मुकेश का 100 वां जन्मदिन है आज, उनका यह गीत बन गया है विश्व का सबसे लोकप्रिय हिन्दी गीत

  • प्रदीप सरदाना

   वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

मुकेश, एक ऐसा नाम जिसके स्मरण मात्र से ही एक से एक खूबसूरत गीतों की याद हो आती है। आवारा हूँ, मेरा जूता है जापानी, सावन का महीना और जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे। राज कपूर जैसे दिग्गज फ़िल्मकार तो मुकेश को अपनी आवाज़ कहते थे। यही सुरीली, मनमोहक आवाज़,यही सदा बहार गायक मुकेश, यदि आज होते तो 100 साल के होते। आज महान गायक की 100वीं जयंती है। हालांकि आज मुकेश सशरीर हमारे साथ नहीं है। लेकिन उनके सुर सदा हमारे साथ हैं। उनका परिवार और प्रशंसक आज दुनिया भर में उनका 100 वां जन्म दिन, अपने ढंग से, जश्न के साथ मना रहे हैं।

हालांकि हिसार से दिल्ली आकर बसे जोरावार चंद माथुर और चाँद रानी के यहाँ आज से 100 बरस पहले, 22 जुलाई 1923 को जब मुकेश का जन्म हुआ तो परिवार के लिए यह कोई बड़ा जश्न नहीं था। क्योंकि मुकेश से पहले इस परिवार में उनके पाँच भाई बहन पहले ही आ चुके थे।

मुकेश का नंबर परिवार के बच्चों में छठा था। मुकेश के बाद भी इस माथुर परिवार में चार और बच्चों ने जन्म लिया। लेकिन तब कौन जानता था कि परिवार के 10 बच्चों में मुकेश अपना ही नहीं, पूरे खानदान का नाम ऐसा रोशन करेगा कि उन्हें सदा याद किया जाता रहेगा।

हालांकि आगामी 27 अगस्त को सदाबहार पार्श्व गायक मुकेश को दुनिया को अलविदा कहे 47 बरस हो रहे हैं। लेकिन उनकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है। उनके गाये गीत आज भी दिल-ओ-दिमाग में गहराइयों तक उतरे हुए हैं। नयी पीढ़ी के लोग भी मुकेश के गीतों को जिस तरह पसंद करते हैं उससे वह देश के चुनिन्दा सदाबहार पार्श्व गायकों में आते हैं। उन्हें अपने गीत ‘कई बार यूं ही देखा है’ के लिए जहां सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। वहाँ कभी कभी मेरे दिल में, जय बोलो बेईमान की, सबसे बड़ा नादान वही है और सब कुछ सीखा हमने, गीतों के लिए 4 बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।

यूं अपने 35 वर्षों के करियर में मुकेश ने 525 फिल्मों में करीब 900 गीत गाये। जीना यहाँ मरना यहाँ, जाने कहाँ गए वो दिन, सुहानी चाँदनी रातें, एक दिन बिक जाएगा, दोस्त दोस्त न रहा और चाँद सी महबूबा हो मेरी जैसे कितने ही मुकेश के गीत आज भी खूब लोकप्रिय हैं।

यूं तो हम हमेशा मुकेश के गीतों को सुनते-गुनगुनाते और गाते रहते हैं। लेकिन उनके जन्म दिवस और पुण्य तिथि पर तो उन्हें विशेष रूप से याद करते हैं। इधर अब यह बरस मुकेश के लिए और भी खास है। क्योंकि यह मुकेश का जन्म शताब्दी वर्ष है। इसलिए इस बार उन्हें सालभर बारं बार और शिद्दत से याद किया जाता रहेगा।

मुकेश चंद माथुर दसवीं पास करने के बाद दिल्ली में ही एक सरकारी नौकरी करने लगे थे। लेकिन उनकी बहन सुंदर प्यारी के विवाह समारोह में, जब दिग्गज अभिनेता मोती लाल ने मुकेश में गायन की अच्छी प्रतिभा देखी तो उन्होंने मुकेश को मुंबई बुला लिया। सिर्फ 18 साल की उम्र में मुकेश को फिल्मों में गायन के साथ अभिनय के मौके मिलने लगे थे। लेकिन मुकेश को पहचान मिली,1945 में आई फिल्म ‘पहली नज़र’ के गीत ‘दिल जलता है तो जलने दो’ से।

इसके बाद 1946 में अपने 23 वें जन्म दिन पर मुकेश ने सरल त्रिवेदी से शादी भी कर ली। उधर मुकेश को गायक के रूप में बड़ी लोकप्रियता, राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’ (1949) के गानों से मिली। इसी के बाद वह राज कपूर के गीतों की स्थायी आवाज़ बन गए, उनके पक्के दोस्त बन गए। मुकेश का जब अपनी एक संगीत यात्रा के दौरान अमेरिका के डेट्रायट में जब 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ तो राज कपूर ने कहा था-‘’मेरी तो आवाज़ ही चली गयी।‘’

बता दें सन 1951 में प्रदर्शित राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ में मुकेश का गाया शीर्षक गीत ‘आवारा हूँ’ देश का ऐसा पहला गीत था, जिसने देश की सरहदें पार करते हुए दुनिया के कई देशों में धूम मचा दी थी। रूस में तो यह गीत आज भी इतना लोकप्रिय है कि वहाँ पहुंचे भारतीय पर्यटकों को देख रूस के कितने ही नागरिक –‘आवारा हूँ, आवारा हूँ’ करने लगते हैं।

मुकेश के पुत्र और जाने माने गायक नितिन मुकेश से जब मैंने ‘आवारा हूँ’’ गीत को लेकर बात की तो उन्होने बताया-‘’आवारा हूँ, विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी गीत है। रूस, चीन, तुर्की, उज्बेकिस्तान और ग्रीस सहित 15 ऐसे देश हैं, जिन्होंने अपनी-अपनी भाषा में इस गीत का अनुवाद तक किया है। आज भी उन सब देशों में यह उतने ही चाव से गाया और सुना जाता है, जितना यह बरसों पहले सुना जाता था।‘’

लता मंगेशकर से खरीदी थी मुकेश ने अपनी पहली कार

मुकेश जितने अच्छे गायक थे उतने ही अच्छे इंसान भी थे। उनकी सादगी भी देखते ही बनती थी। काफी ख्याति पाने के बाद भी उनके पास एक ही कार थी। यदि वह कार कभी खराब हो जाती या परिवार के किसी और सदस्य को जरूरत होती तो मुकेश बस से सफर करने में ज़रा भी संकोच नहीं करते थे। हालांकि लोग उन्हें बस में देख चौंकते और कहते –‘’ओह मुकेश जी आप बस में।‘’ लेकिन मुकेश इस सब पर कोई प्रतिक्रिया देने की जगह यह सुन बस मुस्कुराकर रह जाते थे।

मुकेश जी उस दौर में कौनसी कार इस्तेमाल करते थे? यह जब मैंने  नितिन मुकेश से पूछा, तो उनका जवाब था-‘’आपको सही बात बताऊँ तो वह बेहद सादगी पसंद थे।अपने जीवन की पहली कार उन्होंने लता दीदी से खरीदी थी। वह हिलमैन कार थी। उसके बाद उन्होंने फिएट कार ली और फिर अम्बेस्ड़र।‘’

 

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