Makar Sankranti के दिन क्या करें, जानिए इस त्यौहार के बारे में सब कुछ

मकर संक्रान्ति के पर्व पर क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य

भारतीय संस्कृति पर्व प्रधान व विज्ञान से परिपूर्ण है। पर्वों की इस श्रृंखला में मकर संक्रान्ति भी प्रकाश पर्व के रूप में ही मनाई जाती है। इस पर्व के ज्योतिषीय एवं वैज्ञानिक रहस्यों को समाज तक पहुँचाने हेतु पुनर्वास ने हरियाणा में स्थित महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन शर्मा से बात की।

आचार्य जी यह जानना आवश्यक है कि संक्रान्ति किसे कहते हैं व वर्ष में कितनी संक्रान्तियाँ होती हैं ?

सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण यानि प्रवेश करता है उसे संक्रान्ति पर्व का दिन कहा जाता है। क्रान्तिवृत्त, भचक्र या राशिचक्र में 27 नक्षत्रों को 12 भागों में विभाजित किया जाता है। इस प्रकार सवा दो नक्षत्र की एक राशि और 27 नक्षत्रों से 12 राशियां बनती हैं। इसे क्रान्तिचक्र या राशिचक्र कहते हैं। सूर्य एक राशि में एक मास तक रहता है या कह सकते हैं कि सूर्य एक मास में एक राशि का भोग करता है, तो 12 मासों में 12 राशियों का भोग करेगा। इस प्रकार वर्ष में 12 ही संक्रान्तियां होती हैं। फिर जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि -मकर संक्रान्ति किसे कहते हैं ? सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रान्ति या माघ संक्रान्ति कहते हैं।

सूर्य मकर में प्रवेश कब करेंगे ?

सूर्य 14 जनवरी (माघ कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि) शनिवार को रात्रि 20:44 पर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस बार ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति पर त्रिग्रही (सूर्य,शुक्र,शनि) योग भी बन रहा है। त्रिग्रही योग में दान पुण्य अधिक फलदायी होता है। यदि सूर्य संक्रान्ति सूर्यास्त के बाद आती है तो पुण्यकाल दूसरे दिन होता है। अतः 15 जनवरी को रविवार के दिन मकर संक्रान्ति का पुण्यकाल विशेष लाभकारी होगा। 15 जनवरी को सूर्योदय से दोपहर 12:45 तक स्नान,दान, यज्ञ आदि हेतु सर्वोत्तम पुण्यकाल का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।

मकर संक्रान्ति से ही अयन का परिवर्तन होता है। अब प्रश्न उठता है कि -अयन किसे कहते हैं? सिद्धान्त ज्योतिष के अनुसार सूर्य का उत्तर दिशा विशेष में गमन अयन कहलाता है। अतः सूर्य जब 06 राशियों का भोग करता है तो अयन कहलाता है। अयन दो प्रकार के होते हैं – उत्तरायण और दक्षिणायन।

अयने द्वे समाख्याते उत्तरं दक्षिणं तथा।
उत्तरे शुभकार्यं च न प्रोक्तं दक्षिणे बुधैः।।
मकरादिराशिषट्कस्थे सूर्ये सौम्यायने तथा।
कर्कादिराशिषट्कस्थे सूर्ये याम्यायनं स्मृतम्।।

मकर संक्रान्ति की विशेषता यह है कि इस दिन उत्तरायण का प्रारम्भ होता है। इस दिन देवताओं के दिन की शुरुआत होती है अतः इस पर्व को देवताओं का ब्रह्ममुहूर्त कहा जाता है। उत्तरायण का 06 महीना देवताओं का दिन और दक्षिणायन का 06 महीना देवताओं की रात्रि कही जाती है। उत्तरायण के शुरु होते ही सूर्य धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ने लगता है, जिसके कारण दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी। उत्तरायण काल को शास्त्रकारों ने साधनाओं एवं परा-अपरा विद्याओं की प्राप्ति की दृष्टि से सिद्धिकाल माना है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उत्तरायण में सभी प्रकार के शुभ कार्य करना अतीव लाभकारी होता है। जैसा कि ज्योतिष के ग्रन्थ मुहूर्तचिन्तामणि में कहा गया है कि –

