J Omprakash Death Anniversary: अपने नाती ऋतिक रोशन के लिए फिल्मकार जे ओमप्रकाश ने वसीयत में लिखी थी ये खास बात, अ अक्षर से फिल्म बनाने के लिए मशहूर थे फिल्मकार

  • प्रदीप सरदाना

  वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

‘आया सावन झूम के’,‘आन मिलो सजना’,‘आप की कसम’,‘अपनापन’,‘आशा’ और ‘आखिर क्यों’ जैसी कई सुपर हिट फिल्मों के फ़िल्मकार जे ओमप्रकाश इस बात के लिए मशहूर थे कि उनकी फिल्मों के नाम ‘अ’ अक्षर से शुरू होते थे। साथ ही इसलिए भी कि उनकी फिल्मों में मनोरंजन के साथ अच्छी कहानी, और कोई ना कोई संदेश भी होता था। फिर उनकी फिल्मों का संगीत तो ऐसा कि जिसे सुन मन झूम उठता है।

एक फ़िल्मकार के रूप में तो जे ओमप्रकाश का कद बड़ा रहा ही। एक ज़माना था जब उनके नाम की तूती बोलती थी। तब फिल्म इंडस्ट्री में सफलता का दूसरा नाम जे ओमप्रकाश था। उधर वह इस बात के लिए भी याद किए जाते हैं कि वह इंसान बहुत अच्छे थे।

जे ओमप्रकाश की एक पहचान यह भी है कि वह ऋतिक रोशन के नाना थे। यानि उनकी बेटी पिंकी, ऋतिक की मम्मी हैं और राकेश रोशन की पत्नी।  हालांकि राकेश रोशन उन्हें अपने ससुर से ज्यादा अपना पिता मानते थे।

उधर ऋतिक ने भी सबसे पहले 6 साल की उम्र में अपने नाना की फिल्म ‘आशा’ से ही फिल्मों में पदार्पण किया। बाद में भी ऋतिक ने अपने नाना संग बाल कलाकार के रूप में ‘आस पास’ और ‘भगवान दादा’ जैसी फिल्में भी कीं। सच कहा जाये तो वह ऋतिक रोशन ही नहीं ऋतिक के पिता राकेश रोशन के भी गुरु रहे।

 

जे ओमप्रकाश और ऋतिक यानि इन नाना और नाती के बीच बहुत ही खूबसूरत, मधुर और मजबूत रिश्ता था। ऋतिक नाना को प्यार से डेडा कहते थे यहाँ तक जे ओमप्रकाश अपनी वसीयत में भी यह लिख गए थे कि उनका अंतिम संस्कार ऋतिक ही करेगा। जब 7 अगस्त 2019 को जे ओमप्रकाश ने इस दुनिया को अलविदा कहा तो ऋतिक तो कई दिन गुमसुम से ही रहे।

एक स्पॉट बॉय के रूप में शुरू किया था करियर

स्वतन्त्रता पूर्व के अविभाजित भारत के सियालकोट में 24 जनवरी 1927 को जन्मे जे ओमप्रकाश के पिता लाहौर के एक स्कूल में शिक्षक थे। बाद में इनके पिता की पहचान देश के मशहूर शिक्षाविद के रूप में होने लगी। इसलिए जय  ओमप्रकाश को भी पढ़ने का शौक बचपन से था। वह पढ़ाई की किताबों के साथ सामान्य ज्ञान और साहित्यिक पुस्तकें भी बहुत चाव से पढ़ते थे।

देश आज़ाद होने के बाद ओमप्रकाश मुंबई आ गए। जहां इन्होंने फिल्म लाइन में कुछ करने की ठानी। इसके लिए ओमप्रकाश ने एक स्पॉट बॉय के रूप में काम शुरू किया। उधर जे ओमप्रकाश शुरू से अपने सबसे बड़े गुरु के रूप में अपने पिता को ही देखते थे। एक बार उन्होंने कहा था- “मैंने अपने पिता से सीखा था कि आपको खुद को हमेशा छात्र समझते हुए, हर काम में अपना ज्ञान बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। हमको यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि हमको सब कुछ आता है, बल्कि हर पल कुछ नया सीखने की ललक होनी चाहिए।“

‘आस का पंछी’ से बंधी आस

फिल्मी दुनिया में करीब 10 साल संघर्ष करके जब जे ओमप्रकाश को फिल्म विधा की समझ आ गयी तब सन 1960 में उन्हौने खुद निर्माता बन कर अपनी फिल्म बनाने का फैसला किया। फिल्म का नाम रखा गया ‘आस का पंछी’। जिसे मशहूर लेखक राजेन्द्र सिंह बेदी ने लिखा था। फिल्म में उस समय के उभरते नायक राजेंद्र कुमार को हीरो लिया और वैजयंती माला को हीरोइन।

