Gitanjali Aiyar: याद आती रहेंगी गीतांजलि अय्यर, जानिए क्यों है खास यह न्यूज रीडर और कैसा था उनका दौर

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

दूरदर्शन (Doordarshan) की बरसों न्यूज़ रीडर रही गीतांजलि अय्यर (Gitanjali Aiyar) के निधन से,टीवी न्यूज़ के स्वर्ण युग का एक स्तम्भ ढह गया है। करीब 30 बरसों तक दूरदर्शन पर न्यूज़ पढ़ते हुए गीतांजलि दूरदर्शन का चेहरा, दूरदर्शन का ब्रांड बन गयी थीं। मैं उन्हें करीब 40 साल से जानता था। यकायक उनके निधन का समाचार सुना तो अवाक सा रह गया। पल भर के लिए ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गयी, अरे यह क्या हुआ।

हालांकि पिछले कई बरसों से उनसे कोई संपर्क नहीं था। असल में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे आप बहुत ज्यादा न भी मिले हो तब भी उनसे एक आत्मीय रिश्ता बन जाता है। गीतांजलि से जब पहली बार 1982 के दिनों में मुलाक़ात हुई तो उनके व्यवहार और योग्यता दोनों ने मुझे प्रभावित किया। उन दिनों दूरदर्शन के कार्यक्रमों और समाचार का प्रसारण संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी भवन से ही होता था। मैं भी पहले रेडियो और फिर टीवी कार्यक्रमों के सिलसिले में अक्सर आकाशवाणी भवन जाता तो गीतांजलि से भी कभी कभार मुलाक़ात हो जाती थी।

सन 1983 में मैंने एक फिल्म पत्रिका में ‘चर्चित चेहरे दूरदर्शन के’ नाम से साप्ताहिक स्तम्भ शुरू किया। किसी भी फिल्म पत्रिका में टीवी को लेकर यह पहला स्तम्भ था। उन दिनों दूरदर्शन (Doordarshan) का एक ही चैनल था। दूरदर्शन पर समाचारों के अलावा कृषि दर्शन,चित्रहार,रविवार की फिल्म और साहित्य, नाटकों और नृत्य संगीत के कुछ ही कार्यक्रम हुआ करते थे। क्योंकि समाचार रोज आते थे इसलिए टीवी न्यूज़ रीडर दर्शकों में सर्वाधिक लोकप्रिय थे। या फिर दूरदर्शन पर उद्घोषणा करने वाली एंकर्स को लोग पसंद करते थे। दूरदर्शन पर 1984 में सीरियल युग शुरू होने पर तो कई अभिनेता-अभिनेत्री भी मेरे स्तम्भ का हिस्सा बनने लगे। लेकिन उससे पहले मैं प्रति सप्ताह किसी लोकप्रिय न्यूज़ रीडर का इंटरव्यू अपने स्तम्भ में देता था।

तभी एक दिन मैं गीतांजलि का इंटरव्यू करने उनके घर पहुँच गया। वह नयी दिल्ली के निज़ामुद्दीन एस्टेट में रहती थीं। शाम के समय उनके घर पहुंचा तो उनके पिता केजी अम्बेगांवकर भी घर में मौजूद थे। हालांकि तब वह अस्वस्थ थे और ज्यादा बातचीत करने में असमर्थ थे। यहाँ बता दें कि उनके पिता रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर भी रहे और भारत सरकार के वित्त सचिव भी।

गीतांजलि का जन्म 27 जनवरी 1947 को दिल्ली में हुआ था। लेकिन इनके पिता आईसीएस अधिकारी थे, इसलिए ये कभी दिल्ली, कभी मुंबई और कभी कोलकाता रहे। इसलिए गीतांजलि की पढ़ाई भी अलग अलग शहरों में होती रही। कोलकाता के लोरेटो कॉलेज से ही गीतांजलि ने अँग्रेजी में बीए ऑनर्स किया। उसके बाद 1966 में ये फिर दिल्ली आ गए। गीतांजलि ने मुझे अपने इंटरव्यू में तब बताया था- मुझे लगा मेरे जो सपने हैं वे दिल्ली में अच्छे से पूरे हो सकते हैं। फिर हुआ भी यही। मुझे पहले दिल्ली में आकाशवाणी में नौकरी मिल गयी। साथ ही मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से 6 महीने का ड्रामा कोर्स भी कर लिया।‘’

इसके बाद गीतांजलि ने रंगमंच में काफी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। इससे उन दिनों गीतांजलि की शामें मंडी हाउस में नाटक या नाटक की रिहर्सल करते हुए गुजरती थीं। सन 1970 तक तो गीतांजलि ने कई नाटक किए। जिनमें ‘येरमा’, ‘लुक बैक इन एंगर’ जैसे इनके कुछ नाटक अच्छे खासे चर्चित हुए। उधर इसी दौरान रेडियो पर इनका एक शो ‘डेट विद यू’ भी काफी लोकप्रिय हुआ। जिसे यह 7 साल तक करती रहीं। लेकिन 1970 में शादी और फिर 1971 में दूरदर्शन से जुड़ने के बाद पहले नाटक और फिर रेडियो पीछे रह गया।

