Radio@100: 100 बरसों में कितना बदल गया रेडियो

भारत में रेडियो के 100 साल

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

इस बार भी भारत सहित दुनिया ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया। भारत में तो यह वर्ष रेडियो के लिए बेहद खास है। क्योंकि भारत में यह रेडियो प्रसारण का शताब्दी वर्ष है। जून 2023 में रेडियो क्लब मुंबई द्वारा प्रथम प्रसारण से ही भारत में रेडियो का आगमन हुआ था। साथ ही भारत में अब सामुदायिक रेडियो के भी 20 बरस पूरे हो गए हैं।

यदि हम रेडियो के विश्व प्रसारण की बात करें तो सामान्यतः यह माना जाता है कि इटली के वैज्ञानिक गुगिल्ल्मो मार्कोनी ने मात्र 22 बरस की उम्र में 1896 में प्रथम रेडियो प्रसारण कर दिया था। जबकि एक मान्यता यह है कि 24 दिसंबर 1906 को विश्व का पहला रेडियो प्रसारण हुआ था। बड़ी बात यह है कि चाहे मार्कोनी को रेडियो के आविष्कार का जनक माना जाता है। लेकिन भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु की भी रेडियो प्रसारण में विश्व में अहम भूमिका रही है।

इधर भारत में भी 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब के प्रसारण को भी देश के प्रथम रेडियो प्रसारण का श्रेय मिलता रहा है। इस दौरान देश में बॉम्बे, मद्रास और कलकता के साथ कुछ और भी रेडियो क्लब बनते रहे। लेकिन इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस कंपनी ने मुंबई में पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना करके, 23 जुलाई 1927 को इसका विधिवत आरंभ किया। जिसे 8 जून 1936 को ‘ऑल इंडिया रेडियो’ का नाम दे दिया गया। अब भी यह नाम बरकरार है। हालांकि 1956 से इसे ‘आकाशवाणी’ भी कहा जाने लगा।

यहाँ बता दें 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो तब देश में मात्र 9 रेडियो स्टेशन थे। उनमें से देश विभाजन के बाद 3 स्टेशन लाहौर, पेशावर और ढाका में चले गए। तब भारत में दिल्ली,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ के सिर्फ 6 केंद्र रह गए थे। लेकिन भारत ने रेडियो में काफी विकास किया। आज देश में ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio) के कुल 501 प्रसारण केंद्र हैं। जिनमें 229 प्रसारण केन्द्रों में अपने स्टूडियो हैं। पिछले करीब 10 बरसों में तो भारत में रेडियो का विकास बहुत तेजी से हुआ है।

रेडियो के वे सुनहरे दिन

हालांकि भारत में रेडियो के स्वर्णकाल को देखें तो 1960 से 1980 का दौर तो पूरी तरह रेडियो का युग था। इस दौर में रेडियो इतना लोकप्रिय हो गया था कि इसके समाचारों के माध्यम से ही पूरा देश सबसे पहले देश-दुनिया की खबरें जानता था। यही कारण था कि उस दौर में देवकी नन्दन पांडे, रामानुज प्रसाद सिंह, विनोद कश्यप, कृष्ण कुमार भार्गव और अशोक वाजपेयी जैसे समाचार वाचक किसी सितारे से कम नहीं थे।

देवकी नन्दन पांडे,
रामानुज प्रसाद सिंह,

उधर रेडियो सिलोन के साथ ऑल इंडिया रेडियो के विभिन्न कार्यक्रमों के उद्घोषक के रूप में तो अमीन सयानी तो अपनी आवाज़ के जादू से रेडियो के सुपर स्टार बन गए थे। फिल्म गीतों की लोकप्रियता को आसमां तक पहुंचाने  में भी रेडियो की ही सबसे बड़ी भूमिका रही।

अमीन सयानी

उधर रेडियो पर नाटिका का कार्यक्रम ‘हवा महल’ हो या फिल्म गीतों  का कार्यक्रम ‘जयमाला’ और ‘संगम’ या फिर बच्चों का कार्यक्रम ‘चुनमुन’ और महिलाओं का कार्यक्रम ‘सखी सहेली’ ये सभी हर दिल अज़ीज़ थे। युववाणी के शुरू होने पर ‘महफिल’,‘मनभावन’ और ‘आमने सामने’ भी बहुत पसंद किए गए।

