Ameen Sayani: रेडियो को स्वर्ण काल में ले जाने वाले अमीन सायानी

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक

बहनो और भाइयो मैं आपका दोस्त अमीन सायानी बोल रहा हूँ। करीब 70 बरस तक अपनी खनकती आवाज़ और खूबसूरत अंदाज़ में यह संवाद बोलने वाले अमीन सायानी अब नहीं रहे। उनकी दुनिया से बिदाई के साथ एक युग का अंत हो गया। अमीन सायानी देश के ऐसे पहले रेडियो स्टार थे, जिनके सामने बड़े बड़े फिल्म स्टार भी अपना सलाम मारते थे। यह सायानी की आवाज़ का ही कमाल था कि उनके कार्यक्रमों ने रेडियो को लोकप्रियता का नया शिखर दे दिया था। इसीके चलते रेडियो तब अपने स्वर्ण काल में पहुँच गया था।

अपनी सेहत से जुड़ी कुछ मुश्किलों के कारण पिछले कुछ बरसों से वह कुछ खास नया नहीं कर पा रहे थे। लेकिन एक जमाना था जब अपने ‘बिनाका गीत माला’ कार्यक्रम के माध्यम से आवाज़ के इस शहंशाह ने अपने नाम और काम की धूम मचा दी थी। ‘बिनाका गीतमाला’ ने 3 दिसंबर 2022 को जब अपने प्रसारण के 70 बरस पूरे किए तो वह बहुत खुश थे। मैंने तब उनसे बात की तो उन्होंने मुझे अपनी कई पुरानी यादें बतायीं।

यह सयानी की मधुर आवाज़ की कशिश ही थी कि आज भी लोग उनके दीवाने हैं। ‘बिनाका गीतमाला’ के पुराने कार्यक्रम के खास अंश ‘सारेगामा कारवां’ आदि के माध्यम से आज भी अच्छे खासे लोकप्रिय हैं।

हालांकि पिछले कुछ समय से कुछ ‘शरारती तत्व’ उनके निधन की झूठी और शर्मनाक खबर फैलाते रहे थे। लेकिन सयानी कहते थे ‘’शुक्र है, मैं आज भी ज़िंदा हूँ।‘’ लेकिन अब वह सच में नहीं रहे।

यूं अमीन सायानी से मेरी बातचीत होती रहती थी। पीछे मैं उनसे मुंबई में मिलकर भी देर तक बातें करता रहा। हालांकि अब वह काफी कुछ भूलने भी लगे थे।  लेकिन उनकी आवाज़ अब भी लाजवाब थी। उनसे बात करके दिल खुश हो जाता था।

मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि अमीन सायानी से मेरे बरसों संबंध रहे। मैंने उनके कई बार इंटरव्यू भी किए और उनसे मुलाकातें भी। फोन पर भी उनसे और उनके पुत्र राजिल से बातचीत होती रहती थी। अभी गत 21 दिसंबर को उनके 91 वें जन्म दिन पर मैंने उन्हें बधाई दी, तो सोचा नहीं था कि ठीक दो महीने बाद वह दुनिया को अलविदा कह देंगे।

इस उम्र में भी थे काम को समर्पित

हालांकि 91 बरस की उम्र  और कुछ रोगों और समस्याओं  के बावजूद अमीन सायानी इन दिनों भी अपने काम को समर्पित रहते थे। फरवरी 2020 तक तो वह अपने दफ्तर भी बराबर जाते थे। वहां रिकॉर्डिंग भी करते थे। अपने सुपर हिट कार्यक्रम बिनाका गीत माला की यादों को लेकर सारेगामा कारवां के लिए ‘गीतमाला की छांव में’ भी उन्होंने कुछ बरस पहले अपने दफ्तर में तैयार किया था। लेकिन कोरोना के बाद उनका दफ्तर जाना छुट गया। परंतु  घर पर अपनी सुविधा से वह काम करते रहते थे।

इन दिनों वह एक बड़ा काम अपनी आत्मकथा लिखने का भी कर रहे थे।  लेकिन पिछले तीन चार दिन से उनको सांस की तकलीफ कुछ ऐसी हुई कि उन्हें अस्पताल दाखिल कराना पड़ा। जहां 20 फरवरी रात को उन्होंने दम तोड दिया। इसे संयोग कहें या कुछ और कि जब देश में रेडियो प्रसारण के 100 साल पूरे किए है, उन्होंने तभी इस दुनिया से रुखसत ली।

अमीन सायानी का जन्म 21 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ था। इनके भाई हामिद सायानी ऑल इंडिया रेडियो के अंग्रेजी ब्रॉडकास्टर थे। जबकि इनकी मां कुलसुम पटेल उन दिनों एक साहित्यिक पत्रिका ‘रहबर’ निकालती थीं। उस दौर के कई बड़े शायर और साहित्यकार इनके घर आते रहते थे। अमीन की जिंदगी पर तीन लोगों का प्रभाव सबसे ज्यादा रहा। जिनमें उनकी मां और भाई के अलावा महात्मा गांधी थे। मां  और भाई को तो वह अपना गुरु मानते थे।

तभी रेडियो से हो गया प्यार

अमीन सायानी ने मुझे एक बार बताया था कि वह सिर्फ सात साल के थे कि उनके भाई उन्हें अपने साथ चर्च गेट पर ऑल इंडिया रेडियो के ऑफिस ले गए। बस तभी से उन्हें भी रेडियो से प्यार हो गया।

