बाल साहित्यकार पुरस्कार का अनुपम समारोह, सुधा मूर्ति, रक्षाबेन दवे, राधावल्लभ त्रिपाठी, किरण बादल, सूर्यनाथ सिंह, गुरमीत कड़िआलवी, एकनाथ आव्हाड सहित 21 को मिला यह प्रतिष्ठित सम्मान

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ लेखक, पत्रकार एवं समीक्षक

संस्थापक संपादक- PunarvasOnline.com

दिल्ली के त्रिवेणी सभागार की वह शाम साहित्य, कला और संस्कृति की दुनिया के बहुत से व्यक्तियों से सुशोभित थी। मौका था साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) का ‘बाल साहित्य पुरस्कार (Bal Sahitya Puraskar) समारोह’।

अकादेमी अध्यक्ष माधव कौशिक (Madhav Kaushik) ने समारोह में जहां वर्ष 2023 के लिए 21 भारतीय भाषाओं के बाल साहित्यकारों को सम्मानित किया। वहाँ उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा (Kumud Sharma) ने सभी विजेताओं का पुष्पों से स्वागत करने के साथ, तकनीकी युग में बाल साहित्यकारों के सम्मुख चुनौतियों की भी बात रखी। जबकि अकादेमी सचिव के श्रीनिवास राव (K. Sreenivasarao) ने कहा बाल साहित्य हमारी सभ्यता का मुख्य आधार होने के साथ बच्चों को सजग नागरिक बनाने में भी अहम रहा है।

साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) प्रति वर्ष 24 भारतीय भाषाओं के बाल साहित्यकारों को अपने प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित करती है। इस वर्ष कश्मीरी बाल साहित्य से किसी का चयन न होने के कारण, कुल 23 बाल साहित्यकारों को पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी। लेकिन बाङ्ला और सिंधी के लेखक श्यामलकांति दाश और ढोलन राही, अस्वस्थ होने के कारण समारोह में नहीं हो सके।

जबकि उर्दू के साहित्यकार मतीन अचलपुरी (Matin Achalpuri) का पुरस्कार उनके पुत्र यूसुफ़ द्वारा ग्रहण किया गया। क्योंकि अचलपुरी का गत वर्ष अक्तूबर में ही इंतकाल हो गया था। इसलिए अचलपुरी का पूरा परिवार एक ओर इस पुरस्कार मिलने से खुश था तो दूसरी ओर गमगीन भी। मतीन अचलपुरी को यह सम्मान उनके उर्दू कहानी संग्रह ‘ममता की डोर’ के लिए दिया गया है। ये कहानियाँ बच्चों के नैतिक, सामाजिक और पर्यावरण जैसे विषयों पर केन्द्रित हैं।

समारोह में 9 नवंबर को जिन बाल साहित्यकारों को सम्मानित किया गया उनमें हिन्दी के सूर्यनाथ सिंह, राजस्थानी की किरण बादल, अँग्रेजी की सुधा मूर्ति, मराठी के एकनाथ आव्हाड, गुजराती की रक्षाबेन प्रह्लादराव दवे, संस्कृत के राधावल्लभ त्रिपाठी,

पंजाबी के गुरमीत कड़िआलवी, मैथिली के अक्षय आनंद, कन्नड की विजयश्री हालाडि, कोंकणी के तुकाराम रामा शेट, नेपाली के मधुसूदन बिष्ट, मणिपुरी के दिलीप नाडमाथम थे।

साथ ही रथींद्रनाथ गोस्वामी (असमिया), प्रतिमा नंदी नार्जारी (बोडो), बलवान सिंह जमोड़िया (डोगरी), प्रिया ए.एस. (मलयालम्), दिलीप नाङ्माथम (मणिपुरी),  जुगल किशोर षडंगी (ओड़िआ), मानसिंह माझी (संताली), के. उदयशंकर (तमिल ) और  डी.के. चादुवुल बाबु (तेलुगु) को भी समारोह में सम्मानित किया गया।

सुधा मूर्ति और रक्षाबेन बनी बड़ा आकर्षण

समारोह में यूं सभी पुरस्कार विजेताओं की सादगी और मधुरता देखते ही बनती थी। लेकिन गुजराती बाल साहित्य विजेता, सर्वाधिक आयु की रक्षाबेन प्रह्लादराव दवे (Rakshaben Dave) और अँग्रेजी भाषा के लिए बाल साहित्य पुरस्कार (Bal Sahitya Puraskar) प्राप्त करने वाली लेखिका सुधा मूर्ति (Sudha Murty) सभी का बड़ा आकर्षण बनी रहीं।

रक्षाबेन (Rakshaben Dave) को यह पुरस्कार ‘हुं म्याउं तुं चूं चूं’ के लिए मिला है। जो कविताओं, कहानियों और शब्द खेलों का मनोरंजक संग्रह है। रक्षाबेन (Rakshaben Dave) कहती हैं-‘’बाल साहित्य बच्चों के साथ, बच्चों में हिल मिल कर ही लिखा जाना चाहिए। बच्चे मेरी जिन रचनाओं को पसंद नहीं करते या समझ नहीं पाते। उसे मैं रद्दी की टोकड़ी में डाल देती हूं।‘’ बता दें लगभग 78 वर्षीय रक्षा बेन की अब तक 82 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।