साथ ही विविध भारती पर इंस्पेक्टर ईगल, मोदी के मतवाले राही, एस कुमार का फिल्मी मुकदमा भी काफी लोकप्रिय थे। उधर इनसे पहले अमीन सयानी का रेडियो सीलोन से प्रसारित ‘बिनाका गीतमाला’ तो भारतीय श्रोताओं का सबसे पसंदीदा फिल्म कार्यक्रम बन चुका था। जो बाद में ऑल इंडिया रेडियो पर भी शुरू हुआ।

 विदेश प्रसारण सेवा

भारत में रेडियो की विदेश प्रसारण सेवा भी कुछ बरस पहले तक अच्छी ख़ासी मशहूर थी। ऑल इंडिया रेडियो ने 1 अक्तूबर 1939 में इस सेवा का प्रसारण पश्तो भाषा में तब शुरू किया,जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। इससे पहले 1938 में बीबीसी ने प्रथम विदेश प्रसारण सेवा अरबी भाषा में शुरू की थी।

भारत ने विदेश प्रसारण इसलिए शुरू किया क्योंकि तब जर्मन रेडियो भारत और सहयोगी सेनाओं के विरुद्ध प्रचार कर रहा था। उस प्रचार के खंडन और प्रतिकार के लिए एआईआर ने विदेश प्रसारण आरंभ कर दिया। जर्मन रेडियो यह प्रचार अफगानिस्तान में अधिक कर रहा था इसलिए इसका जवाब वहाँ की  भाषा में देने के लिए, पश्तो में इसे शुरू किया गया। कुछ समय बाद वहाँ की एक और भाषा दरी में भी हमारे यहाँ से विदेश प्रसारण शुरू हुआ। जबकि द्वितीय विश्व युद्द के अंत 1945 तक 42 भाषाओं में हमारे रेडियो का विदेश प्रसारण शुरू हो गया था।

आज़ादी के बाद देश की कला-संस्कृति और अन्य प्रमुख गतिविधियों को दुनिया तक पहुंचाने के लिए इस सेवा को विस्तार दिया जाता रहा। 2019 तक विश्व के 139 देशों में 27 भाषाओं में प्रतिदिन 72 घंटे का प्रसारण हो रहा था। जिनमें 12 भारतीय और 15 विदेशी भाषाओं में प्रसारण होता था। लेकिन अब यह विदेश सेवा सिमट कर रह गयी है। अब 9 विदेशी और 6 भारतीय भाषाओं में ही इसका सीमित प्रसारण हो रहा है। इसका एक कारण रेडियो का डिजिटल होना है तो दूसरा रेडियो में विभिन्न भाषाओं के जानकारों का अभाव भी ।

पिछले दस बरसों में रेडियो डिजिटल युग की ओर तेजी से बढ़ गया है। अब रेडियो को मोबाइल में भी सुना जा सकता है और टीवी सेट पर भी। अब ऑल इंडिया रेडियो के 291 चैनल्स ‘न्यूज़ ऑन एआईआर’ मोबाइल ऐप पर सुलभ हैं। जबकि 48 रेडियो चैनल्स डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। इससे हमारे प्रसारण विदेशों में भी सुने जा सकते हैं।

कई रंग बदले हैं रेडियो ने

यूं भारत में रेडियो के 100 बरस को देखें तो रेडियो ने कई रंग बदले हैं। रेडियो के बड़े बड़े आकार से लेकर पॉकेट ट्रांजिस्टर तक कितने ही किस्म के रेडियो सेट आते रहे। बरसों पहले रेडियो को सुनने के लिए भी एंटीना लगाया जाता था। कुछ रेडियो पर एक छोटा एंटीना आज भी मिल जाता है।

लेकिन रेडियो के सुनने के लिए भी एक शुल्क भर कर लाइसेंस लेना पड़ता था। जिसमें एक समय में घरेलू रेडियो के लिए 15 रुपए और वाणिज्य-सार्वजनिक रेडियो के लिए 25 रुपए वार्षिक शुल्क देना पड़ता था। रेडियो लाइसेन्स ना लेना एक अपराध था। इस अपराध के लिए वायरलेस टेलिग्राफी एक्ट 1933 के अंतर्गत सज़ा और जुर्माने का प्रावधान था। लेकिन 1980 के दशक उत्तरार्थ में रेडियो श्रोताओं को लाइसेन्स से मुक्त कर दिया गया।

असल में जब 1984 के बाद जब देश में दूरदर्शन के राष्ट्रीय प्रसारण में ‘हम लोग’ सीरियल की शुरुआत के बाद 1985 में टीवी क्रान्ति हुई तो रेडियो से श्रोताओं का मोह कुछ भंग होने लगा। 1987 में पहले ‘रामायण’ और फिर ‘महाभारत’ जैसे सीरियल ने तो दूरदर्शन के साथ आकाशवाणी की भी दशा बदल दी। इससे टीवी उभरकर तेजी से लोकप्रिय हो गया और रेडियो नेपथ्य में जाने लगा। यह देख रेडियो के अस्तित्व को बचाने के लिए देश में सरकारी और निजी एफ एम चैनल्स की शुरुआत भी कि गयी। इससे युवाओं श्रोताओं का  रेडियो के प्रति झुकाव कुछ बढ़ा भी।

