सत सोनी की बात ही कुछ और थी,एक ऐसे पत्रकार, ऐसे संपादक जिनके बारे में सभी पत्रकारों, सभी पाठकों को जानना चाहिए

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार, समीक्षक  

मैंने हाल ही में अपनी  पत्रकारिता के 49  बरस पूरे करके 50 वें वर्ष  में प्रवेश किया है। अपनी पत्रकारिता की इस यात्रा में, मैंने देश के लगभग 25 शिखर संपादकों के साथ काम किया है। उनमें कुछ संपादकों को महान कहकर भी संबोधित किया जाता रहा है।

इधर मैं स्वयं भी पिछले 30  बरसों से ‘पुनर्वास’ का संपादक रहा हूँ । उससे पहले 1978 में देश के सबसे कम उम्र के संपादक होने का श्रेय भी मेरे नाम है। लेकिन आज जिन संपादक की बात कर रहा हूँ, मैं उन्हें एक आदर्श, एक अद्धभुत, और एक अविस्मरणीय संपादक कहना चाहूँगा। एक ऐसे पत्रकार, संपादक जिनके बारे में पत्रकारिता के सभी विद्याथियों के साथ सभी पत्रकारों, संपादकों को जानना ही चाहिए। पत्रकारिता के पुरोधा रहे इन दिग्गज संपादक का नाम है- सत सोनी। हालांकि सत सोनी (Sat Soni) ने पिछले वर्ष 26 मई को, 90 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आज उनकी प्रथम पुण्य तिथि है। लेकिन उनके बेमिसाल कार्य और उनकी बातें बरसों-बरसों तक याद की जाती रहेंगी।

सत सोनी (Sat Soni) का जन्म 25 अगस्त 1932 को बर्मा (अब म्यांमार) के सबसे खूबसूरत महानगर मांडले में हुआ था। कुल 6 बहन-भाइयों में सबसे छोटे सत सोनी के पिता शिव चरण दास वहाँ बर्मा रेलवे में काम करते थे। लेकिन 1944 में जब जापान,बर्मा पर आक्रमण करने वाला था तो तभी इनका परिवार भारत आ गया। यहाँ ये कोलकाता में कुछ दिन रुक जालंधर आ गए,जहां इनकी मांसी रहती थीं। सत सोनी तब सिर्फ 12 साल के थे। जालंधर में अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान इन्होंने हिन्दी के साथ उर्दू भी सीख ली।

सोनी जी के पत्रकारिता करियर की शुरुआत 1951 में उर्दू दैनिक ‘मिलाप’ के साथ हुई। बाद में वह देश के प्रतिष्ठित प्रकाशन ‘टाइम्स ऑफ इंडिया समूह’ के ‘नवभारत टाइम्स’ (Navbharat Times) में नियुक्त हो गए। नभाटा के अपने शुरुआती दौर में सोनी जी ने पहले अक्षय कुमार जैन और फिर अज्ञेय और आनंद जैन जैसे प्रतिभाशाली संपादकों के साथ बरसों काम किया। एक अंतराल के बाद वह राजेन्द्र माथुर और एसपी सिंह सरीखे संपादकों के दौर में,नभाटा में समाचार संपादक भी रहे। लेकिन अपने शुरुआती दौर से ही सोनी जी ने अपनी कर्मठता, योग्यता,लग्न और मधुर व्यवहार से पत्रकारिता में विशिष्ट पहचान बना ली। वह देश के हिन्दी के ऐसे पहले पत्रकार भी बने जिन्हें ‘टाइम्स लंदन फाउंडेशन स्कॉलरशिप’ के लिए चुना गया। इसी दौरान 1960 में मॉडल टाउन,दिल्ली में अपने घर के ठीक सामने रहने वाली युवती उर्मिला से इन्होंने विवाह रचा लिया।