सन 1971 में जब दूरदर्शन (Doordarshan) पर गीतांजलि ने अँग्रेजी में समाचार पढ़ने शुरू किए तब हिन्दी में प्रतिमा पुरी मशहूर थीं। उसके बाद अँग्रेजी में गीतांजलि ने धीरे धीरे अपनी एक ऐसी जगह बना ली कि वह न्यूज़ रीडर की बदौलत ही टीवी स्टार बन गईं। हालांकि जब गीतांजलि ने दूरदर्शन पर समाचार पढ़ना शुरू किया,उस समय शाम को अँग्रेजी का एक ही न्यूज़ बुलेटिन आता था। उस दौर में आज की तरह टेली प्रोम्पटर भी नहीं होता था कि कैमरे में ही समाचार की पंक्तियाँ दिखाई देती रहें। इस न्यूज़ बुलेटिन से भी नीथि रविन्द्रन,कोमल जीबी सिंह,मीनू तलवार,प्रणव रॉय,सुनीत टंडन जैसे अन्य सशक्त न्यूज़ रीडर्स भी जुड़ते चले गए। उधर न्यूज़ रीडर रामू दामोदरन तो काफी लोकप्रिय हो गए। क्योंकि उन्हें लंबे लंबे समाचारों की पंक्तियाँ इतनी कंठस्थ हो जाती थीं कि वह स्क्रिप्ट की ओर देखे बिना पढ़ते रहते थे।

इस सबके बावजूद गीतांजलि अय्यर (Gitanjali Aiyar) की लोकप्रियता लगातार बरकरार रही। असल में गीतांजलि का उच्चारण तो सटीक था ही लेकिन उनकी बड़ी विशेषता थी उनके चेहरे पर कूट कूट कर भरा आत्मविश्वास। उनकी तेज चमकती आँखों के साथ उनके चेहरे का आत्मविश्वास जताता था कि वह जो भी समाचार पढ़ रही हैं वह शत प्रतिशत सत्य है। उनकी शानदार आवाज़ उनके इस व्यक्तित्व पर सोने पर सुहागा थी। `

बड़ी बात यह भी थी कि वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। वह पहले जहां रेडियो और थिएटर करती रहीं। वहाँ बाद में गीतांजलि ने होटल ताज समूह में  एग्जीक्यूटिव सेल्स और मार्केटिंग की नौकरी कर ली। उन दिनों जब मैं दिल्ली के होटल ताज मानसिंह में जाता था तब भी वहाँ उनसे अक्सर मुलाक़ात हो जाती थी। उधर 1986-87 के दौर में गीतांजलि ने दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक ‘खानदान’ में भी एक किरदार निभाया। फिर गीतांजलि की लोकप्रियता और योग्यता को देख उन्हें तब कई विज्ञापन भी मिलने लगे।

दूरदर्शन पर गीतांजलि ने 30 साल तक समाचार पढे। उधर वह ताज होटल के बाद ओबेरॉय होटल सहित भारतीय उद्योग संघ में भी नौकरी करती रहीं और ब्रिटिश उच्चायोग में भी। देखा जाए तो उन्होंने अपनी ज़िंदगी को भरपूर जिया और अपने ढंग से अपनी शर्तों पर जिया। साथ ही नौकरी,विज्ञापन,सीरियल  रेडियो और दूरदर्शन की अपनी व्यस्तताओं के बावजूद कभी परिवार की अनदेखी नहीं की। उनके दो बच्चे हैं। बेटी पल्लवी अय्यर और बेटा शेखर अय्यर। बेटी तो पत्रकारिता में ही है।

मैंने उनसे एक बार पूछा था कि अब आप नाटक क्यों नहीं करतीं आपको तो नाटकों से बहुत लगाव था ? इस पर उनका जवाब था- लगाव तो अभी भी है। लेकिन दिन भर की नौकरी और शाम को न्यूज़ रीडर का काम ही इतना है कि यदि कुछ और किया तो घर परिवार के लिए समय ही नहीं मिलेगा। इसके लिए मैं अपने बच्चों को अनदेखा नहीं कर सकती। मैं टीवी पर समाचार पढ़ते हुए अपने नाटकों के शौक को भी पूरा कर लेती हूँ। वहाँ संवाद बोलने होते हैं यहाँ समाचार। इसी से अपने मन को संतुष्ट कर लेती हूँ। फिर टीवी समाचार पढ़ते हुए हमारा सामान्य ज्ञान भी बढ़ता है और हम टीवी स्टूडियो में बैठे बैठे सभी के घरों में पहुँच जाते हैं। इसके बाद जो लोगों का सम्मान मिलता है उसका तो कोई मुक़ाबला नहीं।

गीतांजलि को बेस्ट न्यूज़ रीडर के लिए कुछ पुरस्कार भी मिले। नवंबर 1987 में तो हमने ही उन्हें अपनी लेखकों,पत्रकारों और कलाकारों की संस्था ‘आधारशिला’ (Aadharshila) से उन्हें पुरस्कृत किया था। तब हमारे उस समारोह के मुख्य अतिथि तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा (Dr.Shankar Dayal Sharma) थे। उन्होंने भी तब गीतांजलि के काम की प्रशंसा की तो वह बहुत खुश हो गयी थीं।

अपनी ज़िंदगी की एक और यादगार घटना पर गीतांजलि ने मुझे बताया था कि फरवरी 1984 की बात है एक रैली थी। वहाँ तत्कालीन पीएम इन्दिरा गांधी (Indira Gandhi) से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने मुझे देखते ही कहा –आपका चेहरा तो जाना पहचाना है। यह सुन मुझे लगा मैं आकाश में उड़ रही हूँ।‘’ अब गीतांजलि चाहे सच में आकाश में विलीन हो गयी हैं। लेकिन वह याद आती रहेंगी, बहुत याद आती रहेंगी।

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