‘आस का पंछी’ का निर्माण तो जे ओमप्रकाश ने किया। लेकिन इसके निर्देशन के लिए उन्हौने पहला मौका दिया मोहन कुमार को। जब एक जनवरी 1961 को यह फिल्म प्रदर्शित हुयी तो यह हिट साबित हुई। ‘आस का पंछी’ के सफल होने से ओमप्रकाश को भी आस बंधी कि वह अब फिल्म आकाश में अच्छे से उड़ान भर सकते हैं।

हालांकि अपनी दूसरी फिल्म ‘आई मिलन की बेला’ को बनाने और उसे प्रदर्शित करने में उन्हें तीन साल लग गए। हीरो इस बार भी राजेन्द्र कुमार थे लेकिन फिल्म की नायिका थी सायरा बानो और उनके साथ शशि कला भी थीं। उधर फिल्म में धर्मेंद्र भी थे। यहाँ यह भी दिलचस्प है कि धर्मेन्द्र के करियर की यह एक ऐसी फिल्म है जिसमें वह नेगेटिव रोल में थे। जबकि फिल्म का निर्देशन इस बार भी मोहन कुमार को सौंपा गया। यह फिल्म भी सुपर हिट साबित हुई तो इसके बाद जे ओमप्रकाश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

ऐसे हुई ‘अ’ अक्षर से फिल्म बनाने की शुरुआत  

अपनी पहली दोनों फिल्में ‘आस का पंछी’ और ‘आई मिलन की बेला’ की सफलता के बाद ओमप्रकाश को लगा कि ‘अ’ अक्षर उनके लिए लकी है। तो तब से उन्हौने ‘अ’ को पूरी तरह अपना लिया।

इसके बाद ओमजी ने जो भी फिल्में बनायीं मसलन ‘आए दिन बहार के’, ‘आया सावन झूम के’,‘आन मिलो सजना’, ‘आँखों आँखों में’, ‘आप की कसम’, ‘’आक्रमण’, ‘अपनापन’, ‘आशिक हूँ बहारों का’,’आशा’,’आस पास’, ‘अपना बना लो’, ‘अर्पण’, ‘आखिर क्यों’, ‘आप के साथ’ और ‘आदमी खिलौना है’ आदि सभी ‘ए’ अक्षर से रहीं।

 

‘आप की कसम’ से संभाली निर्देशन की भी कमान

राकेश रोशन और राखी को लेकर ‘आँखों आँखों में’ के नाम से एक और हिट बनाने के बाद जे ओमजी ने जब अपनी अगली फिल्म ‘आप की कसम’ शुरू की तो इस फिल्म के निर्देशन की बागडोर भी उन्होंने खुद ही संभाल ली। हालांकि तब कुछ लोगों को लगता था कि ओमजी एक सफल निर्माता जरूर हैं लेकिन वह निर्देशक के रूप में भी सफल होंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता।

राजेश खन्ना, मुमताज़ और संजीव कुमार इस फिल्म का बड़ा आकर्षण थे ही। साथ ही इस बार फिल्म के संगीत के लिए उन्हौने आर डी बर्मन को चुना। सन 1974 में जब ‘आप की कसम’ प्रदर्शित हुई तो फिल्म ने सफलता के कई पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये। जे ओमप्रकाश फिल्में तो सन 2001 तक बनाते रहे। लेकिन सही अर्थों में 1985 में प्रदर्शित उनकी ‘आखिर क्यों’ की अपार सफलता के बाद भी उनकी कोई और फिल्म चली नहीं।

सभी फिल्मों का संगीत लोकप्रिय हुआ

ओमप्रकाश की फिल्मों को ध्यान से देखें तो उनकी पहली फिल्म ‘आस का पंछी’ से लेकर उनकी अंतिम हिट फिल्म ‘आखिर क्यों’ तक, सभी फिल्मों का गीत-संगीत काफी लोकप्रिय रहा। असल में ओमजी को कविता और संगीत दोनों की बहुत अच्छी समझ थी। वह दर्शकों की नब्ज़ अच्छे से पहचानते थे। और अपनी फिल्मों के संगीत पर भी वह बड़ा फोकस रखते थे।

उनकी फिल्म ‘आशा’ का शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है और ‘आन मिलो सजना’ का अच्छा तो हम चलते हैं, ‘आए दिन बहार के’ का मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे, ‘आया सावन झूम के’ शीर्षक गीत के साथ साथिया नहीं जाना की बात हो या फिर ‘आखिर क्यों’ के गीत दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है, तथा ‘आपकी कसम’ के गीत कुछ हुआ क्या और कड़वटें बदलते रहे सारी रात हम की, सभी ने जो लोकप्रियता पाई है वह किसी से छिपी नहीं है। आज भी ये गीत कानों में रस घोल कर मन और मस्तिक तक पहुँचने का दम खम रखते हैं।

 

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