बात किताबों की: भारतीय संविधान की अनकही कहानियाँ
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- प्रदीप सरदाना
भारतीय संविधान, संविधान के निर्माण और संविधान को लेकर विभिन्न प्रसंगों पर यूं तो कई पुस्तकें हैं। लेकिन हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय संविधान’ देश के संविधान, संविधान के निर्माण और इससे जुड़े वाद विवादों की कई अनकही कहानियाँ बताती है।
इस पुस्तक में इसका सार संक्षेप कुछ यूं दिया है-‘’यह पुस्तक भारतीय संविधान के ऐतिहासिक सच,तथ्य,कथ्य और यथार्थ की कौतूहलता का सजीव चित्रण करती है। संविधान की कल्पना, अवधारणा और उसका उलझा इतिहास इसमें समाहित है।‘’
पुस्तक में प्रस्तुत हमारे संविधान को लेकर अनकही कहानियाँ इसलिए और भी विश्वसनीय हो जाती हैं क्योंकि इसके लेखक बेहद अनुभवी, वयोवृद्ध पत्रकार रामबहादुर राय हैं। राय साहब को 40 साल से भी अधिक वर्षों का पत्रकारिता का गहन अनुभव तो है ही। अपनी इस यात्रा में आमजन से विशिष्ट जन से मिलते हुए उन्होंने संविधान की बारीकियों,खामियों और अच्छाइयों को भी करीब से देखा समझा है। साथ ही वह देश के कई आंदोलनों और संगठनों से भी अपने छात्र जीवन से जुड़े रहे हैं।
इस पुस्तक की रचना में उनके जीवन की वह घटना भी अहम बनी, जब 1974 में पटना में मीसा के अधिकारों का दुरुपयोग करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सात महीने के जेलबंदी के कटु अनुभवों से संवैधानिकता का पहला पाठ भी राय साहब तब सीखा,जब उच्चतम न्यायालय ने इनकी गिरफ्तारी को असंवैधानिक करार दिया।
फिर यह पुस्तक इसलिए भी प्रामाणिक हो जाती है क्योंकि इसके लिए लेखक ने 67 हिन्दी संबन्धित पुस्तकों के साथ 62 अँग्रेजी पुस्तकों का अध्ययन भी किया। बहुत से लोगों से व्यक्तिगत मुलाक़ात कर उनका सहयोग भी लिया।
करीब 500 पृष्ठ की इस पुस्तक में 51 अध्याय हैं। जिसमें ‘संविधान सभा का पहला दिन’,‘डॉ आंबेडकर की मार्मिक अपील, संविधानवाद की भूल-भुलैया, भारत विभाजन की नींव,अपने दर्पण में नेहरू, विश्वयुद्द का हस्तक्षेप, मुसलिम लीग की पैंतरेबाजी, जैसे अध्याय हैं। तो कैसे बची संविधान सभा, सत्ता के लिए भारत विभाजन, संविधान के मौलिक दोष, जनता का संविधान, देश की बहस, ‘संविधान के प्रधान निर्माता’ बेनेगल नरसिंह राव, सरदार पटेल में गांधी दिखे और ‘राजद्रोह’ की वापसी अध्याय भी। इन अध्याय के नामों से भी इस पुस्तक की सामग्री और इसके व्यापक पहलुओं का अनुमान लगाया जा सकता है।
पुस्तक में ऐसे कई अहम प्रसंग हैं जो उस दौर में सुर्खियों में रहे या कुछ वे प्रसंग भी जो सिर्फ दबे स्वरों में उठते रहे या फिर सामने ही नहीं आए। आज की पीढ़ी उस सबसे अंजान है। पुस्तक में पंडित नेहरू और सरदार पटेल के कई ऐसे प्रसंग भी हैं जो बेहद अहम हैं। जैसे हम यह तो जानते हैं कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे। जो संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे। लेकिन पंडित नेहरू उन्हें राष्ट्रपति नहीं बनवाना चाहते थे। वह उनकी जगह देश के गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनवाने के पक्ष में थे।
राष्ट्रपति कौन हो इसको लेकर प्रसिद्द स्वतन्त्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य महावीर त्यागी तथा वी शंकर की पुस्तकों के हवाले से भी पुस्तक में कई प्रसंग हैं। जिनमें साफ है कि पंडित नेहरू ने राजेन्द्र प्रसाद की जगह राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनवाने के लिए कितने ही ज़ोर लगाए। नेहरू ने राजेन्द्र बाबू पर दबाव बनवाकर उनसे यह तक लिखवा लिया कि राजगोपालाचारी के राष्ट्रपति चुने जाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है और मैं इसका उम्मीदवार नहीं हूँ।
लेकिन जब इस पर भी कांग्रेस के कई दिग्गज नेता राजेन्द्र बाबू के पक्ष में खड़े रहे तो नेहरू ने यह धमकी तक दे दी-‘’यदि राजगोपालाचारी को आप स्वीकार नहीं करते तो आपको अपनी पार्टी का नेता भी नया चुनना पड़ेगा।‘’ लेकिन सरदार पटेल ने सभी लोगों के भावनाओं का ध्यान रखते हुए नेहरू को विवश कर दिया कि देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ही बनें। नेहरू के लाख ना चाहने के बाद भी राजेन्द्र बाबू देश के प्रथम राष्ट्रपति बन गए।
पुस्तक- भारतीय संविधान- अनकही कहानी , लेखक –रामबहादुर राय, प्रकाशक -प्रभात प्रकाशन, दिल्ली। मूल्य- 700 रुपए।