भारतीय भक्ति साहित्य के हर शब्द के पीछे एक दर्शन है: उल्फ़त मुहीबोवा

Edit by: Kritarth Sardana साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित प्रवासी मंच कार्यक्रम में बुधवार 10 जनवरी को ताशकंद से आईं विद्वान उल्फ़त मुहीबोवा ने मध्यकालीन हिंदी साहित्य पर अपना आलेख प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने उनका स्वागत अंगवस्त्रम् एवं साहित्य अकादेमी के प्रकाशन भेंट करके किया।

उल्फ़त मुहीबोवा जोकि ताशकंद राजकीय प्राच्य विद्या संस्थान में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में हिंदी की प्रोफे़सर है, ने मध्यकालीन भक्ति साहित्य के बारे में अपने शोध को श्रोताओं से साझा किया। ज्ञात हो कि उल्फ़त मुहीबोवा ने हिंदी भक्ति साहित्य पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि मेरे शोध से उज्बेकिस्तान के पाठकों को यह स्पष्ट हुआ कि संत और भक्त में, निर्गुण और सगुण में क्या अंतर होता है। मेरे शोध से वो यह भी समझ पाए कि मध्यकालीन या भक्ति साहित्य ब्रज, अवधी के अलावा फ़ारसी और तुर्की में रचा गया तथा उसमें जैन कवि भी शामिल थे।

अपनी बात स्पष्ट करते हुए उल्फ़त मुहीबोवा ने कहा कि भक्ति साहित्य के हर शब्द के पीछे एक दर्शन है, जो मुझे अपने देशवासियों को समझाना था। उन्होंने भक्ति साहित्य के लोकप्रिय कवियों आदि कबीर, सूर, तुलसी के अतिरिक्त अपने शोध को दादू दयाल, मलूक दास और रज्जब आदि तक विस्तार दिया है।

इस दौरान कार्यक्रम में उपस्थित व्यक्तियों ने उनसे कई जिज्ञासाएँ प्रस्तुत कीं, जो कि सामान्यतः उज्बेक साहित्य और उज्बेक भाषा एवं सोशल मीडिया तथा उसके अनुवाद को लेकर थीं।

उल्फ़त मुहीबोवा ने कहा कि जब विभिन्न देशों में उज्बेक भाषा पढ़ाई जानी शुरू होगी तभी अनुवाद का कार्य गति पकड़ सकेगा। अभी अनुवाद की मात्रा बेहद कम है।

उज्बेक साहित्य में भक्ति साहित्य की उपस्थिति के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए वह बोलीं उनके देश में यह 15वीं शताब्दी में शुरू हुआ। वर्तमान में भक्ति साहित्य की प्रासंगिकता के बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति साहित्य अभी केंद्र में नहीं है, लेकिन यह कभी ख़त्म नहीं होगा, क्योंकि इसमें व्याप्त दर्शन की भावना सभी के बीच एकात्म और सहिष्णुता का संदेश देती है।

कार्यक्रम में प्रदीप सरदाना, देवेंद्र चौबे, रश्मि चौधरी, राजेश पासवान और आशीष पांडेय सहित कुछ और भी लेखक, पत्रकार, शिक्षाविद और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

साहित्य अकादेमी के संपादक अनुपम तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन बेहद खूबसूरती के साथ किया। साथ ही उन्होंने कहा उल्फ़त मुहीबोवा जब अगली बार भारत आयें तब भी हम फिर से उनके साथ एक कार्यक्रम रखना चाहेंगे।

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