राखी किस दिन मनाएँ? जानिए क्या कहते हैं महाकाल, सोमनाथ, झंडेवाला और बाँके बिहारी मंदिर के पुरोहित

  • प्रदीप सरदाना

    वरिष्ठ पत्रकार

   संस्थापक संपादक- punarvasonline.com

भाई-बहन के पवित्र प्रेम का सबसे बड़ा उत्सव रक्षा बंधन इस बार सवालिया घेरों में उलझा है। भाई-बहन इस दिन का इंतज़ार पूरे साल करते हैं लेकिन इस बरस बड़ी उलझन है कि रक्षा बंधन किस दिन मनाएँ।

यूं विभिन्न पंचांगों और केलेंडर्स में रक्षा बंधन की तिथि 30 अगस्त दी हुई है। विद्यालयों के साथ जहां जहां रक्षा बंधन के अवकाश की व्यवस्था है, वहाँ भी अधिकतर जगह अवकाश 30 अगस्त को है। लेकिन बहुत सी जगह रक्षा बंधन 31 अगस्त मनाने की बात भी ज़ोर-शोर से की जा रही है।

इस कारण सभी इस अजमंजस में हैं कि राखी 30 को मनाएँ या 31 अगस्त को ? इस  दुविधा से बचने के लिए हमने देश के चार सुप्रसिद्द मंदिरों के पुरोहितों से बात की।

जिनमें जहां उज्जैन के महाकाल और गुजरात के सोमनाथ जैसे दो प्राचीन  और प्रख्यात भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मंदिर के पुरोहित हैं। तो दिल्ली के प्राचीन झंडेवाला देवी मंदिर के साथ भगवान श्रीकृष्ण की नगरी वृन्दावन के सुप्रसिद्द बांकेबिहारी मंदिर के पुरोहित भी। वे किस दिन और किस समय रक्षा बंधन मनाने की बात कहते हैं। वह तो आपको बताते ही हैं। साथ ही यह भी बता दें कि 30 और 31 अगस्त को लेकर असमंजस क्या है।

भद्रा काल को लेकर है असमंजस

राखी का त्यौहार हर बरस श्रावण की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस बार श्रावण पूर्णिमा 30 अगस्त 2023 को सुबह 10.58 से आरंभ होकर 31 अगस्त सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक है। इसलिए यूं तो रक्षा बंधन का पर्व 30 अगस्त को है। लेकिन अड़चन यह है कि 30 अगस्त को जब पूर्णिमा आरंभ हो रही है। ठीक उसी समय भद्रा काल भी आरंभ हो रहा है। भद्रा काल के दौरान रक्षा बंधन जैसा शुभ पर्व मनाना अशुभ और हानिकारक माना जाता है।

भद्रा काल 30 अगस्त को सुबह 10.58 से शुरू होकर रात 9 बजकर एक मिनट तक रहेगा। इस कारण पूर्णिमा में रक्षा बंधन मनाने के लिए, जो भद्रा काल रहित समय बचता है, वह रात 9 बजकर 2 मिनट से 31 अगस्त सुबह 7 बजकर 5 मिनट का है। जिससे या तो 30 अगस्त में रात 9 बजे के बाद कभी राखी बँधवाई जाये या फिर 31 अगस्त को सुबह 7 बजे तक।

रक्षा बंधन सदा दिन में ही मनाने की परंपरा रही है। जिससे बहन-भाई परिवार के साथ बैठकर खा-पी सकें, हालचाल बाँट सकें,कुछ मस्ती, कुछ शरारतें कर सकें या ऐसे पुराने दिनों को याद कर सकें। या फिर कहीं घूमने फिरने या फिल्म देखने जाना हो तो वहाँ जा सकें। लेकिन रात को या सुबह सुबह ही रक्षा बंधन का उत्सव मनाने पर त्यौहार बेमजा सा भी हो सकता है।

जहां तक रक्षा बंधन के शुभ मुहूरत की बात है तो उसके लिए तीन शुभ मुहुरत  हैं। शुभ अमृत चोघड़िया मुहूरत 30 अगस्त रात्रि 9 बजकर 2 मिनट से रात्रि 11 बजकर 13 मिनट तक।

दूसरा 31 अगस्त को सुबह तड़के ब्रह्म लाभ चोघड़िया मुहूरत 3 बजकर 32 मिनट से सुबह 4 बजकर 54 मिनट तक।

तीसरा 31 अगस्त सुबह 6 बजकर 21 मिनट से सुबह 7 बजकर 6 मिनट तक शुभ चोघड़िया मुहूरत।

क्या कहते हैं सुप्रसिद्द मंदिरों के पुरोहित

राखी 30 को मनाएँ या 31 को जब यह सवाल हमने उज्जैन के विश्व विख्यात प्राचीन ज्योतिर्लिंग मंदिर महाकाल के मुख्य पुरोहित आशीष पुजारी से पूछा तो उन्होंने बताया-‘’राखी के लिए सबसे शुभ समय 30 अगस्त को रात्रि 9 बजे के बाद का है। या फिर 31 अगस्त को सुबह 7 बजे से पहले भी राखी बँधवाई जा सकती है। भद्रा काल में मनाएँ या 31 अगस्त को सुबह 7 बजे के बाद पूर्णिमा समाप्त होने के बाद मनाएँ तो उसका कोई औचित्य नहीं है। इसलिए मेरा मत यही है कि 30 अगस्त रात्रि 9 बजे के बाद राखी मनाना श्रेयसकर है। समय के अनुसार इंसान को जीवन में परिवर्तन लाते रहने चाहियेँ।