सांध्य टाइम्स’ ने बदल दी ज़िंदगी

उधर सोनी जी के करियर में एक बड़ा मोड़ तब आया जब ‘टाइम्स समूह’ ने 17 दिसंबर 1979 को दिल्ली से ‘सांध्य टाइम्स’ का प्रकाशन आरंभ किया। दिल्ली में तब हिंदुस्तान टाइम्स समूह का ‘इवनिंग न्यूज़’ और मुंबई में ‘मिड डे’ जैसे सांध्य कालीन अँग्रेजी अखबार प्रसिद्द थे। लेकिन हिन्दी में कोई भी बड़ा सांध्य कालीन अखबार नहीं था। यूं ‘सांध्य टाइम्स’ के संपादक के रूप में तब ‘नवभारत टाइम्स’ के संपादक आनंद जैन का नाम जाता था। सोनी जी शुरू में ‘सांध्य टाइम्स’ के प्रभारी थे। लेकिन आनंद जैन ने ‘सांध्य टाइम्स’ की अधिकतर ज़िम्मेदारी सत सोनी को सौंपी हुई थी।

सत सोनी ने अपनी काबलियत से पाठकों की नब्ज़ को ऐसा पकड़ा कि एक बरस में ही असंख्य पाठक ‘सांध्य टाइम्स’ (Sandhya Times) के दीवाने हो गए। यह एक ऐसा अखबार बन गया, जिसकी कल्पना प्रबन्धकों ने स्वप्न में भी नहीं की थी। दिल्ली के अधिकांश बाज़ारों की लगभग हर दूसरी दुकान पर दोपहर बाद ‘सांध्य टाइम्स’ होता था। दिल्ली के अधिकतर चौराहे पर हॉकर ‘सांध्य टाइम्स’ बेचते दिखाई देते थे। सफर बस का हो या रेल का कितने ही घर लौटते यात्रियों को ‘सांध्य टाइम्स’ पढ़ते हुए देखा जा सकता था। यहाँ तक कितने दफ्तरों में भी दोपहर बाद ‘सांध्य टाइम्स’ मँगवाने की परंपरा सी बन गयी थी। कुल मिलाकार सड़क से लेकर संसद तक इस अखबार की धूम हो गयी।

‘सांध्य टाइम्स’ इतना लोकप्रिय हो गया कि इसकी प्रसार संख्या डेढ़ लाख के पार तक पहुँच गयी। यह सब देख बैनेट कोलमेन कंपनी ने ‘सांध्य टाइम्स’ को ‘नवभारत टाइम्स’ की अधीनस्था से मुक्त कर,सोनी जी को इसका सम्पूर्ण संपादक बना दिया। स्थिति यह हो गयी कि देश के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले इस सांध्य दैनिक की सफलता का रहस्य जानने के लिए, देश के कई पत्रकार-संपादक ही नहीं विदेशी मीडिया से भी सोनी जी का इंटरव्यू करने के लिए दिल्ली आने लगे।

मैं ‘सांध्य टाइम्स’ और सोनी जी से 42 बरसों तक जुड़ा रहा। इसलिए जानता हूँ कि यह चमत्कार किसी जादू से नहीं, सोनी जी की पूर्णतः समर्पण भावना से हुआ। वह उठते बैठते,सोते जागते,खाते-पीते,घूमते-फिरते बस ‘सांध्य टाइम्स’ के लिए सोचते थे। वह सुबह सवेरे जब दफ्तर पहुँचते तो उनकी बगल में देश-विदेश के कई अखबारों का बंडल होता था। जब शाम को घर लौटते तो तब भी उनकी बगल में कितने ही अखबार दबे होते थे। जिससे दुनिया के किसी भी अखबार में कोई ऐसी खबर छपी हो जो अहम और दिलचस्प हो तो उसे ‘सांध्य टाइम्स’ के पाठकों तक पहुँचना ही चाहिए।

