International Womens Day 2024: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पूनम सागर की कविता ‘अच्छी नहीं लगती’

अच्छी नहीं लगतीं

  • पूनम सागर

ये फ़िजूल की दुश्वारियाँ अच्छी नहीं लगतीं।
ये फितूर सी परिपाटियाँ अच्छी नहीं लगातीं।

यूं ही बिंदास घूम आऊं दिलकश लिबास में,
जहाँ को ये मनमर्ज़ियाँ अच्छी नहीं लगतीं।

ऑफिस से घर आ खाना मुझे ही बनाना है,
मुझ पर ही जिम्मेदारियां अच्छी नहीं लगतीं।

वालिदानों से वसीयत पर बेटियों को गिला,
ज़ायदाद में ज्यादतियां अच्छी नहीं लगतीं।

कोई भी रिश्ता इंसानियत से ऊपर ना हो,
सास बहू में तल्ख़ियां अच्छी नहीं लगतीं।

अब सीख लो तुम ड्राइविंग खुद ही आना जाना,
निर्भर जनानी सवारियां अच्छी नहीं लगतीं।

मेरी रूह मेरे जिस्म को बेखौफ रहने दो,
सरेराह कसती फब्तियां अच्छी नहीं लगतीं।

बख्श दे खुदा कुछ दिन यह दुश्ववारी मर्दों को,
ये फिज़ूल की महावारियां अच्छी नहीं लगतीं।

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