थे कि तब डॉ. राममनोहर लोहिया, आचार्य कृपलानी, अटलबिहारी वाजपेयी, गुरू गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, चंद्रशेखर, प्रकाशवीर शास्त्री, डॉ.जाकिर हुसैन, रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. हरिवंशराय बच्चन, डॉ. धर्मवीर भारती,  प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे लोगों ने इस मामले में उनका प्रखर समर्थन किया। परिणाम स्वरूप तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले।

वैदिक जी ने अपनी 60 से अधिक बरसों की पत्रकारिता में जहां राजनीति और विदेश मामलों से लेकर विभिन्न विषयों पर हजारों लेख लिखे। वहाँ इस दौरान करीब 80 देशों की यात्रा भी की। ये यात्राएं भी सामान्य या घूमने-फिरने जैसी नहीं थीं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों की उनकी यात्राएं काफी सुर्खियों में रहीं। उनके संपर्क और सम्बन्धों का दायरा इतना बड़ा था कि जिसे देख किसी भी पत्रकार को ईर्ष्या हो उठे। उनके देश-विदेश में कितने ही शिखर व्यक्तियों से अच्छे संबंध थे। संबंध भी सिर्फ राजनीति क्षेत्र में हे नहीं लेखन,पत्रकारिता,कला,संगीत,सिनेमा,खेल,उद्योग सहित कई क्षेत्रों में।

कुछ बरस पहले जब वैदिक ने पाकिस्तान जाकर आतंकी हाफ़िज़ सईद का इंटरव्यू लिया तो इस पर काफी विवाद हुआ। जिसे संभालना उनके लिए मुश्किल भी हुआ। लेकिन अपने नियमित लेखन से वह ढेरे व्धीरे उस विवाद से आगे निकल गए।

वैदिक जी ने कई पुस्तकें भी लिखीं। जिनमें ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ: क्यों और कैसे?’, ‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,  ‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो?, ‘अफगानिस्तान: कल, आज और कल’, ‘महाशक्ति भारत’, ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’, ‘कुछ मित्र और कुछ महापुरुष,’ ‘मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय’ ‘हिंदी कैसे बने विश्वभाषा’ प्रमुख हैं।

वेद प्रताप वैदिक जहां नियमित स्तम्भ और अन्य लेखों के माध्यम से देश के कितने ही अखबारों से जुड़े थे। वहाँ देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में वह विजिटिन प्रोफेसर के रूप में भी जाते थे। अपने लेखन और हिन्दी सेवा के लिए विभिन्न पुरस्कारों से पुरस्कृत वैदिक कुछ संस्थाओं से भी जुड़े थे। उनका लेखन बरसों से एक आदत बन गया था। सच कहा जाए तो आज के दौर में अपने किस्म के वह अकेले लेखक थे। उन्हें यूं भुलाना संभव नहीं होगा। वह याद आते रहेंगे।

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