जबकि प्रायः संपादक सिर्फ अपने पत्रकारों, लेखकों और न्यूज़ एजेंसी पर ही निर्भर रहते हैं। लेकिन सोनी जी हर रोज अपनी बगल में दुनिया समेटे होते थे। इससे ‘सांध्य टाइम्स’ में रोज ऐसी कई खबरें होती थीं जो दिल्ली या कभी देश के किसी अन्य अखबार में नहीं होती थीं। सोनी जी ऐसी खबरों के लिए देश-विदेश के कितने ही अखबारों को घंटों खंगालते थे। फिर खुद ही उन खबरों का हिन्दी अनुवाद करते थे।हिन्दी, अँग्रेजी और उर्दू तीन भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। फिर पंजाबी तो उनकी अपनी जुबान थी ही।

सोनी जी की एक विशेषता यह भी थी कि बाहर निकलने पर एक कैमरा भी अक्सर उनके कंधों पर होता था। जिससे कुछ भी अद्धभुत उनके कैमरे में कैद हो सके। अगले दिन वही फोटो ‘सांध्य टाइम्स’ में हजारों-लाखों पाठकों का आकर्षण होती थी।

ऐसा संपादक शायद ही कोई हो जो रिपोर्टर, फोटोग्राफर, उपसंपादक, प्रसार अधिकारी, यहाँ तक चपरासी का काम भी खुद ही करे। हालांकि उनके तहत पूरी टीम थी। फिर भी वह स्वयं अखबार के लिए खबरें, फोटो तो जुटाते ही थे। अधिकतर खबरों और लेखों का शीर्षक भी वह खुद ही देखते थे। साथ ही पहले और अंतिम पृष्ठ सहित कुछ और भी पृष्ठ वह खुद ही बनवाते थे। यहाँ तक कॉपी को प्रेस में पहुंचाने के लिए कोई चपरासी इधर उधर होता था, तो वह उसकी इंतज़ार न करके स्वयं ही वह कॉपी कम्पोजिंग यूनिट में दे आते थे।

इतना ही नहीं हर रोज सर्कुलेशन में फोन करके वह यह भी जरूर पूछते थे कि आज का ‘सांध्य टाइम्स’ का प्रिंट ऑर्डर कितना था। कभी 500 प्रतियाँ भी कम छपतीं तो वह बेचैन से हो जाते थे।

शीर्षक पर देते थे ज़ोर

‘सांध्य टाइम्स’ की सर्वाधिक बिक्री और लोकप्रियता का कारण उसका कंटेन्ट, पाठ्य सामग्री तो थी ही। लेकिन एक बड़ा कारण समाचार,लेखों के शीर्षक भी थे। वह हर खबर के शीर्षक पर ज़ोर देते थे। शीर्षक आकर्षक होने से पाठक खबर पढ़ते और अखबार भी खरीद्ते।

जैसे एक बार भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा की यदि भाजपा की केंद्र में सरकार बनती है तो कुछ बड़े राज्यों को विभाजित करेंगे। इस खबर पर सोनी जी ने शीर्षक दिया-‘’बड़ी गद्दी मिली तो बड़े राज्यों को छोटा करेंगे।‘’

मेरी खबरों और लेखों पर भी उन्होंने कई दिलचस्प शीर्षक लगाए। एक बार मैंने नगर पालिका मार्किट यशवंत पैलेस की समस्याओं पर लेख लिखा तो सोनी जी ने उसका शीर्षक दिया-‘’यशवंत पैलेस- जहां से दुकानदार और ग्राहक दोनों भाग रहे हैं।‘’ ऐसे ही उन दिनों महानगर टेलीफोन निगम की मॉर्निंग अलार्म सेवा पर मैंने एक स्टोरी की तो उसका शीर्षक दिया-‘’टेलीफोन हर सुबह तीन हज़ार लोगों को जगाता है।‘’

