Baba Ramdev Interview: हमने 2 साल तक सोचा लेकिन ‘मैडम तुसाद’ वालों ने हमें मना ही लिया- स्वामी रामदेव

योग ऋषि बाबा रामदेव से वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना की खास बातचीत

प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार 

योग ऋषि बाबा रामदेव (Baba Ramdev) ने पिछले कुछ बरसों में देश-विदेश में योग और आयुर्वेद क्षेत्र में जो चमत्कारिक क्रान्ति की है, वह अतुलनीय है। हालांकि योग हो या आयुर्वेद ये देश में थे तो आदिकाल से, पर समय चक्र में यह सब धीरे धीरे काफी पीछे छुट गए थे। लेकीन आधुनिक काल में स्वामी रामदेव (Swami Ramdev) और आचार्य बालकृष्ण (Acharya Balkrishna) ने मिलकर योग (Yoga) और आयुर्वेद (Ayurveda) का नया इतिहास लिख दिया है।

यह बाबा रामदेव (Baba Ramdev) के कार्यों और उनकी लोकप्रियता का प्रभाव है कि न्यूयॉर्क (New York) के प्रसिद्द मैडम तुसाद (Madame Tussauds) संग्रहलाय में उनकी प्रतिमूर्ति स्थापित की गयी है। इसी मौके पर योग गुरु से मैंने एक खास बातचीत की। उसी बातचीत के प्रमुख अंश यहाँ प्रस्तुत हैं-   

सबसे पहले मैं आपको बधाई देता हूँ कि मैडम तुसाद (Madame Tussauds) में आपकी प्रतिमूर्ति लगने से आपको तो विशेष मान्यता मिली ही है। साथ ही यह हमारे प्राचीन काल से चल रहे योग (Yoga) और आयुर्वेद (Ayurveda) की परंपरा की भी मान्यता है !

हाँ यह गौरव है योग, आयुर्वेद, संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत का। न्यूयॉर्क (New York) के टाइम्स स्क्वायर (Times Square) पर जहां विश्व के 200 बड़े रोल मॉडल के बीच मोम की मेरी भी आकृति है। वहाँ पहले कुछ राजनेताओं, हॉलीवुड और बॉलीवुड के कलाकारों सहित कुछ और हस्तियों के भी पुतले मौजूद हैं। लेकिन यह पहला मौका है जो किसी संन्यासी की प्रतिमूर्ति वहाँ लगी है। इसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ।

बाबा रामदेव अपनी प्रतिमूर्ति और मैडम तुसाद न्‍यूयॉर्क के प्रवक्‍ता टियागो मोगोडोयूरो के साथ

आपकी यह प्रतिमूर्ति हु बहू आपकी तरह है। आप इसमें जिस तरह वृक्षासन की योग मुद्रा में, उसे देख लगता है कि आप साक्षात योग कर रहे हैं। आपकी मोम की इस अनुपम आकृति को बनाने में कितना समय लगा और इसके लिए वृक्षासन की मुद्रा को ही चुनने का कोई खास कारण रहा ?

वृक्षासन शक्ति और संतुलन दोनों का प्रतीक है। इसलिए इस योग मुद्रा को महत्व दिया। जहां तक इसके बनाने में समय की बात है तो इसे 200 शिल्पियों ने कठिन परिश्रम से 2 साल के समय में बनाया है। जिसके लिए मेरे शरीर के विभिन्न हिस्सों के करीब 200 सटीक माप लिए गए। आकृति में मोम से एक-एक बारीकी को जिस पुरुषार्थ के साथ दर्शाया और उभारा है वह अपने आप में बहुत बड़ा प्रतिमान है।

आपको जब पहली बार इसका प्रस्ताव मिला तब आपने एक दम हाँ कह दी थी या कुछ सोच विचार के बाद यह प्रस्ताव स्वीकारा ?

आपको सच बताऊँ तो हम करीब 2 साल तक सोचते रहे कि इस दिशा में हम जाएँ या नहीं। लेकिन फिर मैडम तुसाद (Madame Tussauds) वालों ने हमें मना ही लिया। उन्होंने कहा कि इसके लिए वो हमसे कुछ ले नहीं रहे। जबकि इससे योग की तरफ दुनिया का ध्यान जाएगा और लोगों को प्रेरणा मिलेगी। तब हमको लगा यह ठीक रहेगा। यह 2018 की बात है जब लंदन में इस बातचीत की शुरुआत हुई। लेकिन बीच में कोरोना आ गया। इसलिए अब जाकर यह काम सम्पन्न हुआ है।

आपकी इस मोम की आकृति को बनाने में कितनी लागत आई है ?

