22 तथा 23 अक्तूबर, दोनों दिन मनाएं धनतेरस

धनतेरस की पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है

नई दिल्ली। धनतेरस का पर्व दीवाली के आगमन की सूचना देता है। सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग इस पर्व के महत्व को बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही धनतेरस प्रदोष व्रत और हनुमान जयंती का संयोग भी एक साथ पड़ रहा है। ऐसा संयोग करीब 27 वर्षों के बाद हो रहा है। दूसरी खास बात यह है पिछले काफी समय से वक्री चल रहे शनि देव 23 अक्तूबर को मार्गी होंगे। इस साल धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बना हुआ है. इस योग में आप जो भी कार्य करेंगे, उसका तीन गुना फल आपको प्राप्त होगा।

पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 02 मिनट से शुरू हो रही है। अगले दिन 23 अक्टूबर 2022 को त्रयोदशी तिथि का समापन शाम 06 बजकर 03 मिनट पर होगा।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धनतेरस की पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है और त्रयोदशी तिथि 23 अक्टूबर को प्रदोष काल शुरू होने पर ही समाप्त हो रही है. ऐसे में धनतेरस का पर्व 22 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा।

धनतेरस मुहूर्त

धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा के लिए 22 अक्टूबर 2022 को शाम 7 बजकर 10 से रात 08  बजकर 24 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है. इस दिन व्यापारी बही-खातों की पूजा कर कुबरे देव से धन में वृद्धि कामना करते हैं.

प्रदोष काल: शाम 5.52 – रात 8.24 (22 अक्टबर 2022)

वृषभ काल: शाम 7.10 – रात 09.06 (22 अक्टबर 2022)

धनतेरस 2022 शुभ योग

धनतेरस पर इस बार त्रिपुष्कर, इंद्र योग का संयोग बन रहा है जो धन वृद्धि के लिए बहुत शुभ माना  गया है।

त्रिपुष्कर योग – दोपहर 01.50 – शाम 06.02 (22 अक्टूबर 2022)

इंद्र योग – 22 अक्टूबर 2022, शाम 05.13 – 23 अक्टूबर 2022, शाम 04.07

अमृत सिद्धि योग – 23 अक्टूबर 2022, दोपहर 02.34 – 24 अक्टूबर 2022, शाम 06.30

सर्वार्थ सिद्धि योग – पूरे दिन

भगवान धन्वंतरी

धनतेरस होने से स्वास्थ्य के देवता भगवान धनवंतरी की पूजा भी करने का विधान है।  धनतेरस पर आरोग्य के देवता धन्वंतरी की पूजाअर्चना की जाए और दैनिक जीवन में संयमनियम आदि का पालन किया जाए। देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं,  उसी प्रकार भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं।  देवी लक्ष्मी हालाकिं की धन की देवी हैं, परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए। यही कारण है दीपावली के पहले, यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं।

भगवान धन्वंतरी का जन्म त्रयोदशी के दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के  दिन ही धन्वंतरी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। धन्वंतरी जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की  परम्परा है। कहींकहीं लोक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन  खरीद्दारी करने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है।

भगवान कुबेर को सफेद मिठाई का भोग लगाना चाहिए, जबकि धन्वंतरि को पीली मिठाई और पीली चीज प्रिय है। पूजा में फूल, फल, चावल, रोली-चंदन, धूप-दीप का उपयोग करना चाहिए। शाम को परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा होकर प्रार्थना करें। सबसे पहले विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हें स्नान कराने के बाद चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं। भगवान को लाल वस्त्र पहनाकर भगवान गणेश की मूर्ति  पर ताजे फूल चढ़ाएं।

कुबेर की पूजा

कुबेर देव को धन का अधिपति कहा जाता है। माना जाता है कि पूरे विधि-विधान से जो भी कुबेर देव की पूजा करता है उसके घर में कभी धन संपत्ति की कभी  कमी नहीं रहती है। कुबेर देव की पूजा सूर्य अस्त के बाद प्रदोष काल में करनी चाहिए।

लक्ष्मी की पूजा

सूर्य अस्त होने के बाद करीब दो से ढ़ाई घंटों का समय प्रदोष काल माना जाता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी की पूजा इसी समय में करनी चाहिए। अनुष्ठानों को शुरू करने से पहले नए कपड़े के टुकड़े के बीच में मुट्ठी भर अनाज रखा जाता है।

कपड़े को किसी चौकी या पाटे पर बिछाना चाहिए। आधा कलश पानी से भरें, जिसमें गंगाजल मिला लें।इसके साथ ही सुपारी, फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने और  अनाज भी इस पर रखें। कुछ लोग कलश में आम के पत्ते भी रखते हैं। इसके साथ ही इस मंत्र का जाप करें-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

इसके बाद एक प्लेट में लक्ष्मी जी की प्रतिमा का पंचामृत (दूध, दही, घी, मक्खन और  शहद का मिश्रण) से स्नान कराएं इसके बाद देवी चंदन लगाएं, इत्र, सिंदूर, हल्दी, गुलाल आदि अर्पित करें। परिवार के सदस्य अपने हाथ जोड़कर सफलता, समृद्धि, खुशी और  कल्याण की कामना करें।

धनतेरस के मौके पर क्या खरीदें

लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है।

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है, जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है और  वही सबसे धनवान है।

भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं, उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना की जाती है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।

4-शनि-गुरु की इस युति का व्यापार, उद्योग और कार्यक्षेत्र में अच्छा असर देखा जा सकता है. ऐसे में इंश्योरेंस, ऑटो, सीमेंट, ऑयल कंपनी, टेक्सटाइल और इलेक्ट्रानिक्स से जुड़े क्षेत्र में निवेश या खर्च करने से मुनाफा मिल सकता है. वहीं, बृहस्पति की कृपा से एजुकेशन और मेडिकल साइंस जैसे क्षेत्रों में भी लाभ दिखाई दे रहा है.

धनतेरस का महत्व

ऐसा माना जाता है कि इस दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ रहता है। शुभ मुहूर्त समय में पूजन करने के साथ सात धान्यों की पूजा की जाती है। सात धान्य गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है। सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है। इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्य के रूप में श्वेत मिष्ठान्न का प्रयोग किया जाता है। साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी का पूजन करने का विशेष महत्व है। धनतेरस पर स्थायी संपत्ति खरीदने से और स्वर्ण-चांदी व बर्तन खरीदने से मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है। साथ ही ऐसा माना जाता है इस दिन स्थायी संपत्ति खरीदने से 13 गुना वृद्धि होती है। इस दिन चांदी के बर्तनों का  खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि चांदी में चंद्रमा का वास होता है।

धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था। धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव हैं। यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बड़ी-बड़ी योजनाएं प्रारम्भ की जाती हैं। धनतेरस के दिन चांदी खरीदना शुभ रहता है।

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