हालांकि पहले उन्होंने ग्वालियर जाकर सिंधिया स्कूल में पढ़ाई की। ग्वालियर के उन दिनों को वह बहुत दिल से, शिद्दत से याद करते थे। ग्वालियर से स्कूल की पढ़ाई पूरी करके जब वह मुंबई वापस आए। तब उन्होंने वहाँ सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया। तभी उन्हें पता लगा रेडियो सीलोन हिंदी फिल्म गीतों का एक कार्यक्रम शुरू करने के लिए एक एंकर की तलाश में है। लेकिन वह इसके लिए एंकर को सिर्फ 25 रुपए प्रति कार्यक्रम दे रहे थे। इसलिए कोई बड़ा नाम इसके लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में अमीन इसके लिए तैयार हो गए।

सन् 1952 में बिनाका गीत माला हर बुधवार रात 8 बजे के समय में शुरू हुआ तो अपने पहले कार्यक्रम से ही यह लोकप्रिय हो गया। श्रोताओं के शुरू में ही इस कार्यक्रम पर 7 हजार पत्र आ गए। इस कार्यक्रम को और दिलचस्प बनाने के लिए अमीन ने फिल्म गीतों को लोकप्रियता के हिसाब से रैंकिंग देनी शुरू कर दी। यह ऐसा पहला कार्यक्रम था जिसमें गीतों की रैंकिंग शुरू हुई।

कार्यक्रम में कुल 16 गीत होते थे। जिन्हें सायानी लोकप्रियता के हिसाब से पायदान क्रम देते थे। हालांकि गीतों की लोकप्रियता का क्रम देना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन सायानी प्रति सप्ताह  लोगों से बात करके, आसपास लोगों का रुझान देख और श्रोताओं के पत्रों के आधार पर तय करते थे को उस  सप्ताह कौन सा गीत किस पायदान पर है। यह सब श्रोताओं को इतना पसंद आया कि इसके लिए प्रति सप्ताह 50 से 60 हजार पत्र आने लगे। इससे रेडियो सीलोन की लोकप्रियता भी एशिया और यूरोप सहित दुनिया के कई देशों में पहुंच गई।

इधर उन दिनों ऑल इंडिया रेडियो पर फिल्म गीतों के प्रसारण पर प्रतिबंध लग गया था। लेकिन रेडियो सीलोन की लोकप्रियता देख इस कार्यक्रम को विविध भारती पर शुरू कर दिया गया। जिससे विविध भारती के श्रोताओं में बहुत तेजी से बढ़ोतरी होने लगी। अमीन सायानी ने तब अपने इस कार्यक्रम में फिल्म सितारों के इंटरव्यू शुरू किए तो वे सोने पर सुहागा साबित हुए। मुझे याद है वह उन दिनों मीना कुमारी, नर्गिस और रफी तथा लता मंगेशकर के  इंटरव्यू करते थे तो समा बंध जाता था। उनका सितारों से बात करने का अंदाज कुछ ऐसा होता था कि श्रोताओं को लगता था कि वे भी उनके साथ बैठे हैं।

देखा जाए तो अमीन सायानी ने अपने कार्यक्रमों, आवाज और अंदाज से रेडियो को एक बड़ा शिखर दिया। यूं उन दिनों उनके अलावा कुछ और शानदार आवाजें भी रेडियो के लिए कार्यक्रम करती थीं। लेकिन अमीन सायानी का कोई सानी नहीं था। इसलिए रेडियो कार्यक्रम हों या जिंगल्स सभी जगह सबसे ज्यादा मांग अमीन सायानी की ही रहती थी। इसलिए उस दौर में सायानी के एस कुमार का फिल्मी मुकदमा, सैरिडिन  के साथी और सितारों की पसंद सहित कुछ और कार्यक्रम भी बेहद लोकप्रिय हुए।

सायानी की एक बड़ी बात यह थी कि वह मुस्लिम होते हुए सभी धर्मों को मानते थे। उन्होंने कश्मीरी पंडित लड़की रमा से प्रेम विवाह किया। लेकिन शादी के बाद ना रमा का नाम बदला और ना धर्म। उनकी जिंदगी की बहुत सी बातें अभी उनकी आत्मकथा से भी सामने आयेंगी। साथ ही उनका कार्यक्रम में बहनों और भाइयों कहने का मोहक अंदाज तो भुलाए नहीं भूलेगा।

अमीन सायानी को इस बात का तो संतोष रहता था कि उन्होंने काम तो बहुत किया। लेकिन इस बात का दुख भी कि बरसों इतना काम करने के बाद भी वह पैसा ज्यादा नहीं कमा सके। एक बार मुलाक़ात के दौरान उन्होंने मुझसे कहा था- हमारे समय में आज की तरह भरी भरकम पैसे नहीं मिलते थे। इसलिए मेरी इतनी कमाई ना हो सकी। इसीलिए आज भी मैं अपनी कार का ड्राईवर अफोर्ड नहीं कर सकता। पहले मैं खुद अपनी कार चलाता था। अब मेरा बेटा कार चलाता है। यूं अब कोविड के बाद आना-जाना छुट सा गया है। लेकिन कहीं जाना हो तो बेटा ही साथ ले जाता है।‘’

इधर अब वह जिस दुनिया में गए हैं वहाँ ना कार की जरूरत है और ना ड्राईवर की। वो एक गीत है ना- ‘’ना हाथी है ना घोडा है, वहाँ पैदल ही जाना है।‘’

 

 

 

 

 

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