Devika Rani: देविका रानी चुम्बन दृश्यों से पुरस्कार पाने तक कई रिकॉर्ड बनाने वाली देश की पहली फिल्म अभिनेत्री, आज भी क्यों आती हैं याद

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

देविका रानी (Devika Rani) देश की एक ऐसी अभिनेत्री रही हैं कि जब भी भारतीय सिनेमा के इतिहास की बात चलेगी, उन्हें याद किया जाएगा। अपने करीब 10 बरस के फिल्म करियर में देविका (Devika Rani) ने जो इतिहास रचा वह अद्द्भुत है। भारत में फिल्म निर्माण का सिलसिला यूं तो मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ से 1913 में ही शुरू हो गया था। जबकि 1931 में फिल्म ‘आलमारा’ से सवाक फिल्मों की भी शुरुआत हो गयी थी।

लेकिन उस दौर में अच्छे घरों की महिलाओं का फिल्मों में काम करना काफी बुरा माना जाता था। इस कारण शुरू में हमारी फिल्मों में पुरुष ही महिलाओं की भूमिका करते थे या फिर वैश्याएं और उनके परिवार की अन्य महिलाएं। लेकिन देविका रानी (Devika Rani) ने उस पुरानी परंपरा को दरकिनार करते हुए बड़ी मजबूती के साथ फिल्मों में काम करके अन्य महिलाओं के लिए भी इस क्षेत्र में मार्ग खोल दिये।

यूं देविका (Devika Rani) से पहले दुर्गा खोटे (Durga Khote) जैसी सम्मानित महिला मराठी और हिन्दी फिल्मों में काम करके यह राह बना चुकी थीं। लेकिन भारतीय सिनेमा की प्रथम महिला होने का श्रेय देविका (Devika Rani) को मिलता है। असल में देविका (Devika Rani) एक बड़े और अमीर घराने की महिला तो थीं हीं। उनके पिता कर्नल एमएन चौधरी सेना में सर्जन जनरल थे। साथ ही गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की बहन देविका (Devika Rani) की दादी थीं। इसलिए देविका का गुरुदेव टैगोर से करीबी नाता था।

देश की पहली अँग्रेजी फिल्म में दिया 4 मिनट का चुंबन दृश्य

दूसरा देविका (Devika Rani) ने 1933 में जिस अँग्रेजी फिल्म ‘कर्मा’ (Karma) से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की, वह भारत में बनी पहली अँग्रेजी फिल्म थी। फिर इससे भी बड़ी बात यह थी कि ‘कर्मा’ में देविका (Devika Rani) ने 4 मिनट लंबा चुंबन दृश्य देकर अपनी बोल्डनेस से तहलका मचा दिया था। इसके लिए उनकी जमकर आलोचना भी हुई। यहाँ तक यह फिल्म प्रतिबंधित भी हो गयी। देविका (Devika Rani) के करियर में तब यह चुंबन चाहे एक काले दाग के रूप में देखा गया था। लेकिन उसके बाद देविका रानी (Devika Rani) ने सिनेमा के लिए जो किया उसी के चलते भारतीय सिनेमा आगे बढ़ सका।

हिमांशु राय से शादी कर किया फिल्मों का बड़ा सपना साकार

विशाखापट्नम में अब से 116 बरस पहले 30 मार्च 1908 को देविका (Devika Rani) का जन्म हुआ था। अपनी 9 वर्ष की आयु में ही वह इंग्लैंड पढ़ने चली गयी थीं। बाद में उनका शौक फिल्मों की ओर जागृत हुआ। लंदन में ही उन्होंने अभिनय के साथ आर्किटैक्ट और वस्त्र सज्जा की भी पढ़ाई की। वहीं उनकी मुलाक़ात भारतीय मूल के हिमांशु राय (Himanshu Rai) से हुई तो दोनों में प्रेम हो गया। दोनों फिल्म निर्माण को गहनता से समझने के लिए जर्मनी भी गए। दोनों ने 1929 में शादी कर भी कर ली।

देश के पहले फिल्म स्टूडियो बॉम्बे टाकीज़ को बनाने में रहा अहम योगदान

भारत लौटने पर इस दंपत्ति ने देश के पहले फिल्म स्टूडियो बॉम्बे टाकीज़ की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। इस बैनर से देविका (Devika Rani) ने 1936 में अशोक कुमार (Ashok Kumar) के साथ फिल्म ‘अछूत कन्या’ (Achhut Kannya) की तो एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में वह सर्वत्र छा गईं। उनकी इस फिल्म को पंडित नेहरू, सरदार पटेल, आंबेडकर और सरोजनी प्रीतम ने भी देखा। नेहरू तो इस फिल्म से उनके मुरीद हो गए। उधर बॉम्बे टाकीज़ (Bombay Talkies) से दिलीप कुमार (Dilip Kumar) जैसे कुछ सितारों को फिल्मों में लाने का श्रेय भी देविका (Devika Rani) को जाता है।

देविका (Devika Rani) ने 1943 तक करीब 15 फिल्मों में काम किया। जिनमें ‘अछूत कन्या’ (Achhut Kannya) तो कालजयी फिल्म बन गयी। इसके अलावा जन्मभूमि, सावित्री, जीवन नैया, निर्मला, वचन, और हमारी बात फिल्में भी अहम हैं।

रूसी चित्रकार स्वेतोंस्लाव से किया दूसरा विवाह

देविका (Devika Rani) ने हिमांशु राय के निधन के बाद रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रॉरिक से दूसरा विवाह करके फिल्म दुनिया को अलविदा कह दिया था। असल में हिमांशु राय के निधन के बाद देविका रानी (Devika Rani) ने बॉम्बे टाकीज़ (Bombay Talkies) को चलाने के भरसक प्रयास किए। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। बॉम्बे टाकीज़ (Bombay Talkies) से जुड़े अभिनेता अशोक कुमार (Ashok Kumar) और शशधर मुखर्जी जैसे दिग्गज ने एक नए स्टूडिओ फिल्मिस्तान का निर्माण कर लिया।

पदमश्री और फाल्के सम्मान पाने वाली पहली अभिनेत्री

बैंगलोर में रहते हुए 9 मार्च 1994 को उनका निधन हुआ तो राजकीय सम्मान से उनका अंतिम संस्कार किया गया। वह पदमश्री पाने वाली पहली फिल्म अभिनेत्री भी थीं। साथ ही देश में 1969 में जब फिल्मों के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) की स्थापना हुई तो पहला फाल्के सम्मान देविका रानी (Devika Rani) को ही मिला।

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