Neeraj Death Anniversary: जब नीरज जी ने बच्चन जी की गोद में बैठ उनसे लिया बड़ा कवि बनने का आशीर्वाद

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

कवि गोपाल दास नीरज (Poet Gopal Das Neeraj) ने एक कवि के रूप में जहां देश दुनिया में अपनी बड़ी पहचान बनाई। वहाँ उम्र भी बड़ी पाई। हालांकि वह कहते थे कि मेरी सेहत की चिंता मत करो। मैं तो बरसों से बीमार रहा हूँ। पर मैं 100 बरस जीऊँगा। लेकिन 19 जुलाई 2018 को 93 बरस की उम्र में उनका निधन हो गया। लेकिन अस्वस्थ रहते हुए भी नीरज ने अपनी ज़िंदगी को भरपूर जिया।

बता दें नीरज के नाम से मशहूर इन महान कवि का असली नाम गोपाल दास  सक्सेना था। लेकिन डॉ हरिवंश राय ‘बच्चन’ जी (Dr. Harivansh Rai Bachchan) से प्रभावित होकर नीरज (Neeraj) ने अपने नाम के आगे से सक्सेना हटाकर, गोपाल दास ‘नीरज’ (Gopal Das Neeraj) लिखना शुरू कर दिया। नीरज जी (Neeraj Ji) को अपनी किशोर अवस्था से बच्चन जी (Bachchan Ji) से बेहद लगाव था। इस कारण वह बच्चन जी (Bachchan Ji) से सदा प्रभावित रहे।

नीरज जी (Neeraj ji) से मेरी व्यक्तिगत मुलाकातें तो आठ-दस ही हो पायी होंगी। लेकिन उन्हें लाल किला कवि सम्मेलन से लेकर रेडियो-टीवी के स्टूडियो कार्यक्रमों मेँ भी उन्हें प्रत्यक्ष सुनने का सौभाग्य मुझे मिला। उनके अंतिम दिनों मेँ उनसे फोन पर भी कई बार बातें हुईं। हम उन्हें अपनी लेखकों, पत्रकारों और कलाकारों की संस्था का ‘आधारशिला’ शिखर पुरस्कार (Aadharshila Shikhar Award) देना चाहते थे। यह संयोग है कि हमारी संस्था ‘आधारशिला’ (Aadharshila) की स्थापना भी माननीय बच्चन जी (Bachchan Ji) के आशीर्वाद से, उनके संरक्षण मेँ 1982 मेँ हुई थी।

सन अप्रैल 2018 मेँ नीरज जी (Neeraj Ji) ने हमारे ‘आधारशिला’ सम्मान (Aadharshila Award) को अलीगढ़ से दिल्ली आकर लेने की अपनी स्वीकृति भी दे दी थी। लेकिन इसके बाद नीरज जी कुछ ज्यादा अस्वस्थ होते होते चिरनिंद्रा में लीन हो गए।

 जब बस में मिले बच्चन जी

हालांकि उनके साथ बातों की यादों का खजाना मेरे पास है। नीरज जी ने एक बार बताया था कि सन 1942 में एक कवि सम्मलेन में हिस्सा लेने के लिए बस द्वारा कुछ कवि बांदा जा रहे थे। उस समय नीरज की उम्र 17 बरस थी।  जब गोपालदास बस में चढ़े तो उन्हें सीट नहीं मिल पायी। तब बच्चन जी ने उन्हें अपनी गोद में बैठा लिया। बच्चन जी की इस बात से ही नीरज काफी प्रभावित हो गए। तब गोपाल दास ने बच्चन जी से कहा कि आज आपने अपनी गोद में बैठाया है तो अब मुझे आशीर्वाद भी दे दीजिये कि आपकी तरह अच्छा लिख सकूँ और आपकी तरह मुझे भी लोकप्रियता मिले। बच्चन जी गोपाल दास की ये बातें सुन मुस्कुराकर बोले- तथास्तु।

बच्चन जी का आशीर्वाद नए नए कवि बने गोपाल दास को इतना फला कि देखते ही देखते उनकी उदास, निराश जिंदगी ही बदल गई। करीब दो तीन साल में ही नीरज ने इतनी कवितायेँ लिख दीं कि सन 1944 में उनका पहला काव्य संकलन ‘संघर्ष’ भी आ गया। जिसे नीरज ने बच्चन जी को ही समर्पित किया।

