Happy Birthday Gulzar: गुलज़ार कभी एक गैराज में मोटर मेकेनिक थे, अब पिछले 61 बरसों से फिल्मों को कर रहे हैं गुलज़ार

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

कोई होता जिसको अपना कह लेते यारो, मुसाफिर हूँ यारो, तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, तुम आ गए हो नूर आ गया है, ए जिंदगी गले लगा ले, हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये, बीड़ी जलाइयके, कजरारे कजरारे और दिल तो बच्चा है जैसे कितने ही खूबसूरत गीतों के गीतकार और जाने माने फ़िल्मकार 18 अगस्त को 89 बरस के हो गए हैं।

फिल्मों के अलावा जब भी अच्छी और लोकप्रिय शायरी की बात आती है तो उसमें भी गुलज़ार (Gulzar) का नाम काफी ऊपर आता है। गुलज़ार आज फिल्म उद्योग की ऐसी हस्ती हैं जिनको सभी दिल से सम्मान देते हैं।

लेकिन कभी यही गुलज़ार (Gulzar) मुंबई की एक गैराज में मोटर मेकेनिक हुआ करते थे। गुलज़ार (Gulzar) ने फिल्मों को सजाने से पहले ऐसी कितनी ही कारों को अपने ब्रश और हुनर से सजाया, जो दुर्घटना में टूट फूट जाती थीं। गुलज़ार (Gulzar) उन कारों की डैंटिंग-पेंटिंग करके संवार देते थे।

18 अगस्त 1934 को पाकिस्तान के झेलम जिले में एक सिख परिवार में जन्मे गुलज़ार का असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है। लेकिन साहित्य और शायरी में उनकी दिलचस्पी देखते हुए उनके पिता ने उनका नाम गुलज़ार (Gulzar) रख दिया। जो पिछले करीब 61 बरसों से अपनी बहुमुखी प्रतिभा के माध्यम से फिल्मों को गुलज़ार किए हुए हैं।

गुलज़ार (Gulzar) के मोटर मेकेनिक के काम के दौरान ही उनकी मुलाक़ात उस दौर के कई बड़े साहित्यकारों और गीतकारों से होती रही। जाने माने गीतकार शैलेंद्र की एसडी बर्मन से किसी बात पर नाराजगी हो गयी तो उन्होंने ही गुलज़ार (Gulzar) को बर्मन दा से मिलकर उनके लिए गीत लिखने को कहा। तब गुलज़ार (Gulzar) ने ‘बंदिनी’ (1963) के लिए अपना पहला गीत लिखा –‘मेरा गोरा अंग ले ले’। गुलज़ार (Gulzar) की प्रतिभा देख फ़िल्मकारों ने उनसे गीत के साथ फिल्मों की पटकथा और संवाद भी लिखवाने लगे। लेकिन गुलज़ार (Gulzar) के सपनों का आसमां और भी बड़ा था। इसी के चलते वह फिल्म निर्माण और निर्देशन में आ गए।

गुलज़ार (Gulzar) के निर्देशन में पहली फिल्म 1971 में आई ‘मेरे अपने’। जिसमें मीना कुमारी, विनोद खन्ना, शत्रुघन सिन्हा और डैनी सरीखे कलाकार थे। यह फिल्म ऐसी सफल हुई कि इस सफलता के बाद गुलज़ार (Gulzar) ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। परिचय, कोशिश, आँधी, खुशबू, मीरा, मौसम, किनारा, लेकिन, इजाजत, माचिस और हु तू तू जैसी शानदार फिल्में गुलज़ार (Gulzar) ने देकर, भारतीय सिनेमा को एक नयी दिशा दी।

गुलज़ार (Gulzar) ने फिल्म अभिनेत्री राखी से विवाह किया। हालांकि उनका यह विवाह सफल नहीं हो सका। लेकिन इसके बावजूद दोनों ने तलाक नहीं लिया। ना ही दोनों ने कभी एक दूसरे पर कोई आरोप लगाए।

राखी (Rakhi) पिछले कुछ बरसों से मुंबई से कुछ दूर पनवेल के अपने फार्महाउस में रहती हैं। जबकि गुलज़ार मुंबई में। कितने ही खास मौकों पर ये दोनों अच्छे से मिलते हैं। इनकी बेटी मेघना इन दोनों की बीच एक मजबूत कड़ी है। जो सही मायने में दोनों के लिए खुशियों की दुनिया है। उधर मेघना अपनी ‘फिलहाल’ ‘तलवार’ ‘राजी’ और ‘छपाक’ जैसी फिल्मों के लिए मशहूर है।

गुलजार (Gulzar) की बहुमुखी प्रतिभा की मिसाल उनके पुरस्कारों से भी मिलती है। फिल्मों का शिखर पुरस्कार दादा साहब फाल्के तो उन्हें मिला ही। उनके अब तक के फिल्म करियर में, 5 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 22 फिल्मफेयर पुरस्कार उनकी झोली में आ चुके हैं। साथ ही साहित्य अकादमी पुरस्कार और पदमभूषण से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। फिर अपने गीत ‘जय हो’ के लिए तो वह ऑस्कर जीतकर दुनिया भर में मशहूर हो चुके हैं। गुलज़ार (Gulzar) अपनी प्रतिभा से सिनेमा और काव्य की दुनिया को ऐसे ही गुलज़ार करते रहें, यही कामना।

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