गृहप्रवेशत्रिदशप्रतिष्ठा विवाहचौलव्रतबन्धपूर्वम्।
सौम्यायने कर्म शुभं विधेयं यद्गर्हितं तत्खलु दक्षिणे च।।

अर्थात् गृह प्रवेश, विविध प्रकार के प्रतिष्ठा कर्म , विवाह, मुण्डन,उपनयन आदि संस्कार उत्तरायण में अतीव प्रशस्त माने गए हैं।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है कि –

माघ मकरगत रवि जब होई
तीरथ पतहि आउ सब कोई।।

अर्थात् माघ में सूर्य जब मकर राशि में होते हैं या प्रवेश करते हैं उस समय तीर्थराज प्रयाग में श्रद्धालु स्नान, दान, पुण्य कर्म के लिए आते हैं। प्रयाग में आज भी त्रिवेणी संगम पर मेला लगता है।

मकर संक्रान्ति के दिन क्या करें |

इस दिन पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान पुण्यदायी होता है व स्तोत्र पाठ, मन्त्र जप,तर्पण,ब्राह्मण भोजन,अनाज,वस्त्र,फल,गुड़,तिल आदि के दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन देवतागण पूजा पाठ, यज्ञ ग्रहण करने हेतु पृथ्वी पर आते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन माघ महात्म्य का पाठ आरम्भ करके माघ मासान्त तक नित्य पाठ करने का विशेष माहात्म्य होता है।

यह पर्व हमें पवित्रता और निर्मलता का संदेश देते हुए त्याग और परोपकार की प्रेरणा भी देता है।
तीर्थ स्नान के समय शारीरिक शुद्धि के साथ ही ईश्वर से मानसिक शुद्धि हेतु भी प्रार्थना करनी चाहिए।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण उत्तरायण के महत्त्व को बताते हैं कि –

अग्नि ज्योतिरह: शुक्लं षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।

अर्थात् जो ब्रह्मवेता योगीजन उत्तरायण सूर्य के 06 महीनों, दिन के प्रकाश, शुक्ल पक्ष आदि में प्राण छोड़ते हैं वे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। अतः जीवन तो जीवन, मृत्यु के लिए भी उत्तरायण काल की विशेषता शास्त्रों में वर्णित है।

महाभारत के युद्ध के समय भीष्म पितामह युद्ध करते हुए जब बाणों की शय्या पर पड़ गए तो उस समय दक्षिणायन था। उन्होंने अपने प्राणों को त्यागने हेतु उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी।

मकर संक्रान्ति के दिन हम सभी को संकल्प करना चाहिए कि मैं अपने जीवन में मन, वचन, कर्म व ईमानदारी और कर्मठता के साथ नई संक्रान्ति लाएंगे।

तैतिरीय उपनिषद् में वर्णन मिलता है कि –
उदिते हि सूर्ये मृतप्रायं सर्वं जगत्पुनश्चेतनायुक्तं सदुपलभ्यते।
योसौ तपन्नुदेति स सर्वेषां भूतानां प्राणानादायोदेति।।

अर्थात् भगवान सूर्य उदित होकर अपनी उज्ज्वल रश्मियों से तेजपूर्ण आभा से सम्पूर्ण भूमण्डल को प्रकाशित कर देते हैं, उसी प्रकार हे मानव! तू स्वयं ऊंँचा उठ,उन्नत हो और सूर्य की तरह अपना आत्मतेज विकसित कर। अपने आत्म विकास के साथ ही बिना किसी भेदभाव के सम्पूर्ण जनमानस के हृदयों को आशा, उत्साह व आनंद से भरने का प्रयास करके राष्ट्र निर्माण में सहयोगी हों। अतः हमें मकर संक्रान्ति पर्व के पूर्ण आध्यात्मिक लाभ को उठाते हुए पूर्ण ओजस्विता के साथ जीवन जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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