लाखों का पैकेज छोड़ एमबीए नीलू ने शुरू की ड्रैगन फ्रूट की खेती

मीरजापुर । राजगढ़ की एमबीए पास नीलू सिंह पर यह कहावत सटीक बैठती है। नीलू सिंह एमबीए उत्तीर्ण करने के बाद कारपोरेट सेक्टर की नौकरी को छोड़कर खेती बाड़ी कर रही हैं। उद्यान विभाग की योजना से उनकी मेहनत और सफलता को नया आयाम मिल रहा है। नीलू की सफलता का आलम यह है कि उनको देखकर वर्तमान में कई महिलाएं और लड़कियां भी पारंपरिक तरीके की खेती को छोड़ मुनाफा देने वाली ड्रैगन फ्रूट की खेती करना आरंभ कर दिया है। कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ श्रीराम सिंह और उप निदेशक उद्यान विंध्याचल मंडल मेवाराम ने भ्रमण कर महिला किसान का उत्साहवर्धन किया।

जनपद के विकास खंड राजगढ़ की नीलू सिंह ने वर्ष 1998 में बरेली विश्वविद्यालय से एमबीए उत्तीर्ण किया। उन्होंने कारपोरेट जगत की कई अलग-अलग कंपनियों में नौकरी की, लेकिन उनका मन नहीं लगा। अंत में कारपोरेट की नौकरी छोड़कर खेती करने का निर्णय लिया। वर्तमान में वह राजगढ़ के गढ़वा गांव में चार बीघे की एक प्लाट में ड्रैगन फ्रूट और स्ट्राबेरी की खेती कर रही हैं। नीलू सिंह ने बताया कि 1998 में बरेली विश्वविद्यालय से एमबीए किया था। उसके बाद कई कंपनियों में नौकरियां भी की, लेकिन आज सबकुछ छोड़कर बागवानी कर रही हैं।

बचपन से बागवानी का शौक

नीलू सिंह ने अभी तक विवाह नहीं किया है। बताया कि बचपन से ही बागवानी करने का बहुत शौक था। उनके दादा केले की खेती करते थे। एमबीए करने के बाद कई अच्छी मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी की। आज वह अपने बचपन के सपने को साकार करने में जुटी हैं। राजगढ़ ब्लाक की वंदना सिंह भी ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रही हैं।

चार पहले आरंभ की ड्रैगन फ्रूट की खेती

ड्रैगन फ्रूट की खेती लगभग चार पहले आरंभ हुई थी। राजगढ़ और शक्तेशगढ़ चुनार इलाके के किसानों ने उद्यान अधिकारी मेवाराम की पहल पर इसकी खेती की आरंभ की। बताया कि एक बीघे की खेती में प्रति वर्ष लगभग तीन लाख रुपये का लाभ होता है। पहले वर्ष की खेती पर तीन लाख रुपये का लगभग खर्च आता है। लाभ लागत से कहीं अधिक होता है। कम मेहनत में ज्यादा लाभ को देखकर खेती करने के लिए प्रति वर्ष किसान बढ़ रहे हैं।

किसानों की आय हो रही दोगुनी

जिले के किसानों की आय दोगुनी करने के साथ ही इसका सेवन कई रोगों के लिए रामबाण है। ड्रैगन फ्रूट पोषण से भरपूर तथा एंटी एलर्जी सहित कई गुणों से युक्त है। बड़े शहरों में इसकी सबसे ज्यादा मांग होती है। जिला उद्यान अधिकारी मेवाराम ने बताया कि एक फल का वजन भी आधा किलों के आसपास या उससे ज्यादा होता है।

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