Mahashivratri 2024: भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह ही नहीं, ज्योर्तिलिंग के प्रकट होने का भी दिन है महाशिवरात्री

अनिल शर्मा। भारतवर्ष में मनाये जाने वाले पर्व-उत्सवों में महाशिवरात्रि एक महत्वपूर्ण पर्व है। महाशिवरात्री को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के रूप में तो मनाया जाता ही है। लेकिन इसके साथ ही यह पर्व भगवान शंकर के शिवलिंग रूप में प्रकट होने का भी पर्व है।

हिन्दुस्तान का कोई गांव-मुहल्ला ऐसा नहीं जहां शिवलिंग स्थापित न हो। राम हो या रावण, सबने इसकी अर्चना की है। पदमकल्प के प्रारंभ में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव, शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। तभी ब्रह्मा और विष्णु ने उसकी पूजा की। आज तो सब जगह भोलेनाथ के इस रूप की पूजा अर्चना होती है।

बेहद रोचक है कथा

ईशान संहिता में एक कथा आती है जिसमें शिवलिंग प्रकट होने का वर्णन है-

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यामदिदेवो महानिशि।

शिवालिंग तपोद्धूतः कोटि सूर्य समप्रभः।।

कथा के अनुसार पदमकल्प के शुरू में तब तक ब्रह्मा जी अण्डज, पिण्डज, स्वेदज, उर्द्धाभज और देवताओं आदि की सृष्टि कर चुके थे। एक दिन वह घूमते घूमते क्षीर सागर पर जा पहुंचे।

क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर आराम कर रहे थे। माता लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी। गंधर्व किन्नर, नन्द, सुनन्द आदि पार्षद वहां हाथ जोड़े खड़े थे। आंखें मूंदे भगवान विष्णु को देख ब्रह्मा ने सोचा कि मैं सृष्टि की रचना करने वाला घूम रहा हूं। यह अपनी आंखें बंद किये चुपचाप आराम करने वाला कौन है?

ब्रह्मा जी को गर्व हो गया था कि वह ही सृष्टि के स्वामी और पितामह हैं। वह विष्णु के समीप पहुंचे और कहा-‘‘तुम कौन हो? उठो, देखो, मैं सृष्टि का नियन्ता यहां तुम्हारे सामने हूं।’’

भगवान विष्णु ने जरा आंखें खोली और मुस्कुराते हुए कहा-‘‘वत्स तुम्हारा कल्याण हो, आओ बैठो।’’

इस बात से ब्रह्मा का क्रोध भड़क उठा-‘अरे, मैं सृष्टि का रचनाकार पितामह हूं। तुम्हें मेरा सम्मान करना चाहिए जबकि तुम अपनी शैय्या पर लेटे हुए मुस्कुरा रहे हो।’’

भगवान विष्णु ने कहा- मेरे में ही समस्त संसार समाया है। तुम भी मेरी नाभि से ही उत्पन्न हुए हो। अतः ब्रह्मा तुम तो मेरे ही पुत्र हो।

इस प्रकार ब्रह्या और विष्णु के बीच सृष्टि के स्वामी व सृष्टा की बात को लेकर वाद-विवाद इतना बढ़ गया कि उनमें ठन गयी।

भगवान ब्रह्मा ने पाशुपत अस्त्र और भगवान विष्णु ने माहेश्वर अस्त्र उठा लिया। दसों दिशाओं में इन अस्त्रों के कारण हाहाकार मच गया। देवताओं को चिंता हुई कि यदि इन अस्त्रों का प्रयोग हो गया तो सृष्टि के प्रारंभिक चरण में ही प्रलय हो जाएगी।

जब महादेव शिवलिंग में हुए प्रकट

देवतागण इसी चिन्ता को लेकर कैलाश पर्वत पर भगवान शिवजी के पास पहुंचे और उनसे यह संग्राम रोकने की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने उनको शांत करने का उपाय किया। वह उन दोनों के बीच अनादि व अनन्त ज्योर्तिमय स्तंभ (लिंग) के रूप में प्रकट हो गये।

 

 

इसी लिंग में विष्णु का माहेश्वर अस्त्र व ब्रह्मा का पाशुपत अस्त्र लीन हो गया। बाद में उन दोनों ने इस स्तंभ की पूजा अर्चना की। जिस दिन यह लिंग प्रकट हुआ वह दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि का ही दिन था।

इस पूजा अर्चना के उपरान्त ब्रह्मा जी ने प्रार्थना की- हे प्रभु हम दोनों इस स्तंभ (लिंग) के आदि अंत का पार नहीं पा सके हैं तो भविष्य में मानव कैसे इसकी पूजा अर्चना कर सकेगा?

ब्रह्मा देव की प्रार्थना पर भगवान शिव का वह ज्योर्तिमय लिंग द्वादश ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुआ। ये द्वादश ज्योर्तिलिंग हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, बिल्वेश्वर, त्रायम्बकेश्वर, बैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर तथा घुरमेश्वर।

श्रद्धालु भगवान शिव स्वरूप शिवलिंग पर जल चढ़ाकर महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की कृपा के पात्र बन मनोकामनाओं की प्राप्ति करते हैं।

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