Shila Jhunjhunwala: 97 बरस की उम्र में शीला झुनझुनवाला की आई नई किताब, लेखन, उत्साह और ऊर्जा की बन गयी हैं अनोखी मिसाल

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

प्रसिद्द पत्रकार, साहित्यकार पदमश्री शीला झुनझुनवाला (Shila Jhunjhunwala) ने 6 जनवरी को दिल्ली में अपना 97 वां जन्म दिन मनाया तो हृदय अपार प्रसन्नता से भर गया। प्रतिष्ठित रचनाकर्मी शीला जी ने 97 बसंत देखे यह तो खुशी की बात है ही। लेकिन इससे ज्यादा खुशी यह भी है कि इस उम्र में भी वह लेखन, कला-संस्कृति और समाजसेवा में इतनी सक्रिय हैं कि उनसे प्रेरणा ली जा सकती है।

मैं अक्सर देखता हूँ कि अनेक लोग यह कहते नहीं थकते कि वह अब 65-70 के हो गए हैं या 75-80 के अब और क्या करें। अब कुछ करने का मन नहीं है, या हिम्मत नहीं है। लेकिन शीला झुनझुनवाला आज भी कितनी जीवंत है उसकी मिसाल इससे भी मिलती है कि अभी हाल ही में उनकी एक पुस्तक आई है-’पतझड़ में वसंत’ (Patjhad Mein Vasant)। इस आयु में किसी की नई पुस्तक का आना कोई सामान्य बात नहीं है। ऐसी कोई और मिसाल बहुत ढूँढने से शायद ही कोई मिले। वृद्द व्यक्तियों के एकाकीपन की व्यथा कथा को बेहद मार्मिकता से दिखाने वाले उनके इस उपन्यास का प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने किया है।

वृद्द व्यक्तियों के दुख दर्द को कभी उपन्यास सम्राट प्रेमचंद अपनी कृतियों ‘बूढ़ी काकी’, ‘मंत्र’, बेटों वाली विधवा’ और ‘सुजान भगत’ आदि में बखूबी दिखाते  थे। उनकी ‘ईदगाह’ कहानी में भी दादी अमीना के कष्ट को उनके 4 साल के पोते हामिद के माध्यम से बहुत ही अच्छे ढंग से व्यक्त किया था। जबकि बुजुर्गों की त्रासदी पर अवतार, दर्द, सारांश और बागबान सहित असंख्य फिल्में भी बन चुकी हैं। लेकिन अब लेखक अपने उपन्यास में बुजुर्गों पर बहुत कम लिखते हैं।

मैं शीला झुनझुनवाला (Shila Jhunjhunwala) को करीब 45 बरसों से बेहद करीब से जानता हूँ। ‘धर्मयुग’ जैसी पत्रिका से 1960 में, लेखन पत्रकारिता शुरू करने वाली शीला जी 1965 के बाद, दिल्ली आने पर महिला पत्रिका ‘अंगजा’ की संपादक बन गईं थीं। लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें प्रतिष्ठित ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) समूह ने बुला लिया। जहां वह पहले ‘कादंबिनी’ में और फिर और दैनिक हिंदुस्तान में कई बरस संयुक्त संपादक रहीं।

शीला जी (Shila Jhunjhunwala) के पत्रकारिता को शिखर तब मिला जब 1984 में वह ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ (Saptahik Hindustan) की संपादक बनीं। इस दौरान उनका सृजनात्मक कार्य भी जारी रहा और संस्थान से सेवा निवृति के बाद तो शीला जी ने अपने लेखन को नए पंख दे दिये। अब तक उनकी लगभग 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें उनकी कुछ पुस्तकें सिने सितारों के अनछुए प्रसंग, कुछ कही कुछ अनकही, सांस्कृतिक विरासत के धनी-भारत और जापान और चेरी फूले मधुमास पिछले कुछ बरसों में आयी हैं।

अपने लेखन-पत्रकारिता के असाधारण कार्यों के लिए शीला झुनझुनवाला (Shila Jhunjhunwala) को पदमश्री, गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण सम्मान, हिन्दी अकादमी दिल्ली का बाल साहित्य कृति सम्मान, साहित्यकार शिखर सम्मान और पंडित अंबिका प्रसाद वाजपेयी सम्मान सहित और भी कई पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।

