Happy 100th Birthday Shailendra: शैलेंद्र का आज 100 वां जन्मदिन, बरसों बाद आज भी हैं बेमिसाल, आकाशवाणी भवन दिल्ली में होगा विशेष समारोह

  • प्रदीप सरदाना

  वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

तू ज़िंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर। अगर कहीं स्वर्ग है तो उतार ला ज़मीन पर। रात और दिन दिया जले मेरे मन में फिर भी अँधियारा है। रात के हम सफर थक के घर को चले। किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, ज़ीना इसी का नाम है।

ये सभी लोकप्रिय गीत यूं तो हिन्दी फिल्मों के अमर गीत हैं। लेकिन इन गीतों के शब्द दुनिया भर के लोगों के सपनों, प्रेम, दर्द और संघर्ष को दर्शाने के साथ उन्हें कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित भी करते हैं। इन और इन जैसे कितने ही खूबसूरत गीत लिखने वाले शैलेंद्र का आज जन्म दिन है। आज यदि वह होते तो 100 बरस के होते। लेकिन सिनेमा के सबसे बेहतर गीतकार माने जाने वाले शैलेंद्र ने 14 दिसंबर 1966 को सिर्फ 43 बरस की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। हालांकि अपने निधन के 57 बरस बाद भी शैलेंद्र अपने गीतों के माध्यम से अमर हैं।

रावलपिंडी में हुआ था जन्म, नाम था शंकर दास

30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में जन्मे शैलेंद्र का असली नाम शंकर दास केसरीलाल था। जब इनके पिता फौज से रिटायर हुए तो ये मथुरा आ गए। मथुरा की धौली प्याऊ गली और रेलवे स्टेशन के किनारे बैठकर इनके कवि मन ने उड़ान भरी। संयोग से रेलवे में नौकरी मिलने पर इन्हें मुंबई जाना पड़ा। जहां राज कपूर ने इनकी प्रतिभा को पहचाना। सन 1949 में जब कपूर ‘बरसात’ बना रहे थे तो उसके दो गीत शैलेंद्र ने लिखे। उसके बाद शैलेंद्र, कपूर के साथ अपनी अंतिम सांस तक जुड़े रहे।

शैलेंद्र ने यूं बिमल रॉय और देव आनंद जैसे फ़िल्मकारों की फिल्मों के लिए भी गीत लिखे। लेकिन राज कपूर की फिल्मों से संगीतकार शंकर जयकिशन और गायक मुकेश के साथ शैलेंद्र के गीतों को जो पंख लगे वे बेमिसाल हैं। शैलेंद्र के गीतों के बोल इतने सहज हैं कि वे सीधे दिलों में घर कर जाते हैं। जबकि उनके गीतों की दार्शनिकता उन्हें सबसे महान बनाती है।

शैलेंद्र ने अपने सिर्फ 17 बरस के फिल्म करियर में 176 फिल्मों में 800 अविस्मरणीय गीत लिखे। ‘बरसात में हमसे मिले तुम’ गीत से शैलेंद्र ने फिल्मों में शीर्षक गीत की बड़ी शुरुआत की। साथ ही ‘आवारा हूँ’ से अपने गीत को दुनिया भर में पहुंचाने की पहल भी ।

शैलेंद्र को ये मेरा दीवानापन है, सब कुछ सीखा हमने और मैं गाउँ तुम सो जाओ जैसे गीतों के लिए तीन फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले।

यूं- प्यार हुआ इकरार हुआ, मेरा जूता है जापानी, तू प्यार का सागर है, आज फिर जीने की तमन्ना है, जिस देश में गंगा बहती है, सजन रे झूठ मत बोलो, पान खाये सइयाँ हमार, आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे और जीना यहाँ मरना यहाँ जैसे अनेक गीत लिखकर शैलेंद्र ने सिने संगीत को अनुपम विरासत सौंपी है। राज कपूर तो शैलेंद्र की तुलना रूस के महान कवि पुश्किन से करते थे।