हालांकि तब कुछ लोग सोनी जी के दिये हुए दिलचस्प और तुकबंदी और खबर पढ़ने को लेकर उत्सुकता जगाने वाले शीर्षकों की दबे स्वरों में आलोचना भी करते थे। लेकिन देखा जाये तो आगे चलकर उनके इस अंदाज़ को देश के कई अखबारों ने अपनाया। कई टीवी चैनल्स भी अब आकर्षक शीर्षक देना पसंद करते हैं। यहाँ तक वैबसाइट और न्यूज़ पोर्टल तो इसी तरह के शीर्षकों पर ही टिके हैं। लेकिन इस परंपरा के जनक सत सोनी ही हैं।

पाठकों के विचार सर्वोपरि

सत सोनी ने पाठकों के हितों और विचारों को सदा सर्वोपरि रखा। पाठकों की क्या समस्याएँ हैं और वे अखबार में क्या पसंद करते हैं,क्या नहीं, इस पर  उन्होंने ‘सांध्य टाइम्स’ में एक विशेष स्तम्भ ‘लोग कहते हैं’ भी शुरू किया। इसके लिए इतने पत्र मिलते कि कभी एक तो कभी दो पूरे पृष्ठ इस स्तम्भ को समर्पित हो जाते थे। इस स्तम्भ का प्रभाव सरकारी कार्यालयों,मंत्रालयों तक में इतना था कि पत्र छपने के बाद अधिकतर समस्याएँ जल्द ही हल हो जाती थीं।

साथ ही सोनी जी इतने मददगार और व्यवहार कुशल थे कि उनके पास अक्सर मिलने वालों का मेला लगा रहता था। इस चक्कर में अपने काम का निबटारा करने के लिए,उन्हें देर शाम तक दफ्तर में बैठना पड़ जाता था। पीआरओ तो इनके इतने मुरीद थे कि उन्हें भरोसा था कि सोनी जी के पास उनकी भेजी खबर पहुँच जाये तो वह अखबार में जरूर प्रकाशित हो जाएगी।

लतीफों का खजाना था उनके पास   

काम की अत्यंत व्यस्तताओं के बावजूद सोनी जी हंसी मज़ाक के लिए भी वक्त निकाल लेते थे। लतीफे सुनाने ही नहीं लतीफे लिखने का भी उन्हें काफी शौक था। वह कहते थे दिन भर के थके हारे जब शाम को अपने सफर या घर में ‘सांध्य टाइम्स’ पढ़ें तो उन्हें हल्की फुलकी, हंसी मज़ाक की कुछ खबरें भी जरूर मिलें। इसके लिए वह पाठकों के भेजे चुट्कुले तो कभी विदेशी ‘जोक्स बुक्स’ से और कभी खुद मुहम्मद तुगलक के नाम से भी लतीफे छापते थे। सही मायनों में उनके पास लतीफों का बड़ा खजाना था।

यूं उन्हें कोई पहली बार मिले तो उनका शानदार व्यक्तित्व देख उनसे बात करने में भी घबराता था। पतले-दुबले,लंबे,गोरे-चिट्टे,आँखों पर चश्मा,ऊपर से सलीके से क्रीज़ किए हुए उजले कपड़े और कभी मुंह में सिगार हो तो वह बड़े अंग्रेज़ पत्रकार ही लगते थे। लेकिन जब किसी से घुल मिल जाते थे तो उनका अंदाज़ निराला होता था। हर कोई सोचता सोनी जी उसके दोस्त बन गए हैं। वह किसी अपने प्रिय के अपने पास आने पर उसे देखते ही बोलते- आओ प्यारे, क्या हाल हैं। वह सोशल भी इतने थे कि अंत तक अपने दोस्तों,पुराने सहकर्मियों के यहाँ दुख सुख में हर हाल में पहुँचते रहे। लेकिन यहाँ यह भी बता दें,यदि कोई उनके साथ अभद्रता कर देता तो वह उसे हरकाने में भी देर नहीं लगाते थे।ऐसे कुछ लोगों को न वह कभी माफ करते,न ही फिर कभी अपने पास फटकने देते।