‘मन की बात’ ने दी रेडियो को संजीवनी

हालांकि रेडियो को फिर से लोकप्रिय किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के कार्यक्रम ‘मन की बात’ (Mann Ki Baat) ने। देखा जाये तो ‘मन की बात’ ने रेडियो की टूटती साँसों को संजीवनी दे दी है। जब 3 अक्तूबर 2014 को ‘मन की बात’ (Mann Ki Baat) शुरू हुआ तब डिजिटल युग तेजी से बढ़ रहा था। लेकिन पीएम मोदी (PM Modi) ने ‘मन की बात’ (Mann Ki Baat) के लिए रेडियो को ही चुना। अब तक इसके 109 एपिसोड प्रसारित हो लोकप्रियता का नया इतिहास लिख चुके हैं। इसके 22 भारतीय भाषाओं, 29 बोलियों और 11 विदेशी भाषा में प्रसारित होने से आकाशवाणी के श्रोताओं की संख्या ही नहीं इसका राजस्व भी नए शिखर पर है।

इधर देश में सामुदायिक रेडियो (कम्यूनिटी रेडियो) भी वर्ग विशेष के श्रोताओं में लोकप्रिय होते जा रहे हैं। भारत में कम्यूनिटी रेडियो (Community Radio) की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में एक नीति बनाकर की थी। देश में प्रथम कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन का उद्घाटन तब के उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने फरवरी 2004 में अन्ना विश्वविद्यालय परिसर में किया  था। लेकिन एक दशक बाद 2014 तक देश में मात्र 140 सामुदायिक रेडियो ही शुरू हो सके।

इधर 2014 में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कम्यूनिटी रेडियो को बढ़ावा देने के लिए कई बड़े कदम उठाए। सामुदायिक रेडियो के ढांचा स्थापित करने के लिए संस्थाओं को साढ़े 7 लाख रुपए के वित्तीय अनुदान की भी सुविधा दी। इससे पिछले दस बरसों में ही 341 नए कम्यूनिटी रेडियो और शुरू हो गए, जिनमें 133 तो पिछले दो बरस में ही शुरू हुए। जिससे अब देश में अब 481 कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन चल रहे हैं। जिनमें 117 ऐसे रेडियो केंद्र दक्षिण और 5 उत्तर पूर्व क्षेत्र में हैं।

 कुछ और भी करना होगा

निसंदेह ‘मन की बात’ (Mann Ki Baat) ने आकाशवाणी को ऑक्सीज़न दे दी है। लेकिन इसे फिर से पुराने दिनों में लौटाने के लिए और भी काफी कुछ करना पड़ेगा। इसके लिए जन रुचि के नए विशेष कार्यक्रमों की शुरुआत के साथ यहाँ के ढांचे में भी कुछ बदलाव करने पड़ेंगे।

मैं स्वयं पिछले 40 से अधिक बरसों से रेडियो पर विभिन्न कार्यक्रम कर रहा हूँ। इधर यह देखा गया है कि यहाँ नित पुराने रेडियो कर्मी सेवा निवृत हो रहे हैं। लेकिन उनकी जगह नयी नियुक्तियाँ ना होने से रेडियो कर्मी के संख्या बहुत कम हो गयी है। कुछ सक्षम अधिकारी जैसे तैसे अच्छे कार्यक्रमों की पुरानी परंपरा निभा रहे हैं।

लेकिन कुछ आलसी, लापरवाह कर्मी तो अपने ऊपर ज्यादा बोझ न लेकर, नए कार्यक्रमों की जगह पुराने कार्यक्रम फिर-फिर प्रसारित करके आकाशवाणी का गौरव धूमिल करने में तनिक संकोच नहीं करते। इसलिए रेडियो में नए विचारों और श्रेष्ठ प्रसारणकर्मियों की बड़ी कमी है। जिसे जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए। रेडियो पर अच्छे और नए किस्म के कार्यक्रम सुनने वाले श्रोता आज भी असंख्य हैं। आज भी रेडियो उपयोगी होने के साथ जंगल में मंगल करने का दम खम रखता है। सच कहा जाये तो रेडियो का आज भी कोई सानी नहीं।

 

 

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