शैलेंद्र का गीतकार के रूप में फिल्मों में जो योगदान है वह बेमिसाल है ही। लेकिन ‘तीसरी कसम’ जैसी फिल्म बनाकर भी भारतीय सिनेमा को उन्होंने एक ऐसा उपहार दिया, जिसकी स्मृति बरसों बरसों रहेगी। हालांकि फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की कृति ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित, इस फिल्म का निर्माण शैलेंद्र के लिए घातक सिद्द हुआ। फिल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान जैसे सितारे तथा शंकर जयकिशन का खूबसूरत संगीत होने के बावजूद ‘तीसरी कसम’ बुरी तरह असफल हो गयी। फिल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया था। फिल्म के गीत हसरत जयपुरी के साथ स्वयं शैलेंद्र ने लिखे थे। जबकि फिल्म की पटकथा नबेन्दु घोष जैसे गुणवान व्यक्ति ने लिखी थी।

हालांकि जब 1966 में ‘तीसरी कसम’ प्रदर्शित हुई तो दर्शकों ने फिल्म में कोई उत्साह नहीं दिखाया। दिल्ली सहित देश के कुछ सिनेमाघरों में तो इसे तीन दिन बाद ही थिएटर से हटा दिया गया। यह असफलता शैलेंद्र सहन नहीं कर सके और 1966 में ही, उस दिन उनका निधन हो गया जो उनके सबसे घनिष्ठ फ़िल्मकार मित्र राज कपूर की जन्म तिथि थी। इसके चलते वह राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का सदाबहार गीत ‘जीना यहाँ मरना यहाँ’ पूरा नहीं लिख सके। शैलेंद्र के निधन के बाद उनके पुत्र शैली शैलेंद्र ने इसे पूरा किया।

शैलेंद्र के निधन के अगले बरस ‘तीसरी कसम’ को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। बाद में तो यह फिल्म धीरे धीरे सिनेमा के देश विदेश के गंभीर दर्शकों की इतनी पसंदीदा बनती चली गयी कि अब ‘तीसरी कसम’ की गिनती भारतीय सिनेमा के कालजयी फिल्मों में होती है।

उधर शैलेंद्र मथुरा के धौली प्याऊ के जिस क्षेत्र में 1930 से 1946 तक रहे, 2016 में उस क्षेत्र की सड़क का नाम ‘गीतकार जनकवि शैलेंद्र मार्ग’ रखकर मथुरा प्रशासन ने उन्हें विशेष सम्मान दिया।

साथ ही दो वर्ष पहले मुंबई में जहां शैलेंद्र रहते थे उस क्षेत्र के एक चौक का नाम भी उनकी स्मृति में ‘कविराज शैलेंद्र चौक’ रख दिया गया है।

दिल्ली में शैलेंद्र की जयंती पर विशेष कार्यक्रम  

इधर अब शैलेंद्र की 100 वीं जयंती के मौके पर आकाशवाणी भवन, नयी दिल्ली  में, 2 सितंबर को भी एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। शैलेंद्र मेमोरियल ट्रस्ट रुड़की द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की परिकल्पना और रूपरेखा इंद्रजीत सिंह की है।

इस कार्यक्रम में जहां शैलेंद्र जी की पुत्री अमला शैलेंद्र मजूमदार और पुत्र मनोज शैलेंद्र तथा दिनेश शैलेंद्र मौजूद रहेंगे। वहाँ असगर वजाहत, प्रो प्रह्लाद अग्रवाल, माधव कौशिक, अशोक चक्रधर, नरेश सक्सेना, इरशाद कामिल, डॉ बुद्धिनाथ मिश्रा, डॉ वाई एन शर्मा ‘अरुण’, डॉ नवाज़ देवबंदी, आर के सिंह, नरेश राजवंशी, तजेन्द्र सिंह लूथरा, युनूस खान, रोहित जैन, डॉ एस के कौशिक और पूरन पंकज सहित और भी कुछ गणमान्य व्यक्ति इस समारोह में शामिल हो रहे हैं।

कार्यक्रम के तीन आकर्षण और हैं। एक समारोह में जाने माने गीतकार जावेद अख्तर को ‘शैलेंद्र सम्मान’ से सम्मानित किया जाएगा। साथ ही नवीन आनंद, सुप्रिया जोशी और पीयूष निगम समारोह में शैलेंद्र के कुछ गीतों का गायन भी करेंगे।

इस सबके साथ इस बेहद खास अवसर पर इंद्रजीत सिंह की लिखी और साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय साहित्य के निर्माता शैलेंद्र’ का लोकापर्ण भी किया जाएगा।

 

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