World Television Day: कहां से कहां आ गए हम, विश्व टेलीविज़न दिवस मनाने का संयुक्त राष्ट्र में पहले हुआ था विरोध, देश में कभी एक चैनल था आज हैं इतने चैनल

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म टीवी समीक्षक  

                                                                                                        

पूरा विश्व आज ‘विश्व टेलीविजन दिवस’ मना रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव पारित होने के बाद पहला ‘विश्व टेलीविजन दिवस’ 21 नवम्बर 1997 को मनाया गया था. इस प्रकार इस वर्ष यह 26 वां वां विश्व टेलीविजन दिवस है.

यूँ जब 17 दिसम्बर 1996 को संयुक्त राष्ट्र संघ में 21 नवम्बर को विश्व टेलीविजन दिवस मनाने का प्रस्ताव रखने के बाद मतदान किया था तो इस दिवस के विरोध में 11 सदस्य उपस्थित नहीं हुए और जर्मनी ने तो विरोध करते हुए यह तक कह डाला था कि जब प्रेस और उसकी स्वतंत्रता  को लेकर पहले ही विभिन्न तीन दिवस आयोजित हो रहे हैं तो विश्व टेलीविजन दिवस मनाने का क्या औचित्य है. क्योंकि टीवी एक तो सिर्फ और सिर्फ सूचना का माध्यम है और दुनिया में अधिकांश लोगों के पास टीवी ही नहीं है तो इस दिवस को मनाने की क्या सार्थकता रहेगी.

असल में जर्मनी तब रेडियो को अधिक महत्व दे रहा था और टीवी के आने वाले कल को समझ नहीं पा रहा था. जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना था कि यह दिवस हम टीवी सेट के लिए नहीं बल्कि टीवी के बढ़ते प्रभाव उसके स्वरुप को लेकर मनाना चाहते हैं. जिससे दुनिया के सभी देशों को टीवी पर विश्व शान्ति, सुरक्षा, आर्थिक और सामजिक मामलों पर कार्यक्रम दिखाने पर जोर दिया जा सके. साथ ही टीवी के माध्यम से विश्व सभ्यता और कला संस्कृति आदि को भी जाना जा सके.

जाहिर है संयुक्त राष्ट्र भविष्य में टीवी की बढती भूमिका को समझ गया था. विश्व टेलीविजन दिवस को 21 नवम्बर को आयोजित करने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि 21 नवम्बर को ही संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार वर्ल्ड टेलीविजन फोरम का आयोजन किया था. यहाँ यह भी दिलचस्प है कि जो जर्मनी तब टीवी के बढ़ते प्रभाव को नहीं समझ सका आज उसी का समाचार और सूचना का चैनल डी डव्लू यूरोप, एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे पांच महाद्वीप में अपने पाँव पसार चुका है. यहाँ तक भारत में भी यह चैनल प्रसारित हो रहा है.

हम अपने देश भारत की ही बात करें तो टीवी की लोकप्रियता, उपयोगिता और सार्थकता देखते ही बनती है. जबकि हमारे यहाँ भी बरसों पहले इसके इतने बड़े विकास और इतनी बड़ी शक्ति होने की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. ध्यान से देखा जाए तो हमारे यहाँ टीवी शून्य से आरम्भ हुआ और आज वही टीवी शिखर को छू रहा है. जिस टीवी की कभी इडियट बॉक्स –बुद्धू बक्सा कहकर उपेक्षा की जाती थी, उसका और उसके कार्यक्रमों का मज़ाक बनाया जाता था. या फिर कुछ लोग इसे विलासिता और बेकार के मनोरंजन का साधन ही मानते थे आज वही टीवी लोगों की बड़ी जरुरत बन गया है. सच्चाई तो यह है कि रोटी कपड़ा और मकान के बाद मोबाइल फोन और टीवी हमारी एक ऐसी जरुरत बन गए जिनके बिना जिंदगी दुश्वार सी है, बेकार सी है.