जबकि दिल्ली के सुप्रसिद्द झंडेवाला देवी मंदिर के पुरोहित पंडित महावीर का भी कुछ ऐसा ही मत है। वह बताते हैं-‘’श्रावण पूर्णिमा में भद्रा काल के बाद जो समय है वही रक्षा बंधन के लिए उत्तम समय है। वह समय 30 अगस्त रात्रि 9 बजे के बाद से 31 अगस्त सुयब 7 बजे तक ही है। यूं 31 अगस्त को 7 बजे के बाद भी कुछ लोग इस उत्सव को मनाने की पैरवी कर सकते हैं। यह कहा जा सकता है कि 31 को सुबह पूर्णिमा होने से इसे पूरे दिन माना जाये। लेकिन 7 बजे के बाद तो पड़वा लग जाएगी। यदि 31 को 7 बजे के बाद पड़वा में राखी बंधवाते हैं तो उसका कोई प्रयोजन नहीं है। हाँ 30 अगस्त को भद्रा काल में सुबह 11.30 से 12.30  बजे के बीच एक घंटे का अभिजित मुहूरत है। उस एक घंटे के समय में भी 30 अगस्त को राखी बँधवाई जा सकती है।

उधर भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थल मथुरा के निकट वृन्दावन में स्थित विश्वप्रसिद्द बांकेबिहारी मंदिर के, मुनीष शर्मा ने बताया –‘’हमारे बाँकेबिहारी जी मंदिर में तो राखी का उत्सव 31 अगस्त को ही मनाया जाएगा। ठाकुर जी के लिए देश-विदेश से असंख्य रखियाँ आती हैं। उन्हें हम 31 अगस्त सुबह ही ठाकुर जी के चरणों में रख देंगे। हमने श्रावण पक्ष का जो पत्र जारी किया है उसमें भी श्रावण पूर्णिमा का व्रत तो पूर्व दिन यानि 30 अगस्त को बताया है। लेकिन रक्षा बंधन के लिए 31 अगस्त ही घोषित की है।

सोमनाथ मंदिर के पुरोहित का अलग मत

गुजरात के वैभवशाली और सदियों से चर्चित सोमनाथ मंदिर के पुरोहित कुणाल भाई बताते हैं-‘’राखी का उत्सव पूर्णिमा को ही होता है। यह ठीक कि 30 अगस्त को भद्रा काल भी ठीक उसी समय शुरू हो रहा है जब पूर्णिमा शुरू हो रही है। लेकिन मैं यहाँ एक बात कहना चाहूँगा कि बुधवार को पड़ने वाली भद्रा कल्याणकारी मानी जाती है। यह संयोग ही है कि 30 को बुधवार है। इसलिए 30 अगस्त को सुबह 11 बजे से रात 7 बजकर 50 मिनट तक रक्षा बंधन का उत्सव बिना किसी चिंता और संकोच के मनाया जा सकता है। यह हानिकारक नहीं कल्याणकारी रहेगा। यूं भद्रा रात 9 बजे तक है। लेकिन गति के 24 मिनट के तीन चक्र यानि भद्रा काल के खत्म होने से 72 मिनट पहले तक रक्षा बंधन पूर्णिमा में ही दिन के समय मनाया जा सकता है।

कुणाल भाई यह भी बताते है- दो बात और एक यह कि मकर का चंद्र होने पर भद्रा का पातालवास होता है। इसलिए भी भद्रा का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। दूसरा हम बचपन से ही देखते आ रहे हैं कि राखी हम दिन भर में किसी भी समय बंधवाते रहे हैं। कोई भी बहन जब भाई को राखी बांधती है वह शुद्द मन से अपने भाई के भले और कल्याण का भाव रखते हुए बांधती है। जब भाई के लिए बहन की भावना शुद्द और अच्छी है तो वह कभी भी राखी बांधे, कुछ अप्रिय और बुरा हो ही नहीं सकता।‘’

तब अब क्या करें

देखा जाये तो देश के चार मंदिरों के पुरोहित रक्षा बंधन 30 और 31 अगस्त को कब मनाएँ इस पर एक मत नहीं हैं। एक मत वाली बात यह है कि राखी पूर्णिमा को ही मनाई जाये। बांकेबिहारी मंदिर में चाहे 31 अगस्त को राखी मनाने की बात कही गयी है लेकिन वहाँ मंदिर में तो 31 सुबह ही ठाकुर जी के श्री चरणों में राखी रख दी जाएगी।

सोमनाथ मंदिर के कुणाल भाई ने भद्रा के बुधवार होने के कारण उसे कल्याणकारी बताया है। तो भद्रा के इस समय पृथ्वी की जगह पातालवास की बात कहते हूर भद्रा दोष को सिरे से नकार दिया है।

जबकि महाकाल और झंडेवाला मंदिर के पुरोहित आशीष पुजारी ने रक्षा बंधन को 30 अगस्त को रात्रि 9 बजे से 31 अगस्त सुबह 7 बजे मनाने की बात की है। यानि चार में से दो पुरोहित का मत एक ही है। जबकि दो अन्य पुरोहित में एक इसे 30 को दिन में और दूसरे इसे 31 को दिन में मनाने का मत रखते हैं।

यूं बहुमत 30 को रात 9 बजे के बाद का पक्ष रखता है। लेकिन सोमनाथ के पुरोहित की बात में भी दम है। ऐसे में आप अपने मन से फैसला ले सकते हैं। या फिर बहुमत के अनुसार 30 अगस्त को रात 9 बजे बाद या 31 को सुबह 7 बजे तक बिना किसी सोच विचार और किन्तु परंतु के राखी बँधवा सकते हैं।

रात्रि में चाहे पहले राखी मनाने की बात नहीं सुनी। लेकिन जब हम दीपावली, शिवरात्री और जन्माष्टमी जैसे अपने बड़े उत्सव रात्रि में मना सकते हैं तो राखी क्यों नहीं ?

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