शिव और शक्ति के मिलन का पर्व शिवरात्रि क्यों हैं बेहद खास ? आप भी पढ़िये

  • सार्थक गुलाटी

जिस प्रकार जल का कोई आकार न होने से उसे जिस भी पात्र में डाला जाए वह वैसा ही रूप ग्रहण कर लेता है, ठीक उसी प्रकार शिव एक ऐसे देवता हैं कि जो उन्हें जिस भी दृष्टि से देखता है उन्हें वे वैसे ही दिखाई देते हैं क्योंकि शिव निराकार और निर्गुण हैं अर्थात् जिसका न कोई आकार है और न ही कोई गुण (सत्,रज, तम)। शिव का तो अर्थ ही है – वह जो नहीं हैं। जहाँ सबकुछ शून्य हो, अगोचर हो और पाँचों इंद्रियों से परे हो। जिसके मन को पाँचों इंद्रियों के विषय अर्थात् नेत्रों से देखे गए रूप, कानों से सुने गए शब्द, जिह्वा से चखे गए रस, नाक से सूंगी हुई गंध और त्वचा पे हुए स्पर्श मोहित या भयभीत नहीं कर सकते, वही शिव है और शिव के इसी शिवत्व में खो जाने का पर्व है महाशिवरात्रि।

शिवरात्रि का यह पर्व बहुत ही विशेष है क्योंकि यह पर्व शिव-शक्ति के मिलन का पर्व है। इसे भी जो कोई जैसे देखता है, यह वैसे ही दिखता है। गृहस्थ और भौतिकवादी लोग यह त्योहार भगवान शिव और माँ पार्वती के विवाह की सालगिरह के रूप में देखते हैं जो आगे जाकर अपने दो पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ एक सभ्य परिवार की रचना करते हैं और पहाङों पर सुखपूर्वक रहते हुए “सादा जीवन, उच्च विचार” का उदाहरण देते हैं। वहीं दूसरी ओर साधु, संन्यासी और अंतर्मुखी लोग इसके बारे में कहते हैं कि शिव जिस रात अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर शून्य हो गए, उस समय स्वतः ही उनमें शक्ति समा गई और शिव शक्ति से एकाकर हो गए। शक्ति को पाकर परम आध्यात्मिक स्तर पर पहुँचने से शिव में कोई संशय न रहा, बुद्धि प्रवीण हो गई और विघ्न नष्ट हो गए जो गणपति के आगमन का सूचक है और शक्ति के द्वारा ही इंद्रियों, मन व शरीर पर विजय प्राप्त कर उनमें अथाह शारीरिक ऊर्जा उत्पन्न हुई जो युद्ध के देवता कार्तिकेय का सूचक है। इस प्रकार यह शिवरात्रि एक योगी की कहानी है जिसे जिसने जैसा देखा वैसा ही पाया।

Indian lord shiva colorful illustration,

ज्योतिष के अनुसार जब आत्मा अर्थात् सूर्य और मन अर्थात् चंद्र कुंभ और मकर राशि में आते हैं तब शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। यह दोनों ही राशियाँ महादेव के शिष्य शनिदेव की हैं। शनिदेव अध्यात्म और भौतिक दोनों तत्वों को दर्शाते हैं और जो जैसा कर्म करता है उनसे वैसा ही फल पाता है, ठीक वैसे ही जैसे जो महादेव को देखता है, उन्हें वैसा ही पाता है। ज्योतिष में मकर राशि कर्म को और कुंभ राशि फलों को दर्शाती हैं जहाँ कर्म करने का अभिप्राय फलों कि चिंता किए बिना एक आध्यात्मिक और कर्मयोगी की तरह कर्म करने से है और उसके पश्चात कुंभ राशि भौतिकवादी की तरह फलों को प्राप्त कर उनका सदुपयोग करने से है। कर्मों के द्वारा ही संन्यासी मोक्ष और गृहस्थ सुख प्राप्त करता है।

शिवरात्रि अनंतकाल से मानव को आध्यात्मिक और भौतिकवाद के बीच, कर्म और फल के बीच, संन्यास और गृहस्थ के बीच तथा शिव और शक्ति के बीच संतुलन बनाने की शिक्षा देती है। शिव-शक्ति के इस पावन मिलन से सीख लेकर सभी को अपना जीवन सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए।

 

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