नीरज बताते थे- मैंने कवियायें लिखनी तो शुरू कर दीं थीं। लेकिन असल में कविता क्या होती है यह मुझे तब पता लगा जब मैंने बच्चन जी की ‘निशा निमंत्रण’ पढ़ी। उसी के बाद मेरी काव्य रचनाओं में नए रंग आये।”

कई बड़े कवियों के साथ किया मंच साझा  

नीरज ने जब सन 1940 के दशक की शुरुआत में ही कविता पढ़ना शुरू किया तो तब बच्चन जी जैसे कवि अपनी ‘मधुशाला’ जैसी रचनाओं के कारण इतने प्रख्यात हो चुके थे कि उनको मंच से अपने समक्ष सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे। देखा जाए तो कवि सम्मेलनों को लोकप्रियता दिलाने में बच्चन और उनके बाद नीरज का बहुत बड़ा योगदान है। यहाँ तक एक बार स्वयं बच्चन जी ने तो मंचीय कवि सम्मेलनों को बड़ी लोकप्रियता दिलाने का सर्वाधिक श्रेय नीरज को ही दे दिया था। साथ ही रामधारी सिंह दिनकर ने तो नीरज को ‘हिंदी की वीणा’ तक कह दिया था।

नीरज का कद कवि सम्मेलनों के लिए कितना बड़ा हो गया था इस बात की मिसाल इस बात से भी मिलती है कि नीरज ने अपने समय के लगभग सभी दिग्गज कवियों, दिग्गज शायरों के साथ भी मंच साझा किया। जिनमें बच्चन और दिनकर के साथ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रा नंदन पन्त, गोपाल सिंह नेपाली, शिवमंगल सिंह सुमन, महादेवी वर्मा, मैथिली शरण गुप्त, बाल कवि बैरागी, काका हाथरसी, और सुरेन्द्र शर्मा के साथ जिगर मुरादाबादी, फिराक गोरखपुरी,कैफ़ी आज़मी, साहिर लुधियानवी, शकील बंदायूनी, मजरुह सुल्तानपुरी, सरदार जाफरी, हफीज जालंधरी और राहत इन्दौरी जैसे कई नाम हैं।

‘कारवाँ गुजर गया’ से मिली लोकप्रियता

नीरज जी ने अपने जीवन में मुक्तक,गीतीकाएं,कवितायें तथा गीतों की एक से एक रचना और खूबसूरत शब्दों की बेमिसाल बानगी प्रस्तुत की। लोकप्रिय भी वह शुरू में ही हो गए थे। लेकिन उन्हें अपनी जिस कृति से सबसे पहले पूरे देश में अपार ख्याति मिली वह थी-‘कारवाँ गुजर गया,गुबार देखते रहे।’ यह गीत नीरज ने 1954 में लिखा था। इस गीत को नीरज ने पहले कुछ कवि सम्मलेन में प्रस्तुत किया तो ‘धर्मयुग’ सहित कुछ और पत्र पत्रिकाओं ने इस गीत को प्रकाशित कर इस पर चर्चा भी खूब की। जिससे नीरज एक दम काफी लोकप्रिय हो गए।

इस गीत की लोकप्रियता को तब तो और भी चार चाँद लग गए,जब यह गीत सन 1965 में फिल्म ‘नयी उम्र की नयी फसल’ में सबके सामने आया। संगीतकार रोशन की धुनों और मोहम्मद रफ़ी के सुरों में ढलकर यह गीत इतना मशहूर हुआ कि इसकी गूँज आज तक कायम है। इसके बाद नीरज मंच के साथ साथ सिनेमा की मायावी दुनिया में भी लोकप्रिय होने लगे।

लिखे जो खत तुझेने दिया नया शिखर

सन 1968 मेँ ‘कन्या दान’ में आया नीरज का एक गीत-‘लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद मेँ’ इतना लोकप्रिय हुआ कि आज भी वह गीत कानों मेँ रस घोलने के साथ दिल-ओ-दिमाग को भी एक सुकून देता है। इस गीत के बाद तो फिल्म प्रेम पुजारी, शर्मिली, तेरे मेरे सपने, चन्दा और बिजली, पहचान, मेरा नाम जोकर और गैम्बलर में लिखे उनके गीतों की लोकप्रियता ने ऐसा शिखर छूआ कि तब कई बड़े गीतकारों की नींदें उड़ गईं थीं।

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