Lata Mangeshkar Death Anniversary: इस मशहूर अभिनेत्री के पिता ने की थी लता मंगेशकर को फिल्मों में लाने की मदद

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

आज लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को इस दुनिया से विदा हुए दो बरस हो गए। जब 6 फरवरी 2022 को उनका मुंबई में निधन हुआ तो एक बड़ा भूकंप सा आ गया था। हालांकि लता मंगेशकर ने 93 बरस की उम्र पायी। फिल्म इंडस्ट्री में बतौर गायिका उनका सबसे लंबा और सबसे शानदार करियर रहा। लेकिन उनके साथ होने का अहसास ही एक कोहिनूर के पास होने जैसा था।

मध्यप्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 को जन्मीं लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने यूँ अपने बचपन में तो बहुत संघर्ष किये। लेकिन आगे चलकर जो सुख,जो सफलता, जो लोकप्रियता और जो सम्मान लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को मिले, वो किसी और को नसीब नहीं हुई। इसका श्रेय उनकी उस साधना, उस तपस्या को जाता है जो उनके बचपन से शुरू हो गयी थी।

वह मात्र 5 वर्ष की थीं, जब उन्होंने अपने संगीतज्ञ और रंगकर्मी पिता दीना नाथ मंगेशकर से गायन सीखना शुरू कर दिया था। जब वह सात साल की थीं, तभी उनका परिवार महाराष्ट्र में आ गया। जहाँ आकर लता (Lata Mangeshkar) ने मंच पर गीत संगीत के कुछ कार्यक्रम करके अपने बालपन में ही अपनी प्रतिभा से सभी का मन मोहा।

लेकिन सन 1942 में उनके पिता के निधन के बाद लता (Lata Mangeshkar) के पिता दीनानाथ के दोस्त और मराठी फिल्मकार मास्टर विनायक जो अभिनेत्री नन्दा (Nanda) के पिता भी थे, उन्होंने लता (Lata Mangeshkar) को एक अभिनेत्री और गायिका बनने में मदद की। बात धीरे धीरे ऐसे बनी कि 1949 में ‘महल’ और ‘बरसात’ आने के बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने हिंदी फिल्मों में अपने पार्श्व गायन से लगभग 70 साल का जो लम्बा सफ़र तय किया। इतना शानदार सफ़र भी अन्य किसी गायिका का नहीं रहा। सच तो यह है कि पिछले 75 बरसों में कोई भी और गायिका लता मंगेशकर के शिखर को नहीं छू सकी है। लता (Lata Mangeshkar) ने 23 भाषाओँ में कुल लगभग 7 हज़ार गीत गाकर पूरे विश्व को अपना बना लिया था।

यदि फिल्मों में पार्श्व गायन की उनकी लम्बी पारी में सही प्रतियोगिता की बात करें। तब भी उनका मुकाबला सिर्फ और सिर्फ अपनी छोटी बहन आशा भोंसले से रहा. यहाँ तक लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के पूरे करियर में भी यदि कोई उनका मजबूत प्रतिद्वंदी रहा है तो वह भी आशा भोंसले (Asha Bhonsle) रही। लेकिन यह भी सच है कि कुल मिलाकार लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) जैसी गायिका इस देश में ही नहीं, इस धरती पर भी कोई और नहीं है।

आशा भोंसले (Asha Bhonsle) करोड़ों को अपनी मादक आवाज़ से दीवाना बनाने का दम ख़म रखने और कई बड़े शिखर छूने के बाद भी लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के सामने, अपने जीवन में ही नहीं, गायिका के रूप में भी उनकी छोटी बहन हैं।

दुनिया भर के संगीत प्रेमी और संगीत तथा स्वर विशेषज्ञ बरसों तक इस रहस्य को जानने के लिए उतावले रहे कि कोकिला कंठ लता के कंठ में ऐसा क्या है जो इतनी मधुर और मखमली आवाज की स्वामिनी हैं। लेकिन यह रहस्य उनके जीवन के आखिरी पल तक रहस्य ही बना रहा। पर वे खुद हमेशा इसका श्रेय प्रभु की कृपा और मां बाबा के आशीर्वाद को देती रहीं।

देखा जाये जो मान सम्मान भी लता जी (Lata Mangeshkar) को अपने जीवन में एक पार्श्व गायिका के रूप में मिला, उतना फिल्म संगीत क्या समस्त संगीत क्षेत्र में किसी अन्य हस्ती को नहीं मिला। लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को जहाँ देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और फिल्म क्षेत्र का शिखर पुरस्कार दादा साहब फाल्के मिला है वहां उन्हें पदम् भूषण और पदम् विभूषण जैसे शिखर के नागरिक सम्मानों से भी नवाज़ा जा गया।

उधर लता (Lata Mangeshkar) ने अपने सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता, चार बार सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार भी। और एक बार फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के साथ दो बार फिल्मफेयर के विशेष सम्मान भी उन्हें प्राप्त हुए।

अभी भी नहीं दिखता कोई उन जैसा  

सन 1977 में आई फिल्म ‘किनारा’ का एक गीत था, ‘नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे’।  ये गीत गुलज़ार ने लिखा और आर डी बर्मन ने इसे संगीत दिया। संयोगवश उनके हजारों गीतों में, उनका ये गीत उनकी खूबसूरत पहचान बन गया। इस गीत के लोकप्रिय होने के बाद गुलज़ार ने लता (Lata Mangeshkar) से कहा था कि ये गीत आपका सिग्नेचर बन गया है। इसको अब आप अपने बारे में बताने के साथ अपने ऑटोग्राफ में भी लिख सकतीं हैं। अपने सफ़र को संक्षेप रूप में समझाते हुए लता दीदी (Lata Mangeshkar) ने कई समारोहों में इसी गीत की इन्हीं पंक्तियों को गुनगुनाया।

लता दीदी (Lata Mangeshkar) दुनिया भर में अपनी ही नहीं भारत की आवाज़ और पहचान भी बनीं। एक ऐसी पहचान कि आज देश में अच्छी गायिकाओं की कमी नहीं, बहुत से अच्छी गायिकाएं अपने काम को, अपने अपने ढंग से और अच्छे से अंजाम दे रही हैं। लेकिन उनमें से आज भी कोई ऐसी गायिका दूर दूर तक दिखाई नहीं देती, जो आने वाले दस बरसों में उनके पास क्या उनके पास भी पहुँच सके।

 

 

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