उधर सुधा मूर्ति (Sudha Murty) देर तक समारोह में नहीं रुक सकीं लेकिन जितनी देर भी समारोह में रही अपनी सादगी और बड़प्पन से उन्होंने सभी का दिल जीत लिया। अब तक 45 पुस्तकें लिख चुकीं 73 वर्षीय सुधा मूर्ति (Sudha Murty) कन्नड और अँग्रेजी साहित्य की तो प्रतिष्ठित लेखिका हैं हीं। साथ ही वह शिक्षिका,समाज सेवी,उद्यमी,अभियंता और दूरदर्शी नेता भी हैं। अपनी विशिष्ट उपलब्धियों के लिए भारत सरकार उन्हें पदमश्री और पदमभूषण से भी सम्मानित कर चुकी है। फिर उनकी एक व्यक्तिगत पहचान यह भी है कि वह इन्फोसिस फाउंडेशन (Infosys Foundation) की अध्यक्ष होने के साथ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (Rishi Sunak) की सास भी हैं।

सुधा मूर्ती (Sudha Murty) को यह सम्मान उनकी कृति ‘ग्रेंडपेरेंट्स बैग ऑफ स्टोरीज़’ के लिए मिला है। सुधा मूर्ति (Sudha Murty) कहती हैं-‘’हम यदि बच्चों को उपदेश देते हैं तो वह जल्द उससे उबने लगते हैं। लेकिन हम अपना वही संदेश किसी कहानी के माध्यम से बच्चों को दें तो वह उसे सहजता से समझते हैं और याद भी रखते हैं। मैंने स्वयं इस नीति को अपनाया और उसमें सफल भी रही।‘’

सभ्यता का मुख्य आधार है बाल साहित्य

कार्यक्रम में सभी पुरस्कार विजेताओं का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव (K. Sreenivasarao) ने कहा कि बाल साहित्य हमारी सभ्यता का मुख्य आधार रहा और हर समाज को इसकी ज़रूरत होती है। बच्चों को भावी सजग नागरिक बनाने के लिए बाल पुस्तकों की अहम भूमिका है। इसलिए हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक (Madhav Kaushik) ने कहा कि बाल साहित्य भविष्य के रचनाकार तैयार करता है। आने वाला दशक बाल साहित्य का ही होगा। हाल ही में फ्रेंकफर्ट पुस्तक मेले (Frankfurt Book Fair 2023) के अनुभवों को साझा करते हुए कौशिक (Madhav Kaushik) ने बताया कि वहाँ सबसे अधिक स्टॉल बाल साहित्य के थे और वे प्रकाशन पुस्तकों की सुंदर छपाई और विविधता में सबको आकर्षित कर रहे थे।

समारोह के मुख्य अतिथि हरीश त्रिवेदी (Harish Trivedi) ने कहा- ‘’बाल पुस्तकों की भूमिका अब अधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने जहां बच्चों को समझने के लिए बड़ों को भी बाल साहित्य पढ़ने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। वहाँ बच्चों के तीन गुण निर्दोषता, जिज्ञासा और कल्पनाशीलता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें उनके ये गुण जब तक संभव हो, बचा कर रखने चाहिएं।‘’

 तकनीकी युग में बाल साहित्य लिखना चुनौती

समारोह के अंत में कुमुद शर्मा (Kumud Sharma) का वक्तव्य काफी प्रभावशाली रहा। उन्होंने बाल साहित्यकारों की सराहना करते हुए कहा कि वे बच्चों की मासूमियत और रचनात्मकता के महत्व को समझते हुए बहुत कुछ काफी अच्छा लिख रहे हैं। कभी बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी से कहानियाँ सुनने के लिए शाम होने का इंतज़ार करते थे। लेकिन आज के तकनीकी युग में बच्चे मोबाइल जैसे उपकरणों को अपनी हथेलियों पर रख, स्वयं को बड़ी उड़ान भरने में सक्षम पाते हैं। ऐसे में बाल साहित्यकारों के लिए बाल साहित्य लिखना और भी चुनौती पूर्ण हो गया है।

कुमुद शर्मा (Kumud Sharma) ने हिंदी के महान लेखक अमृतलाल नागर (Amritlal Nagar) और रमाकांत (Ramakant) के बाल साहित्य की भी चर्चा की। किस तरह ‘मानस का हंस’ जैसी उत्कृष्ट रचना लिखने वाले नागर जी ने बाल साहित्य भी लिखा।

समारोह में राजस्थानी साहित्यकार किरण बादल, हिन्दी साहित्यकार सूर्यनाथ सिंह, पंजाबी साहित्यकार गुरमीत कड़िआलवी, मणिपुरी साहित्यकार दिलीप नाड्माथम और नेपाली साहित्यकार मधुसूदन बिष्ट से भी मुलाक़ात हुई।

