मंजू शर्मा की कविता – चाँद की साध, सावन का है अधिक मास, मैं भी कुछ पुण्य कमाऊँ

  • मंजू शर्मा 

  कैलिफोर्निया, अमेरिका

चाँद की साध

 

चाँद आज कितना उत्साहित,

अजब नशा था छाया,

मन में दबी साध को,

पूरा करने का दिन आया।

 

शिव ने मुझको गंगा संग,

अपने मस्तक पर धारा,

चंद्रमौली, चन्द्रशेखर का,

नाम जपे जग सारा।

 

सावन का है अधिक मास,

मैं भी कुछ पुण्य कमाऊँ,

क्यों न गंगा मैया में,

मैं भी डुबकी लगाऊँ।

पलक झपकते ही चंदा,

हर की पौड़ी पर आया,

अनगिन श्रद्धालुओं को,

स्नान ध्यान में पाया।

 

हर हर गंगे की धुनि देती,

चहूँ दिशि में थी सुनाई,

मोक्षदायिनी गंगा भी,

गड़ गड़ करती हर्षाई।

 

चंदा भी गंगा की लहरों-

संग लगा तिरने,

अनगिन बहते दीपों की ,

छवि लगा मुग्ध हो तकने

गंगा स्नान,आरती दर्शन,

दृश्य बहुत मन भाया,

साधपूर्ति सुखद स्मृति ले,

गगन-अयन लौट आया।

 

ग्रह नक्षत्र सितारों ने भी,

समवेत स्वरों में गाया,

हर हर गंगे-तुमुल नाद,

अंतरिक्ष में छाया।

 

Related Articles

Back to top button