निर्मला हुस्नलाल के निधन से संगीत की सुनहरी यादों का बड़ा खजाना भी चला गया, फिल्म संगीतकारों की पहली जोड़ी के हुस्नलाल की पत्नी थीं निर्मला देवी
भीमराज गर्ग
सिनेमा के महान संगीतकार रहे हुस्नलाल (Pandit Husanlal) की पत्नी निर्मला देवी (Nirmala Devi) के निधन से संगीत की दुनिया के एक युग का अंत हो गया। निर्मला देवी चाहे प्रत्यक्ष रूप से फिल्म संगीत की दुनिया से ज्यादा नहीं जुड़ी थीं। लेकिन उनके पति पंडित हुस्नलाल उस संगीतकार जोड़ी हुस्न लाल भगतराम में से एक थे जिन्होंने फिल्म दुनिया में संगीतकार जोड़ी की शुरुआत की। कई गीतों को अपनी धुनें देकर उन्हें सुपर हिट बनाया। इसलिए निर्मला देवी (Nirmala Devi) अपने पति हुस्न लाल की यादों के साथ फिल्म संगीत के कितने ही दिगज्जों की यादों को सँजोएँ थीं।
96 वर्षीय निर्मला देवी पिछले समय से अस्वस्थ चल रही थीं। इसी के चलते वह दिल्ली के एक अस्पताल में दाखिल थीं। लेकिन चिकित्सक उन्हें बचा न सके और 31 जनवरी दोपहर को उनका निधन हो गया। दिल्ली के निगम बोध घाट पर 2 फरवरी को उनके अंतिम संस्कार के समय उनके परिवार के साथ, दिल्ली के कई संगीत प्रेमी मौजूद थे।
निर्मला हुस्नलाल (Nirmala Devi) का जन्म 11 जून, 1928 को दिल्ली के एक धनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह अपने माता पिता की इकलौती बेटी थीं। साथ ही वह एक दृढ इच्छाशक्ति, सकारात्मक दृष्टिकोण, दयालु स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी भी थीं। एक गुणज्ञ संगीतकार की पत्नी होने के नाते, उन्हें शास्त्रीय संगीत का गहरा ज्ञान था।
रफी और लता मंगेशकर भी संगीत सीखने आते थे इनके घर
एक बातचीत में निर्मला जी ने बताया था कि संगीत निर्देशक शंकर उनके वर्सोवा मुंबई के विशाल बंगले पर वायलिन सीखने आते थे। अक्सर देर रात तक शंकर की चर्चा और कोचिंग चलती रहती थी। यहाँ तक शंकर अक्सर वहीं सो जाता था। ऐसे ही मुहम्मद रफ़ी, शास्त्रीय गायन में कौशल निखारने के लिए अपने तानपुरा के साथ उनके बंगले पर आते थे।
लक्ष्मीकांत प्यारे लाल की जोड़ी के लक्ष्मीकान्त भी वायलिन सीखने उनके यहाँ आते थे तो वहीं रुकते भी थे। संगीत निर्देशक खय्याम को भी उन्होंने अपने एक क्वार्टर में आश्रय दिया था। संगीतज्ञ रोशन भी अपनी दोनों पत्नियों के साथ उनके एक गैराज में रहे थे। इसी गैराज में उनकी दूसरी पत्नी इरा मोइत्रा नागरथ ने अपने बड़े बेटे राकेश रोशन को जन्म दिया था। लता मंगेशकर ने हुसन लाल जी से 6 वर्ष तक संगीत शिक्षा ली थी। यहां तक कि उस्ताद बड़े अली खान भी उनके घर आया करते थे।
अपने पति पंडित हुस्नलाल की पहली फिल्म के बारे में वह बताती थीं-” फ़िल्मकार डीडी कश्यप प्रभात फिल्म्स के लिए ‘चाँद’ (1944) का निर्देशन कर रहे थे। वह लाहौर में रह रहे पंडित अमरनाथ को बतौर संगीतकार लेना चाहते थे। लेकिन तब वह काफी व्यस्त थे। इसलिए उन्होंने अपने छोटे भाई पंडित हुस्नलाल की पुरजोर सिफारिश की, जो फ़िल्मकार पंचोली सहित लाहौर में बन रही कुछ फिल्मों के संगीत में वह सहायक थे।
पंडित हुस्नलाल की प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए एक संगीत सत्र का आयोजन किया गया। वहाँ पं. हुस्नलाल की प्रतिभा देख कश्यप ने उन्हें अनुबंधित कर लिया। पं. अमरनाथ ने कश्यप को एक और सुझाव दिया कि वह पं. भगतराम को भी अपने साथ शामिल कर लें। कुछ झिझक के बाद, कश्यप ने दोनों भाइयों को ले लिया। इस प्रकार हुस्नलाल-भगतराम की जोड़ी बन गयी।