पत्नी किरण से पहले पति मंगत बादल भी पा चुके हैं अकादेमी सम्मान

राजस्थान के श्रीगंगानगर की किरण बादल (Kiran Badal) राजस्थानी के साथ हिन्दी की भी जानी मानी लेखिका हैं। उन्हें यह पुरस्कार ‘टाबरां री दुनिया’ के लिए मिला है। जो एक ऐसा संस्मरण संग्रह है जिसमें बच्चों की मासूमियत और उनमें बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा का तो अनुपम वर्णन है ही। साथ ही यह भी कि बच्चों के लिए शिक्षा कितनी अहम, कितनी आवश्यक है।

दिलचस्प यह भी है कि किरण बादल के पति मंगत बादल (Mangat Badal) भी राजस्थानी के प्रसिद्द साहित्यकार हैं। बादल बताते हैं-‘’मेरे लिए यह अत्यंत सुखद क्षण है। आज किरण जी को यह पुरस्कार मिला है। जबकि पहले मुझे भी बाल साहित्य पुरस्कार के साथ 2010 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी मिल चुका है।‘’

हिन्दी भाषा में अपनी कृति ‘कौतुक ऐप’ के लिए पुरस्कार पाने वाले 56 वर्षीय सूर्यनाथ सिंह की लगभग 20 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘कौतुक ऐप’ (Kotuk App) अनुपम विज्ञान कृति है। जो मनोरंजक कथा तकनीक के माध्यम से विज्ञान के चमत्कारों की गाथा कहती है। वह कहते हैं-‘’हिन्दी में विज्ञान कथा का अपेक्षित विकास न होने के कारण विज्ञान कथा के स्थान पर विज्ञान फेंटेसी अधिक है।‘’

आज के आधुनिक तकनीक युग में सूर्यनाथ सिंह की ‘कौतुक ऐप’ जैसी पुस्तक बाल साहित्य के अंतर्गत आना निश्चय ही स्वागत योग्य कदम है। इस प्रकार की पुस्तकों से बच्चे तकनीक के साथ साथ बाल साहित्य से भी जुड़ सकेंगे और हमारे पौराणिक एवं ऐतिहासिक पात्रों से भी।

बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित पंजाबी कहानियाँ

उधर प्रतिष्ठित पंजाबी साहित्यकार गुरमीत कड़िआलवी (Gurmeet Karyalvi), जिनकी 22 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें यह सम्मान ‘साची दी कहानी’ के लिए मिला है। पंजाब के मोगा जिले के कड़िआल में जन्मे 55 वर्षीय गुरमीत की ‘साची दी कहानी’ एक कहानी संग्रह है। बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित ये कहानियाँ बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने और उन्हें नेक और जिम्मेदार इंसान बनने का संदेश देती हैं। गुरमीत कहते हैं-‘’साहित्य अकादेमी के मंच पर आज पंजाब और पंजाबी साहित्य का नेतृत्व करते हुए गर्व हो रहा है।‘’

बहुमुखी प्रतिभा के धनी दिलीप नाड्माथम, मणिपुरी के प्रसिद्द लेखक होने के साथ, नाटककार, फिल्म निर्देशक और टेनिस के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी हैं। ‘इबेम्मा अमासुंग नगाबेम्मा’ इनका वह बाल कहानी संग्रह है जिसके लिए उन्हें अकादेमी ने पुरस्कृत किया है।

ये कहानियाँ बच्चों को पारंपरिकता और आधुनिकता दोनों का महत्व समझाती हैं। जो बच्चों को एक ओर प्रकृति से जुड़े रहने की बात करती हैं तो दूसरी ओर आधुनिक तकनीकी उपकरण अपनाने के लिए भी प्रेरित करती हैं।

उधर अपने बाल एकांकी ‘नाटकहरु’ के लिए सम्मानित हुए मधुसूदन बिष्ट, नेपाली के ख्यात लेखक और नाटककार हैं। वह कहते हैं- ‘’बाल साहित्य बच्चों में अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम और रुचि जागृत करता है। इसलिए बच्चों को अपना साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करना भी हम लेखकों का कर्तव्य है और उन्हें बाल साहित्य सुलभ कराना भी।‘’ दार्जिलिंग में जन्मे 67 बरस के मधुसूदन की अब तक 12 कृतियाँ आ चुकी हैं। ‘नाटकहरु’ नेपाली में लिखित 6 एक पात्रीय नाटकों का संग्रह है। जिनमें मनोवैज्ञानिक ढंग से बाल और युवा मन के बुरे विचारों को दूर करने का अच्छा प्रयास किया गया है।

कुल मिलाकर यह एक अनुपम और सफल आयोजन रहा। जहां देश भर के बाल साहित्यकारों का एक मंच पर मिलन  तो सुखद था ही। वहाँ इन सभी साहित्यिक प्रतिभाओं की सादगी भी देखते ही बनती थी।

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