साहित्योत्सव 2023: शब्द किसी को प्रसन्नता दे सकते हैं तो घाव भी – सोनल मानसिंह

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित छह दिवसीय साहित्योत्सव के तीसरे दिन कल विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। जिसमें सबसे रोचक कार्यक्रम शब्द-संसार और मेरी कला विषयक परिचर्चा थी जिसमे विभिन्न कला क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण लोगों  ने शब्द और उनकी कला के संबंधों पर गहराई से प्रकाश डाला।

इस परिचर्चा की अध्यक्षता लब्धप्रतिष्ठ शास्त्रीय नृत्यांगना और सांसद सोनल मानसिंह ने की। उन्होंने कहा कि शब्दों में बहुत ताकत होती है, वे किसी को भी अगर प्रसन्न कर सकते है तो किसी को घाव भी दे सकते है। शब्द जो हमारे आस-पास रहते है, वे ही हमें रचनात्मक करने के लिए प्रेरणा देते है।

इस परिचर्चा में अन्य प्रतिभागी थे – प्रख्यात पखावज वादक अनिल चौधरी आईपीएस अधिकारी ए.पी. माहेश्वरी, चित्रकार, मूर्तिकार एवं कवि जतिन दास, प्रख्यात फिल्म निर्देशक केतन मेहता, प्रख्यात कथक नृत्यांगना नलिनी, पूर्व आईएएस एवं लेखक राघव चंद्रा, प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना एवं गुरु शोवना नारायण, प्रख्यात कला एवं लेखिक, क्यूरेटर सुजाता प्रसाद और प्रख्यात सामाजिक और सांस्कृति कार्यकर्त्ता संदीप भुटोरिया। सभी  ने अपने विचार और अनुभव  विभिन्न  उदाहरणों द्वारा श्रोताओं के सामने रखे।

उधर आमने-सामने कार्यक्रम के अंतर्गत कल साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2022 के विजताओं प्रख्यात गुजराती लेखक गुलाम मोहम्मद शेख, हिंदी लेखक बद्रीनारायण, ओड़िआ लेखिका गायत्री बाला पंडा, मलाळम् लेखक एम. थॉमस मैथ्यू एवं प्रसिद्ध तमिल लेखक एम. राजेंद्रन से विभिन्न विद्वानों ने बातचीत की।

भाषा सम्मान अर्पण समारोह में वर्ष 2019-2020 एवं 2022 के पुरस्कृत लेखकों को सम्मानित किया गया। पुरस्कृत लेखक थे – ए. दक्षिणामूर्ति, दयानंद भार्गव, मोहम्मद आज़म, सत्येंद्र नारायण गोस्वामी, उदयनाथ झा, अशोक द्विवेदी एवं अनिल कुमार ओझा, होरसिंङ् खोलर।

तीसरे दिन के अन्य कार्यक्रमों में अनुवाद-कला: सांस्कृतिक संदर्भ में चुनौतियाँ, शिक्षा और सृजनात्मकता विषयक परिचर्चाएँ एवं आदिवासी लेखक सम्मिलन भी थे। आज सम्मिलित हुए रचनाकार थे – राणा नायर, कलिंग बोरांग, मृणाल मिरी, दामोदर खंड़से, वर्षा दास, अनीसुर रहमान, टी.वी. कट्टीमनी, गिरीश्वर मिश्र, गौरहरि दास आदि।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत  मथुरा से पधारे कलाकारों द्वारा प्रस्तुत बृज की होली में रंग और स्वर का आनंद भी अद्धभुत था।

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