75 की उम्र में फिर बने संपादक

यूं सोनी जी सन 2002 में अपनी 60 की उम्र में रिटायर हो जाते। लेकिन ‘सांध्य टाइम्स’ को उन्होंने अपने संपादन से जिस तरह शिखर पर ला दिया था, उसे देख कंपनी उन्हें लगातार 9 साल तक नौकरी विस्तार देती रही। उसके बाद ‘सांध्य टाइम्स’ में नए संपादक आ गए। लेकिन करीब 5 साल बाद कंपनी को लगा कि सोनी जी की बात ही कुछ और थी। इसलिए टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे बड़े संस्थान ने सोनी जी को 2007 में एक बार तब फिर से ‘सांध्य टाइम्स’ का संपादक बना दिया,जब वह 75 बरस के थे। टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में ऐसी कोई दूसरी मिसाल दूर दूर तक नहीं मिलती।

विद्यार्थियों को पढ़ाते थे सीधा पाठ

पत्रकारिता के विद्यार्थियों को वह जब भी पढ़ाते तो उन्हें सीधा और सरल पाठ पढ़ाते थे। वह कहते थे कि जब भी कोई स्टोरी,लेख लिखो तो शुरू में उसकी लंबी चौड़ी भूमिका मत बांधों। नहीं तो पाठक असली खबर तक पहुँचने से पहले ही सो जाएगा या उबासी लेने लगेगा। अपनी बात सीधे सपाट कहो।

पत्रकारिता से अलग हटकर वह होम्योपैथी के भी अच्छे जानकार थे। बहुत से लोग अक्सर उनसे दवाई या परामर्श लेने के लिए आते थे। सोनी जी एक और खास बात कहते थे –‘’यदि किसी काम को करने में कोई नुक्सान न हो और  फायदे की संभावना हो तो उसे कर लेना चाहिए।‘’

राष्ट्रपति जैल सिंह की पुस्तक पर मिली ख्याति

जिन दिनों वह ‘सांध्य टाइम्स’ में थे उन दिनों तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी ‘फ्राम मड हाउस टू राष्ट्रपति भवन’। जिसमें सोनी जी ने जैल सिंह के जन्म से राष्ट्रपति बनने की गाथा को इतने अच्छे से लिखा कि विश्व भर में इस पुस्तक को पसंद किया गया। इस पुस्तक का विमोचन भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने प्रधानमंत्री निवास पर किया था। वह चाहे हिन्दी के बड़े पत्रकार और यशस्वी संपादक थे। लेकिन वह अँग्रेजी में भी कमाल का लिखते थे।

‘सांध्य टाइम्स’ से सेवा निवृत होने के बाद भी सोनी जी कई पत्र पत्रिकाओं में बराबर लिखते रहे। हिंदुस्तान दैनिक के स्तम्भ ‘नश्तर’ में लिखे उनके व्यंग्य तो काफी लोकप्रिय हुए। उधर वह छंद नामों से चुट्कुले भी बहुत लिखते थे। साथ ही गंभीर मसलों पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा। इस सबके साथ वह अपने परिवार और दोस्तों के लिए भी समर्पित रहते थे। घर-परिवार में सभी उन्हें ‘बा’ कहकर बुलाते थे। जब भी मौका बनता वह अपनी पत्नी उर्मिला,पुत्र असीम,पुत्र वधू नीता और पौत्र समय और लियो के साथ बैठ खाना खाते,गप शप करते। बीच बीच में परिवार सहित देश विदेश की यात्राओं पर भी निकल जाते। हालांकि पिछले बरस  वह अकेले ही अनंत यात्रा पर निकल गए। लेकिन उन्हें भुलाया नहीं जा सकेगा। वह याद आते रहेंगे, बहुत याद आते रहेंगे।

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