मैडम तुसाद (Madame Tussauds) वालों ने 2 करोड़ की लागत से इस प्रतिमूर्ति का निर्माण किया है। इस पुतले के दिल्ली में अनावरण से लेकर इसे न्यूयॉर्क में ले जाकर वहाँ लगाने तक का खर्चा भी यहीं लोग उठा रहे हैं। मैडम तुसाद (Madame Tussauds) वाले अपने काम के प्रति काफी जज़्बा रखते हैं। ये लोग देखते है कि दुनिया में अब किस चीज़ के प्रति लोगों का आकर्षण है और फिर उसको वो रेखांकित करते हैं। अब यह भी पूरी दुनिया का एक नया आकर्षण बनेगा। मैडम तुसाद (Madame Tussauds) के विश्व भर में 24 संग्रहालय हैं। जिनमें सबसे बड़ा अमेरिका के न्यूयॉर्क में टाइम्स स्क़्वायर पर है। मेरी यह आकृति भी वहीं लग रही है।

आज जब अमेरिका की बात चली है तो दो बड़ी बातें याद आ रही है। एक वो जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को अमेरिका जाने के लिए वीजा नहीं मिलता था और कभी आपको भी अमेरिका जाने पर बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। लेकिन आज मोदी जी ही नहीं आपको भी अमेरिका बहुत मान दे रहा है।

(ज़ोर से हँसते हुए ) मैं समझता हूँ यह योग, सनातन और अपनी संस्कृति की मान्यता है। यह सब भारत के बढ़ते विश्व गौरव के कारण है। अब फिर से पूरी दुनिया अपनी जड़ों की ओर लौट रही है।

आप अपनी इस आकृति को किस तरह देखते हैं ? यह लग ही नहीं रहा कि ये कोई पुतला है। यह पूरी तरह आप ही लग रहे हैं। आपने जब इस पुतले को देखा तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी? 

मैंने जब इसे पहली बार देखा तो मुझे लगा यह मैं ही खड़ा हूँ। मैडम तुसाद (Madame Tussauds) वालों ने मुझसे पूछा कि यह कैसा लगा, तो मैंने उन्हें कहा कि यह रामदेव (Baba Ramdev) जैसा ही लग रहा है। वहीं चेहरे पर मुस्कान, वैसा ही रंग रूप और उत्साह। पैरों और हाथों की नसें। यहाँ तक मेरे सीने पर जो बाल दिखाये हैं वे भी मेरे जैसे ही हैं। हालांकि इसके लिए मैंने उन्हें अपने बाल नहीं दिये। लेकिन उन्होंने बिल्कुल वैसे बनाकर लगा दिये। मुझे लगा जो बाल लगाए हैं वे किसी मशीन से लगाए होंगे। लेकिन मुझे बताया किसी मशीन ने नहीं शिल्पियों ने एक-एक बाल अपने हाथ से लगाया है। इसके लिए उन्हें कितना परिश्रम करना पड़ा होगा,सोचा ही जा सकता है। मेरे हाथों पर जो कलावा है, माथे पर तिलक है सब कुछ कमाल का है। यहाँ तक मेरी आँखें बिल्कुल मेरी आँखों जैसी हैं। मुझे लगता है कि मैं शीशे में अपना ही चेहरा देख रहा हूँ,खुद को ही देख रहा हूँ। हाँ मैंने इसमें जो खड़ाऊँ पहनी है वो हमने इन्हें हरिद्वार से भेज दी थीं। बाकी सब वहीं के शिल्पियों ने तैयार किया है।

आप इस पुतले को कला मानेंगे या चमत्कार?

यह मनुष्य के कौशल का परिणाम है। लेकिन प्रेरणा तो कर्मों से ही लेनी होगी।

आप तो खुद देर तक इसी योग मुद्रा में खड़े रहते हैं। इस पुतले को कहीं भी खड़ा कर दिया जाये तो लोग देखकर कहेंगे कि आप स्वयं ही योगासन कर रहे हैं। बस इसमें प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत है। लेकिन आपके पास जो पेट को अंदर कर लेने की चमत्कारी कला है वो इस मोम के पुतले में नहीं दिखाई गयी। मैं तो आपको 20 सालों से देख रहा हूँ कोई और योगी आपकी तरह अपने पेट को इतना अंदर करके, इतनी तीव्र गति से नहीं घूमा सकता।   

(खूब ज़ोर से हँसते हुए) अब सारे काम यह पुतला ही कर लेगा तो रामदेव (Baba Ramdev) क्या करेगा ? रही प्राण प्रतिष्ठा की बात तो प्राण प्रतिष्ठा मेरे में है। जबकि प्रतिमा और कला की प्रतिष्ठा पुतले में है।

आप चाहेंगे कि आपकी यह प्रतिमूर्ति भारत में भी लगे ?

अब मैडम तुसाद (Madame Tussauds) वालों ने भारत से तो अपना काम सिमेट लिया है। इसलिए अभी तो यह न्यूयॉर्क (New York) में रहेगा। यदि ‘मैडम तुसाद’ (Madame Tussauds) फिर भारत में आते हैं तो इस पर वे विचार करेंगे। लेकिन भारत पूरी दुनिया में योग और ज्ञान को निर्यात करेगा।

आपकी अब नयी बड़ी योजना क्या है ?

हमारा अब एक यह उद्देश्य है कि 5 से 10 साल के अंदर 5 से 10 लाख विद्यालयों में गुरुकुल शिक्षा लागू कर दें। जिससे चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व निर्माण और युग निर्माण हो सके।

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