64 बरस पहले आया था देश में दूरदर्शन

हमारे देश में टेलीविजन की शुरुआत 15 सितम्बर 1959 को दूरदर्शन के रूप में एक बहुत ही छोटे रूप और सादगी भरे कार्यक्रम में हुई थी. हालांकि विश्व में टीवी की शुरुआत 1920 के दशक में ही हो गयी थी. टीवी का पहला प्रयोग इसके अविष्कारक स्कॉटलेंड के जे एल बेयर्ड ने 26 जनवरी 1926 को किया था. लेकिन बेयर्ड के आविष्कार को टीवी सेट का स्वरुप अमेरिका के फिलो फर्न्सवर्थ ने किया जो तब मात्र 21 वर्षीय युवक था. इसके बाद 13 जनवरी 1928 को न्यूयॉर्क की जनरल इलेक्ट्रिक फैक्ट्री ने विश्व का पहला टीवी स्टेशन स्थापित कर इसके प्रसारण का प्रयोग किया. लेकिन आमजन के लिए इसके प्रसारण लन्दन में बीबीसी द्वारा 2 नवम्बर 1936 को आरम्भ किये गए. यानी विश्व के प्रथम प्रसारण के करीब 23 साल बाद भारत में टीवी पहुंचा,

रामायण’-‘महाभारतने दिया लोकप्रियता को नया शिखर

जबकि तब तक अमेरिका और ब्रिटेन सहित बहुत से देशों में टीवी का रंगीन युग आरम्भ हुए भी 6 वर्ष हो गए थे. लेकिन हमारे यहाँ रंगीन टीवी 15 अगस्त 1982 को तब शुरू हुआ जब हमने नवम्बर 82 में देश में एशियाई खेलों का आयोजन करते हुए अपने प्रसारण को भी हमने रंगीन करने की ठानी थी. लेकिन रंगीन टीवी से पहले ही दूरदर्शन अपने चित्रहार और रविवार की फिल्म जैसे कार्यक्रमों से लोकप्रिय हो गया था। लेकिन टीवी ने रफ्तार तब पकड़ी जब 1984 में दूरदर्शन पर ‘हम लोग’ से सीरियल युग शुरू हुआ। सन 1987 में दूरदर्शन पर रामानन्द सागर के ‘रामायण’ और 1988 में बी आर चोपड़ा के ‘महाभारत’ सीरियल के बाद तो देश में टीवी क्रान्ति हो गयी। साथ ही बुनियाद, कथा सागर, यह जो है जिंदगी, करम चंद, कहाँ गए वो लोग  चंद्रकांता  और फौजी जैसे कई सीरियल ने दूरदर्शन की लोकप्रियता को एक नया शिखर दे दिया।

सुभाष चंद्र ने बदली टीवी की दशा और दिशा  

यहाँ यह भी दिलचस्प है कि देश में दूरदर्शन की स्थापना के 25 बरस बाद तक देश में सिर्फ एक चैनल था. शुरुआत में कार्यक्रम भी मात्र एक घंटे के आते थे जो बाद में एक घंटे,दो घंटे और चार घंटे होते होते बरसों बाद 24 घंटे तक पहुंचे. वह भी तब जब देश में 2 अक्टूबर 1992 को जी टीवी ने देश के पहले निजी सेटेलाइट चैनल के रूप में आकर भारत में टीवी की दशा और दिशा दोनों बदल दी. देश में इस बदलाव का बड़ा श्रेय जी टीवी के संस्थापक सुभाष चंद्र को जाता है. जिन्होंने पहले अपने ज़ी टीवी चैनल पर ‘अमानत’ और ‘अंताक्षरी’ जैसे कार्यक्रमों से दर्शकों को कुछ अलग परोसा। फिर अपने ज़ी न्यूज़ चैनल से भी समाचारों को एक नए युग में ले गए। इसका नतीजा यह निक्ला कि सात बरस बाद ही सन 1999 में  देश में 40 निजी सेटेलाइट चैनल्स हो गए थे. इससे सन 2000 में भारत दुनिया का सबसे बड़ा केबल और सेटेलाइट बाज़ार बन गया.

