International Museum Day 2024: भोपाल के मोती महल में बनेगा मध्य प्रदेश का पहला सिटी म्यूजियम, जानिए कितना खास होगा यह

एक ऐतिहासिक कदम के तहत भोपाल को मध्य प्रदेश का पहला सिटी म्यूजियम मिलने जा रहा है। ऐतिहासिक मोती महल के एक विंग में केंद्र सरकार से सिटी म्यूजियम के स्थापना की मंजूरी मिल गई है। प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति विभाग एवं प्रबंध संचालक म.प्र. टूरिज्म बोर्ड शिव शेखर शुक्ला ने बताया कि यह बहुप्रतीक्षित संग्रहालय क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति की समृद्ध विरासत को आधुनिक तकनीक की मदद से प्रदर्शित करेगा। पर्यटक यहां भोपाल और आसपास के क्षेत्रों से पुरातात्विक खोजों, प्रागैतिहासिक शैल चित्रों, पत्थर के औजारों, प्राचीन मूर्तियों, मंदिर के अवशेषों और भोपाल नवाब काल की उत्कृष्ट कला के संग्रह से अवगत होंगे। सभी आयु वर्ग के लिए एक आकर्षक और जानकारीपूर्ण अनुभव बनाने के लिए ऑडियो-विजुअल गाइड, क्यूआर कोड स्कैनर जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि भोपाल की पहली महिला शासक कुदसिया बेगम (1819-37) की बेटी, सिकंदर बेगम (1844-68) ने मोती महल का निर्माण कराया था।

प्रमुख सचिव शुक्ला ने बताया कि, भोपाल के महाप्रतापी शासक राजा भोज की जीवनी, महानता, पराक्रम, शिक्षा एव जनकल्याण के क्षेत्र में किये गए विकास कार्यों से लोगों को अवगत कराने हेतु एक अन्य संग्रहालय तैयार किया जाएगा। मोती महल के दूसरे विंग में मध्य भारत के महान योद्धा और परमार शासक राजा भोज के जीवन पर आधारित म्यूजियम बनना प्रस्तावित है, जिसका नाम महाप्रतापी भोज संग्रहालय होगा। यहां राजा भोज से संबंधित वस्तुएं प्रदर्शित होंगी।

ट्राइबल म्यूजियम में जनजातीय समाज के सात नए आवास तैयार

जनजातीय समुदाय की जीवन शैली को समझने और उसे करीब से देखने के लिए भोपाल में स्थित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय (ट्राइबल म्यूजियम) में प्रदेश की सात प्रमुख जनजातियों क्रमशः गोण्ड, भील, बैगा, कोरकू, भारिया, सहरिया और कोल के सात आवास बनाए गए हैं। इन आवासों में जनजातियों के परिवार तीन से छह महीने तक रहेंगे। बाद में रोटेशन के आधार पर दूसरे परिवार इन आवासों में रहने के लिए आते रहेंगे। इस उपक्रम से शहरी समाज व युवाओं को प्रदेश के जनजाति समाज को जानने समझने का मौका मिलेगा। इसके साथ-साथ वे वास्तविक मध्यप्रदेश को उनकी असल बसाहटों में रहते हुए देख सकेंगे। इन आवासों में जनजातीय समुदायों के व्यंजन और उनकी कला को देखने का अवसर भी मिलेगा।

जनजातीय समुदाय़ ने अपनी विशिष्ट जीवन शैली के मुताबिक इन आवासों को बनाया और उसका वास्तुशिल्प विकसित किया है। इन आवासों को बनाने का जिम्मा उन्हें ही सौंपा गया। बांस की टाट पर मिट्टी लीपकर बनाई दीवार…, घर के बाहर बड़ा देव की स्थापना… और घर में मिट्टी और पत्थर की चक्की। मप्र की जनजातियों का यही अंदाज, उनकी संस्कृति, रहन-सहन, पहनावा, खान-पान जल्द ही मप्र जनजातीय संग्रहालय में देखने को मिलेगा। इन घरों में अनाज रखने की कोठी, खाट, रोज उपयोग में आने वाली सामग्री और रसोई विशेष रूप से देखने को मिलेगी।

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