National Doctors Day 2023: किस डॉक्टर की याद में मनाया जाता है डॉक्टर्स डे, कैसे सुधरेंगे डॉक्टर्स और मरीज के नाजुक रिश्ते

  • प्रदीप सरदाना

 वरिष्ठ पत्रकार  

भारत एक ऐसा देश है जहां लोग डॉक्टर्स में अपना भगवान देखते हैं। आए दिन अस्पतालों में ऐसे नज़ारे देखने को मिलते रहते हैं, जब लोग डॉक्टर्स के सामने हाथ जोड़कर, रोते-गिड़गिड़ाते अपने प्रियजन को बचाने के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं। कभी मरीज स्वयं भी डॉक्टर्स से अपनी जिंदगी की भीख मांगता है- डॉक्टर मुझे बचा लो।

असल में जब भी कोई किसी बड़े रोग, दिल का दौरे या किसी बड़ी दुर्घटना से गुजरता है तो उसका बड़ा सहारा डॉक्टर ही होता है। ऑपरेशन थिएटर से सर्जरी कर जैसे ही डॉक्टर बाहर निकलता है, सभी रिश्तेदार बहुत उम्मीद से उसकी ओर भागते हैं। सिर्फ डॉक्टर्स के ये शब्द सुनने के लिए – ऑपरेशन कामयाब रहा, अब चिंता की कोई बात नहीं। ये शब्द सुनते ही एक बार फिर सभी डॉक्टर्स के सामने हाथ जोड़कर उनका धन्यवाद करने के लिए खड़े हो जाते हैं।

दुनिया में अलग अलग तारीख में मनाया जाता है डॉक्टर्स डे

ऐसा है हमारे देश में डॉक्टर्स और मरीज का रिश्ता। यूं दुनिया भर में भी अधिकतर लोग डॉक्टर्स पर भरोसा करते हैं। यही कारण है कि आज विश्व के बहुत से देशों में अलग अलग तिथियों को ‘डॉक्टर्स डे’ मनाया जाता है। भारत में डॉक्टर्स डे 1 जुलाई को मनाया जाता है तो अमेरिका और औस्ट्रेलिया में 30 मार्च को। जबकि छें में यह 19 अगस्त, कनाडा में 1 मई और ब्राज़ील में यह 18 अक्तूबर को मनाया जाता है। यदि किसी प्रोफेशन में सबसे ज्यादा सम्मान है तो वह चिकित्सक, सेना और शिक्षक के प्रति दिखाई देता है। बहुत से लोग तो इन नोबल प्रोफेशन में सिर्फ इसलिए ही आते रहे हैं कि जन सेवा और लोगों की भलाई कर सकें।

 डॉ बिधान चंद्र रॉय को करते हैं याद

हमारा एक जुलाई को डॉक्टर्स डे’ मनाने का कारण भी वह महान चिकित्सा विभूति डॉ बिधान चंद्र रॉय हैं, जिन्होंने चिकित्सा और समाज सेवा क्षेत्र में अनेक आदर्श कार्य किए। एक जुलाई 1882 को पटना में जन्मे बिधान चंद्र रॉय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से चिकित्सा विज्ञान में डिग्री के साथ लंदन से एमआरसीपी और एफआरसीपी की भी डिग्री प्राप्त की। इसके बाद सन 1911 में स्वदेश लौट, उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में ऐसे कई महान कार्य किए जो आज भी स्वर्ण अक्षरों में मौजूद हैं। डॉ रॉय ने जहां देश के दूर दराज क्षेत्रों में जाकर लोगों का इलाज किया वहाँ मेडिकल की दो बड़ी संस्थाएं ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया’ और ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।

राज्यपाल, मुख्यमंत्री भी रहे डॉ बीसी रॉय

डॉ बीसी रॉय ने स्वतन्त्रता आंदोलन में भी भाग लिया। यहाँ तक वह गांधी जी के बरसों तक चिकित्सक भी रहे। बाद में बीसी रॉय राजनीति में आ गए। वह पहले उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बने और फिर 1948 में पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री। पश्चिम बंगाल के महान वास्तुकार के रूप में भी डॉ रॉय को याद किया जाता है। वह अपने जीवन के अंत तक, करीब 14 साल तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। यह भी संयोग है कि जहां उनकी जन्म तिथि एक जुलाई है वहाँ उनका निधन भी 1962 में एक जुलाई को हुआ। डॉ बीसी रॉय के सम्मान में ही सन 1991 से भारत सरकार ने एक जुलाई को ‘डॉक्टर्स डे’ मनाने की शुरुआत की।

‘भारत रत्न’ पाने वाले देश के अकेले डॉक्टर

हमारे देश में यूं एक से एक योग्य, अच्छे, भलमानस और अपने कार्य को पूरी तरह से समर्पित डॉक्टर्स मौजूद हैं। लेकिन डॉ रॉय देश के अकेले ऐसे डॉक्टर हैं जिन्हें अपने चिकित्सा क्षेत्र की असाधारण सेवाओं के लिए, फरवरी 1961 में देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ मिला और भारत सरकार ने 1976 में उनकी स्मृति में ‘डॉ बीसी रॉय अवार्ड’ की भी शुरुआत की।