जीवन में इतने मान सम्मान और उपलब्धियों को पाने के बाद भी शीला झुनझुनवाला (Shila Jhunjhunwala) का मन सदा कुछ नया करने के लिए मचलता रहता है। इतने बरसों में मेरा उनके साथ परिवार जैसा नाता है। मुझे उन्हें देख आश्चर्य होता है जब वह इस उम्र में भी बड़े उत्साह से लेखन करती हैं। देश-विदेश में भ्रमण करती हैं। कभी संगीत कार्यक्रमों में पहुँच जाती हैं तो कभी नाटक देखने। यहाँ तक वह कई संस्थाओं से जुड़ कर साल भर में कितने ही आयोजन स्वयं भी कराती हैं। इसके लिए कभी उन्होंने गर्मी-सर्दी या बरसात की चिंता नहीं की।

अपने पति और उनके प्रेरणा स्त्रोत तथा मार्गदर्शक रहे टी पी झुनझुनवाला (TP Jhunjhunwala) की स्मृति में उन्होंने 33 बरस पहले ‘टीपी झुनझुनवाला फाउंडेशन’ (TP Jhunjhunwala Foundation) की स्थापना की थी। जिसके तहत वह प्रतिवर्ष पहले 26 जनवरी को और अब मार्च में एक बड़ा सांस्कृतिक आयोजन करती हैं। जिसमें संगीत, काव्य, साहित्य ही नहीं राजनीति दुनिया के भी कितने ही बड़े नाम शामिल होते रहे हैं। साथ ही अपनी संस्था प्रियदर्शिनी, के साथ वह लेखिका संघ, सूर्या संस्थान सहित कुछ और संस्थाओं के माध्यम से साहित्यिक और सामाजिक कार्य करने में भी जिस तरह जुटी  हैं, वह बेमिसाल है।

मैं उन्हें उनके हर जन्म दिन पर बधाई देता हूँ। तब मुझे और भी अच्छा लगता है, जब देखता हूँ कि उम्र के हर अगले पड़ाव पर वह पिछली बार से ज्यादा ऊर्जावान लगती हैं। बढ़ती उम्र के खौफ से बेपरवाह वह बराबर नियमित लेखन तो कर ही रही हैं। साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यों में भी वह बराबर सक्रिय हैं। शायद यही सब उनकी ऊर्जा और उत्साह के माध्यम बन गए हैं।

अभी कल मैंने उन्हें जन्म दिन की बधाई दी तो वह बहुत खुश थीं। बोलीं मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मेरी पुस्तक ‘पतझड़ में वसंत’ (Patjhad Mein Vasant) की लगातार अच्छी प्रतिक्रियाँ मिल रही हैं। कमल किशोर गोयनका और नासिरा शर्मा ने भी पुस्तक पर अपनी बेबाक समीक्षा की है।

शीला जी के इस उपन्यास की भाषा और शैली तो खूबसूरत है ही साथ ही इसका कथानक भी उन्हीं के तरह ऊर्जा से भरा है। जो उनकी कथा के बुजुर्ग नायक कपूर को एकाकीपन में घुट-घुट के जीने की जगह जीने का नया उत्साह देता है। पतझड़ में भी वसंत की अनुभूति हो  ऐसा सुझाव देता है।

शीला जी (Shila Jhunjhunwala) कहती हैं- ‘’मैं इन दिनों अपना एक और उपन्यास लिखने की योजना बना रही हूँ। फिलहाल कुछ अपने पुराने संस्मरण लिख रही हूँ। अपनी पुस्तकों को यूट्यूब पर भी डलवा रही हूँ। मैं दिन भर में कुल 6 घंटे की नींद लेती हूँ। रात को 12 बजे सॉकर तीन बजे उठ जाती हूँ। फिर सुबह 4 बजे उठकर लेखन करने बैठ जाती हूँ।  जितनी भी देर तक कर सकूँ। उसके बाद दिन में  कहीं  जाने, लोगों से मिलने जुलने  और अन्य कार्यक्रमों को समय देती हूँ। दोपहर बाद जब भी संभव हो तीन घंटे की नींद और ले लेती हूँ। फिर टीवी पर समाचार और कुछ सीरियल देखती हूँ। या फिर कभी किसी कार्यक्रम-समारोह में जाना हो तो वहाँ जाती हूँ। बस प्रभु से प्रार्थना है कि ये ऊर्जा, उत्साह बना रहे और आपकी शुभकामनायें और साथ।‘’

शीला जी (Shila Jhunjhunwala) आपके लिए हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि आप शतायु से भी ज्यादा उम्र पाएँ, स्वस्थ रहें। साथ ही आपकी सृजनात्मक यात्रा भी अनवरत चलती रहे।

 

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