न्यूज़ चैनल्स ने निभाई बड़ी भूमिका

टीवी को चाहे पहली लोकप्रियता फिल्म और फिल्मों से जुड़े कार्यक्रमों से मिली और बाद में टीवी सीरियल्स से। क्योंकि समाचारों के लिए पहले सभी ज़्यादातर रेडियो और समाचार पत्रों पर निर्भर करते थे। लेकिन जब जाने माने पत्रकार एस पी सिंह ने दूरदर्शन पर समाचारों का एक निजी बुलेटिन ‘आजतक’ के नाम से शुरू किया, तो उसे बेहद पसंद किया गया। बाद में इंडिया टुड़े समूह ने ‘आज तक’ नाम से अपना अलग एक न्यूज़ चैनल शुरू किया तो इसे बहुत लोकप्रियता मिली।

इसी दौरान वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा भी अपने ‘आपकी अदालत’ कार्यक्रम से ज़ी टीवी पर आए तो वह भी काफी लोकप्रिय हो गया। बाद में रजत शर्मा ने भी ‘इंडिया टीवी’ के नाम से अपना न्यूज़ चैनल शुरू किया तो उन्होंने भी सफलता का नया इतिहास लिख दिया।

इन दिनों ज़ी न्यूज़, आज तक, इंडिया टीवी एबीपी न्यूज़ , टीवी 9 भारत वर्ष, टाइम्स नाऊ नवभारत, न्यूज़ 18 इंडिया और रिपब्लिक भारत जैसे कई निजी हिन्दी चैनल सफलता लोकप्रियता की नयी कहानी लिख रहे हैं। अँग्रेजी और प्रादेशिक न्यूज़ चैनल्स की भी कमी नहीं। इधर दूरदर्शन का डीडी न्यूज़ भी अपने पुराने संकीर्ण दायरे से उठकर समाचारों का विश्वसनीय चैनल बन गया है।

अब जहां दूरदर्शन के अशोक श्रीवास्तव, ममता चोपड़ा जैसे चेहरे अच्छे खासे लोकप्रिय हो गए हैं। वहाँ सुधीर चौधरी, श्वेता सिंह, नाविका कुमार, अर्नब गोस्वामी, सुशांत सिन्हा, दीपक चौरसिया,रूबिका लियाकत, अंजना ओम कश्यप,  चित्रा त्रिपाठी, अमीश देवगन, अमन चोपड़ा, किशोर आजवानी, निशांत चतुर्वेदी, सुमेरा खान और रोमाना इसार खान  अपने अपने अंदाज़ से न्यूज़ स्टार बन गए  हैं। हालांकि न्यूज़ की दुनिया में आज दो लोगों के ना रहने की कमी बेहद खलती है। एक एस पी सिंह जिन्होंने निजी समाचार चैनल की बड़ी कल्पना की पहल की। दूसरे रोहित सरदाना जिन्होंने समाचारों को नए तेवर दिये।

कभी एक चैनल था आज 905 सेटेलाइटस चैनल हैं

आज देश में  कुल 905 सेटेलाइट्स चैनल्स हो गए हैं. इनमें लगभग 400 तो सिर्फ समाचार और सामयिक विषयों के चैनल्स हैं. जबकि बाकी में सामान्य मनोरंजन के साथ सिनेमा, संगीत, खेल,ज्ञान विज्ञान, धर्म-अध्यात्म, खान पान, जीवन अंदाज, स्वास्थ्य और फैशन सहित बच्चों आदि के चैनल्स भी हैं.

जबकि दूरदर्शन के भी आज अपने 34 सेटेलाइट्स चैनल्स विभिन्न भाषाओँ में अलग से चल रहे हैं. टीवी के देश विदेश के इन विभिन्न चैनल्स के माध्यम से दुनिया की दूरियां सिमट कर रह गयी हैं. पलक झपकते हे हमको विश्व में कहीं भी घटी कोई घटना तपाक से मिल जाती है. आज टीवी देश में ही नहीं विश्व में भी सिर्फ सूचना का ही नहीं ज्ञान और मनोरंजन का भी ऐसा केंद्र बन गया है जिसके दर्शन मात्र से पूरी दुनिया मुट्ठी में लगती है.

(लेखक देश में टीवी पर नियमित पत्रकारिता शुरू करने वाले पहले पत्रकार हैं)

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