Sridevi Death Anniversary: सिनेमा की ‘चांदनी’ को अंतिम 20 बरसों में सिर्फ 4 फ़िल्में ही मिलीं

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

सन 2018 की 24 फरवरी की रात उस समय सिने प्रेमियों के लिए क़यामत की रात बन गयी थी, जब आधी रात को यह खबर आई कि श्रीदेवी (Sridevi) का दुबई में निधन हो गया है। हालांकि पहले तो अधिकतर लोगों ने इस खबर को किसी की कोई शरारत समझते हुए, इस पर यकीन ही नहीं किया। लेकिन रात के बढ़ने के साथ साथ जब इस खबर की पुष्टि हुई तो सभी के होश उड़ गए। आज छह साल बाद भी वह खबर झकझोर देती है।

श्रीदेवी (Sridevi) देश की एक ऐसी तारिका रही हैं जिन्होंने अपनी भूमिकाओं और शानदार अभिनय से भारतीय नारी के लगभग सभी रूपों को जीवंत किया। ‘चांदनी’ (Chandani) जैसी फिल्म में उनकी परंपरागत भारतीय नारी की तस्वीर उभरती है तो मिस्टर इंडिया में एक नटखट, चंचल लडकी की। ‘चालबाज’ (Chaalbaaz) में तो वह अपनी अंजू की एक भूमिका में शांत सीधी सादी, भोली भाली नज़र आती हैं तो अपनी मंजू की दूसरी भूमिका में वह तेज तर्रार और ऐसी चालाक बन जाती हैं जो कहती है किसी के हाथ न आएगी यह लडकी।

मुझे श्रीदेवी (Sridevi) से मिलने और उनके इंटरव्यू करने के कई मौके मिले। वह हमेशा ऐसी बातों और बयानों से बचती थीं, जिनके कारण कोई विवाद उत्पन्न हो। जबकि आज हम ऐसे बहुत से कलाकारों को देख सकते हैं जो जानबूझकर ऐसे बयान देते हैं जिनसे विवाद उत्पन्न हो। जिससे वे लाइम लाइट में आ सकें, प्रचार पा सकें।

श्रीदेवी (Sridevi) ने 4 बरस की आयु में ही दक्षिण की फिल्मों में अभिनय शुरू कर दिया था। जब 24 फरवरी 2018 को उनका निधन हुआ तब वह मात्र 54 साल की थीं। यानी वह एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्हें अपनी 54 वर्ष की आयु में 50 बरस का अनुभव था। उन्होंने विभिन्न भाषाओं की कुल 300 फिल्मों में काम किया। जिनमें उनकी हिंदी फिल्मों में हिम्मतवाला, नगीना, लम्हे, खुदा गवाह, जुदाई, गुमनाम भी हैं। जबकि सदमा, चालबाज़, मिस्टर इंडिया और चांदनी श्रीदेवी (Sridevi) के करियर की 4 सबसे बेहतर फिल्म हैं। चांदनी के कारण तो उन्हें बॉलीवुड की चांदनी का भी ख़िताब सा मिल गया था।

हालांकि यह दुखदायी है कि श्रीदेवी (Sridevi) के करियर के अंतिम 20 बरसों में उन्हें फ़िल्में मिलनी बहुत कम हो गयीं थीं। अपनी करियर के पहले 30 बरसों में श्रीदेवी (Sridevi) ने जहाँ 296 फ़िल्में की थीं। वहां अंतिम 20 बरसों में उन्होंने सिर्फ 4 फ़िल्में कीं। जिनमें तीन हिंदी फ़िल्में जुदाई, इंग्लिश विन्ग्लिश, और मॉम हैं तो एक तमिल फिल्म है ‘पुली’।

इन फिल्मों में से भी दो फिल्मों के निर्माता उनके पति बोनी कपूर (Boney Kapoor) थे। यानी बॉक्स ऑफिस की महारानी कही जाने वाली श्रीदेवी (Sridevi) को अपने अंतिम 20 बरसों में सिर्फ एक ही हिंदी फिल्म में किसी निर्माता ने लिया। फ़िल्मी दुनिया का यह काला सच कितना भयावह है इसकी कल्पना की जा सकती है।

जबकि श्रीदेवी (Sridevi) के निधन के बाद 4 दिन तक देश भर में किसी राष्ट्रीय शोक सा वातावरण था। लगभग सभी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स सिर्फ और सिर्फ श्रीदेवी (Sridevi) के समाचार दे रहे थे। मानो देश भर में कुछ और अहम घट ही नहीं रहा था। श्रीदेवी (Sridevi) की अंतिम बिदाई में भी मुंबई में जैसी भीड़ उमड़ी थी कुछ वैसी भीड़ इससे पहले सिर्फ राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) के समय देखी गयी या फिर बाल ठाकरे (Bal Thackeray) के निधन के समय।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी मरणोपरांत मिला

इसमें कोई शक नहीं श्रीदेवी (Sridevi) को पसंद करने वालों की देश-विदेश में कोई कमी नहीं है। लेकिन उन्हें जीते जी जो सम्मान नहीं मिल सके उन्हें पाने का उनका सपना उनकी मौत के बाद ही पूरा हो सका। उन्हें अपनी चालबाज़ और लम्हे फिल्मों के लीये दो फिल्म फेयर पुरस्कार तो 1990 के दशक में ही मिल गए थे। लेकिन उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार उनके निधन के कुछ दिन बाद 13 अप्रैल को उनकी ‘मॉम’ (Mom) फिल्म के लिए मिला। जबकि राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का सपना उनका बहुत पुराना था।

यहाँ तक वह ऐसी पहली अभिनेत्री भी बनीं जिन्हें मरणोपरांत तिरंगे में लिपेटकर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम बिदाई दी गयी। उधर श्रीदेवी (Sridevi) को निधन के बाद उन्हें दो अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले। जिनमें एक था विश्व के सबसे बड़े ऑस्कर समारोह में पहली बार किसी भारतीय अभिनेत्री को श्रद्दांजलि देने का और दूसरा था कान समारोह में ‘टाइटन अवार्ड’ मिलने का।

निश्चय ही श्रीदेवी (Sridevi) के इन पुरस्कारों से विश्व में उनका नाम और कद तो बढ़ा ही साथ ही भारतीय सिनेमा का भी इससे गौरव बढ़ा। श्रीदेवी (Sridevi) ने वह कर दिखाया जो इससे पहले कोई और भारतीय अभिनेत्री नहीं कर सकी।

Related Articles

Back to top button