Shashi Kapoor Birthday: शशि कपूर को उस हाल में देखकर भाई राज कपूर भी चौंक गए

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने फिल्म अभिनेता के रूप में तो लोकप्रियता पाई ही लेकिन एक फ़िल्मकार और रंगकर्मी के रूप में भी उन्होंने इतना काम किया, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) के यहाँ 18 मार्च 1938 को जन्मे शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने अपनी ज़िंदगी में जहां सफलता और सम्मान के शिखर को छुआ वहाँ एक समय ऐसा भी था कि उन्हें कोई अपनी फिल्मों में लेने को तैयार नहीं था।

हालांकि शशि (Shashi Kapoor) को बड़े भाई राज कपूर (Raj Kapoor) ने 1948 में अपनी पहली फिल्म ‘आग’ से बाल कलाकार के रूप में लॉंच किया था। बाद में ‘धर्मपुत्र’ से शशि (Shashi Kapoor) ने नायक के रूप में अपनी पारी शुरू की। लेकिन फिल्में सफल न होने के कारण शशि (Shashi Kapoor) को उन फिल्मों से भी निकाल दिया गया, जिनकी वह शूटिंग शुरू कर चुके थे। लेकिन 1965 में प्रदर्शित ‘जब जब फूल खिले’ ने शशि कपूर की ऐसी किस्मत बदली कि एक दौर में उनके पास 40 फिल्में हो गईं। तब शशि (Shashi Kapoor) ने फिल्मों में शिफ्ट सिस्टम की शुरुआत की और एक दिन में तीन तीन फिल्मों की शूटिंग करने लगे।

इससे शशि कपूर (Shashi Kapoor) फिल्म जगत के सबसे व्यस्त अभिनेता तो बन गए और उन्हें बिजी कपूर कहा जाने लगा। लेकिन एक दिन में तीन-तीन फिल्मों की शूटिंग करने के चक्कर में शशि कपूर (Shashi Kapoor) का बुरा हाल हो गया।

एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो में भागते भागते जब शशि कपूर अपने भाई की फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ की शूटिंग के लिए हाँफते दौड़ते पहुंचे तो राज कपूर (Raj Kapoor) चौंक गए। वह बोले -तुमने एक साथ इतनी फिल्में करके अपना क्या हाल बना लिया है। तुम टैक्सी की तरह हो गए हो। एक सवारी उतारी तो फिर दूसरी सवारी बैठा ली। दूसरी सवारी उतारी तो तीसरी सवारी बैठा ली। ऐसी फिल्में और ऐसी ज़िंदगी का क्या मतलब।

तब शशि ने कहा -भाईसाहब आपकी बात ठीक है लेकिन क्या करूँ इतने बुरे दिन देखे हैं। जब खाने के लाले पड़ गए थे। कोई फिल्म नहीं मिलती थी। अब जब इतनी फिल्में साथ मिल गयी हैं तो कैसे मना करता।

अपने करियर में शशि (Shashi Kapoor) ने करीब 150 फिल्मों में काम किया। जिनमें उनकी कन्यादान, वक्त, अभिनेत्री, शर्मीली, आ गले लग जा, चोर मचाये शोर, हसीना मान जाएगी, त्रिशूल, सुहाग, काला पत्थर जैसी फिल्में हैं तो ‘दीवार’ जैसी वह फिल्म भी जिसमें इनके द्वारा बोला गया संवाद- ‘मेरे पास माँ है’ एक अमर संवाद बन गया। फिल्म ‘नयी दिल्ली टाइम्स’ के लिए तो शशि (Shashi Kapoor) को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। साथ ही फिल्म संसार के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के’ से भी उन्हें सम्मानित किया गया। वह ऐसे पहले भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने विदेशी फिल्मों में भी अपने नाम और काम का डंका बजाया।

ज़िंदगी में कोलकाता रहा बेहद खास

यह संयोग ही है कि शशि (Shashi Kapoor) का जन्म तो कोलकाता में हुआ ही साथ ही उन्हें अपनी जीवन संगिनी जेनिफर कैन्डल भी कोलकाता में ही मिलीं। असल में अपने पिता के साथ बचपन से ही उनके घुमंतू पृथ्वी थिएटर में काम करते हुए शशि को थिएटर से खास लगाव था।

कोलकाता में शशि (Shashi Kapoor) की ब्रिटेन की थिएटर कंपनी ‘शेक्सपियरेना’ के मालिक की बेटी जेनिफर कैंडल से मुलाक़ात हुई। तब शशि (Shashi Kapoor) ने देखा कि थिएटर दोनों का प्यार है तो दोनों में प्रेम हो गया। हालांकि जेनिफर, शशि (Shashi Kapoor) से उम्र में 5 साल बड़ी थीं। इसके बावजूद जुलाई 1958 में दोनों ने शादी कर ली।

शशि (Shashi Kapoor) ने अपने बैनर से कुल 8 फिल्में बनाई जिनमें कोलकाता की पृष्ठभूमि पर बनी ’36 चौरंगी लेन’ और ‘जुनून’ काफी सराही गईं। शशि (Shashi Kapoor) ने फिल्मों से जो कमाया वह थिएटर में लगा दिया। अपने पिता की स्मृति में शशि (Shashi Kapoor) ने मुंबई में 1978 में जिस ‘पृथ्वी थिएटर’ (Prithvi Theatre) का निर्माण किया, आज वह मुंबई के रंगमंच की धड़कन बन चुका है।

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