हालांकि डॉ रॉय के बाद किसी भी अन्य डॉक्टर को अपने अच्छे कार्यों के लिए ‘भारत रत्न’ नहीं मिल सका। ऐसा नहीं कि आज देश में उन जैसे समर्पित और सर्वोत्तम चिकित्सक नहीं हैं। महानगरों से गांवों तक ऐसे अनेक डॉक्टर्स हैं जो निस्वार्थ भावना से अपना जीवन जन सेवा को समर्पित करते आ रहे हैं। कुछ डॉक्टर्स रोगी के रोग की चिंता रोगी और उसके परिवार से भी अधिक करते हैं। लेकिन साथ ही आज ऐसे डॉक्टर्स भी विभिन्न मोड़ों पर मिल जाते हैं जिनके लिए रोगी सिर्फ धन कमाने का माध्यम है।

ऐसे कुछ डॉक्टर्स मरते मरीज को भी लूटने में ज़रा संकोच नहीं करते। ऐसे कुछ डॉक्टर्स की आत्मा तब भी नहीं काँपती जब अपनी जेबें भरने के लिए वह एक मृत व्यक्ति का दिखावे के लिए झूठा इलाज करते रहते हैं, जिससे मरीज से या उसके बीमे की रकम से ज्यादा से ज्यादा राशि खींची जा सके। कुछ ऐसे ही डॉक्टर्स या अस्पतालों के कारण आइडल मेडिकल प्रोफेशन इतना बदनाम हो गया है कि भलमानस और समर्पित डॉक्टर्स भी कई बार शक के दायरे में आ जाते हैं। ऐसे में जब डॉक्टर्स या अस्पताल की लापरवाही और लालच में किसी के प्रिय जन की जान चली जाती है तो उसके परिजन अपना आपा खो देते हैं। डॉक्टर्स के साथ मारपीट या अस्पताल में तोड़ फोड़ करके वे वह सब करने लगते हैं जो उनको कतई नहीं करना चाहिए।

 डॉक्टर्स डे की थीम और उसका अभिप्राय

‘इंडियन मेडिकल एसोसियशन’ की इस बार ‘डॉक्टर्स डे’ की थीम – ‘सेलेब्रेटिंग रेजिलिएन्स एंड हीलिंग हैंडस’ रखी है। जिसका अभिप्राय है “चिकित्सक तनाव और मुश्किल घड़ी में भी अपने उपचार करने वाले हाथों को जिस तरह लचीला  और सहज बनाए रखते हैं, उनकी इस विशेषता और कर्मठता का जश्न मनाए।

पिछले दिनों कोरोना काल में भी डॉक्टर्स की ऐसी अनेक तस्वीरें देखने को मिलीं। जब जीवन के इस सबसे मुश्किल दौर में उन्होंने सहज रहकर असंख्य रोगियों का अपने हाथों से उपचार किया।

भुलाए नहीं भूलेंगे ऐसे डॉक्टर्स

इसमें कोई शक नहीं ऐसे डॉक्टर्स की कमी नहीं थी जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना रोगियों को बचाने के लिए दिन रात एक कर दिये। इसी के चलते अनेक डॉक्टर्स ने अपने प्राण तक गंवा दिये। दूसरी ओर कुछ ऐसे डॉक्टर्स और अस्पताल भी मिले जिन्होंने रोगी की मजबूरी का फायदा उठाकर रोगी या उसके परिवार को खूब लूटा। इस सबके बावजूद रोगी की जान भी चली गयी। जिससे ऐसे अस्पताल और डॉक्टर्स के प्रति लोगों का आक्रोश भी खूब दिखा।

अच्छे और भले डॉक्टर्स की कमी नहीं

यह सही है कि आज भी अधिकतर डॉक्टर्स अपने मरीज को ठीक करने और उसकी जान बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। लेकिन उनके प्रयास हर हाल में सफल होंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। आज अस्पतालों में मरीजों की अधिक संख्या के चलते बहुत से डॉक्टर्स को तो भारी दबाव में काम करना पड़ता है। सरकारी अस्पताल में तो संसाधनों की कमी में भी मरीजों के बीच घिरकर डॉक्टर्स बड़ी मुश्किल से काम कर पाते हैं। ऐसे में जब डॉक्टर्स  मरीज को ठीक करने की ज़िम्मेदारी से जूझ रहे होते हैं, तब उनके साथ कोई मारपीट या गाली गलौज करे तो डॉक्टर्स भला काम कैसे करेंगे !

तभी सुधार सकेंगे मरीज और डॉक्टर्स के नाजुक रिश्ते 

उधर मरीज भी ढेरों आशाएँ लेकर किसी डॉक्टर के दरवाजे पर भागते हाँफते पहुंचता है। लेकिन यदि डॉक्टर्स मरीज की भावनाओं और जान की परवाह करने की जगह लंबा बिल बनाने के फिराक में, बेवजह महंगी जांच और सर्जरी की सलाह तक देने लगें तो रोगी हो या उसके घर वाले सब बुरी तरह टूट जाते हैं। कुछ लोग तो अपने गहने यहाँ तक अपना घर आदि तक बेचकर, इलाज़ के लिए बड़ी मुश्किल से रुपए जुटाते हैं। इसलिए डॉक्टर्स को भी यथा संभव रोगियों के रोग के साथ उनकी मानसिक और आर्थिक स्थिति को भी अच्छे से समझना चाहिए। दोनों एक दूसरे के हालात को समझेंगे तभी डॉक्टर्स और मरीज के नाजुक रिश्ते सुधर सकेंगे, तभी ‘डॉक्टर्स डे’ पर सभी अपने डॉक्टर्स के लिए दिल से दुआ करेंगे, सम्मान करेंगे।

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