निर्मला देवी से विवाह के बाद हुस्नलाल के यहाँ दो पुत्र दिनेश प्रभाकर और राकेश प्रभाकर के साथ एक बेटी प्रियंवदा का जन्म हुआ। बड़े बेटे दिनेश प्रभाकर प्रसिद्द वायलिन वादक होने के साथ अच्छे गायक भी हैं । वह भारत सरकार के फिल्म प्रभाग में संगीत निदेशक के पद पर बरसों काम करते रहे। फिर सेवानिवृत्त होने के बाद वह न्यूयॉर्क जाकर अमेरिका में संगीत साधना और शिक्षण में जुटे हैं।
पंडित हुस्नलाल एक निपुण वायलिन वादक और अच्छे शास्त्रीय गायक थे। फिल्म इंडस्ट्री की पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम ने भारतीय फिल्म संगीत जगत में अपनी मधुर धुनों के जादू से श्रोताओं को मदहोश कर दिया था। आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी को प्रारंभिक सफलता दिलाने में हुस्नलाल-भगतराम का अहम योगदान रहा था।
वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद इस जोड़ी ने देशभक्ति के जज्बे से परिपूर्ण ‘सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की अमर कहानी’ गीत की सरंचना की थी। सुप्रसिद्ध संगीतकार जोडी शंकर जयकिशन ने हुस्नलाल-भगतराम से ही संगीत की शिक्षा हासिल की थी। मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत भी हुस्नलाल भगतराम से वायलिन बजाना सीखा करते थे।
हुस्नलाल का जन्म 1920 में पंजाब में जालंधर जिले के काहमां गांव में हुआ था। बचपन से ही उनका रूझान संगीत की ओर था। हुस्नलाल वायलिन बजाने में रुचि रखते थे। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने बड़े भाई और संगीतकार पंडित अमरनाथ से हासिल की थी। इसके अलावा उन्होंने पंडित दिलीप चंद वेदी से से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी।
हुस्नलाल-भगतराम ने 1944 में फिल्म “चांद” के बाद कई फिल्मों के लिए संगीत देने के साथ फिल्म संगीत में कई नए प्रयोग भी किए। उस दौर में कुछ संगीत निर्देशक शास्त्रीय संगीत की राग-रागिनी पर आधारित संगीत दिया करते थे, परन्तु हुस्नलाल भगतराम इसके पक्ष में नहीं थे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत में पंजाबी धुनों का मिश्रण करके एक अलग तरह का संगीत देने का प्रयास किया और उनका यह प्रयास काफी सफल भी रहा।
वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म “प्यार की जीत” में अपने संगीतबद्ध गीत ‘एक दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा’ की अभूतपूर्व सफलता के बाद हुस्नलाल भगतराम फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। यह गीत आज भी दर्द भरे गीतों में विशिष्ट स्थान रखता है।
उधर 1950 में प्रदर्शित फिल्म “बड़ी बहन” के गीत ‘चुप चुप खडे हो जरूर कोई बात है’ की सफलता से तो हुस्नलाल. भगतराम फिल्म इंडस्ट्री के शिखर के संगीतकारों में शुमार हो गये। लेकिन 1960 के दशक में पाश्चात्य गीत संगीत की धमक से हुस्नलाल भगतराम ने अपना मुख मोड़ लिया।
इसके बाद हुस्नालाल (Pandit Husanlal) पहाड़गंज दिल्ली के अपने घर में आ गये और आकाशवाणी में काम करने लगे। लेकिन 28 दिसंबर 1968 को हुस्नलाल का निधन हो गया। तब से निर्मला देवी (Nirmala Devi) अपने पति और फिल्म संगीत की बेशुमार यादों से उस दौर को ताजा किए रहती थीं। लेकिन अब उन यादों को सुनाने वाली भी नहीं रहीं।