उपचुनाव ने राज्य में राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी

उत्तर प्रदेश:  विधानसभा सीटों के उपचुनाव ने राज्य में राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। वैसे तो इन 3 सीटों पर चुनाव नतीजों से किसी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन यह उपचुनाव ऐसे दिग्गज नेताओं के क्षेत्रों में हो रहा है जिनका अपना राजनैतिक कद काफी ऊंचा रहा है। इसमें से एक दिवंगत समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी लोकसभा सीट पर चुनाव होना है, आजम खान को एक आपराधिक मामले में 3 साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई थी।

बात मैनपुरी लोकसभा सीट के चुनाव की की जाए तो यहां सपा-भाजपा के बीच मुकाबला आमने सामने का है। मैनपुरी लोकसभा चुनाव में चाचा-भतीजे एक साथ बीजेपी प्रत्याशी के लिए चुनौती दे रहे हैं। दोनों के बीच की राजनीतिक दूरियां काफी घट गई हैं। सपा ने यहां से मुलायम की बड़ी बहू डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया है तो भारतीय जनता पार्टी ने मुलायम सिंह के पुराने वफादार रहे रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है। मैनपुरी में यादव और शाक्य वोटरो का अच्छा खासा दबदबा है। भाजपा लगातार यहां पर अपनी राजनीतिक स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है। मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उप चुनाव हो रहा है। यहां से लगातार मुलायम या फिर उनके परिवार के सदस्य चुनाव जीतते रहे हैं।

रामपुर में 10 बार के विधायक आजम खान की विधानसभा सदस्यता छिनने के बाद विधानसभा उपचुनाव हो रहा है। आजम खान की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी हुई है। सपा ने इस बार यहां से आजम खान के करीबी नेता को मैदान में उतारा है। भाजपा की तरफ से आकाश सक्सेना मैदान में हैं। आकाश ने ही जौहर विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार का मामला उछाला था। वहीं, खतौली में भाजपा विधायक विक्रम सैनी के खिलाफ कोर्ट की ओर से सजा का ऐलान होने के बाद उप चुनाव कराए जा रहे हैं। आजम और विक्रम सैनी को दो या दो साल से अधिक की सजा हुई और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत उनकी सदस्यता चली गई। चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लग गया। ऐसे में भाजपा खतौली को दोबारा अपने कब्जे में करने की कोशिश कर रही है। वहीं, मैनपुरी और रामपुर में सपा के किले को ढहाने का प्रयास भी हो रहा है। ऐसे में इन सीटों का समीकरण काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।

मैनपुरी लोकसभा सीट पर यादव जिस तरफ जाएंगे, जीत उसी की होगी। यहां से सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनावी मैदान में हैं। वहीं, भाजपा ने रघुराज शाक्य पर दांव खेल दिया है। उम्मीदवारों की घोषणा ने मैनपुरी से लेकर लखनऊ तक की राजनीति को गरमा दिया है। समाजवादी पार्टी से नाराज चल रहे शिवपाल यादव के कभी करीबी रहे रघुराज शाक्य को टिकट देकर भाजपा ने एक साथ कई तीर छोड़े। रघुराज शाक्य को इटावा से सांसद बनाने वाले मुलायम सिंह यादव थे। ऐसे में उन्हें मुलायम का करीबी बताया जाता रहा। लेकिन, वर्ष 2017 में जब शिवपाल सपा से अलग हुए तो रघुराज उनके साथ हो गए। फिर शाक्य और यादव वोट बैंक की राजनीति की। लोकसभा क्षेत्र के 17 लाख मतदाताओं में एक ही जाति की बात करें तो करीब 4.30 लाख यादव मतदाता हैं। इसके बाद दूसरा नंबर 2.90 लाख शाक्य मतदाताओं का आता है। इसके बाद सभी दलित जातियों के वोट भी करीब 1.80 लाख हैं। 2 लाख से अधिक क्षत्रिय और एक लाख 20 हजार से अधिक ब्राह्मण वोटों की भी संख्या है। 60 हजार मुस्लिम, 70 हजार वैश्य, एक लाख से अधिक लोधी मतदाता भी चुनाव को प्रभावित करते हैं। ऐसे में अगर यादव वोट एक साथ आ जाए तो फिर अन्य उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही कारण है कि भाजपा के उम्मीदवार घोषित होने से पहले मैनपुरी विधायक और मंत्री जयवीर सिंह ने शिवपाल यादव की रणनीति पर नजर होने की बात कही थी। मैनपुरी में इस बार 13 उम्मीदवार चुनावी मुकाबले में उतरे थे।

उपचुनाव में मुख्य मुकाबला सपा प्रत्याशी डिंपल यादव और भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य में है। मैनपुरी जहां सपा का गढ़ है तो वहीं राज्य और केंद्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी भी इस सीट को हर कीमत पर पाना चाहती है। ऐसे में अन्य प्रत्याशियों व बिखरे हुए मतदाताओं की भूमिका और भी अहम हो जाती है। ऐसे में मुलायम सिंह यादव की विरासत डिंपल यादव को सौंपी गयी है। उपचुनाव की राजनीति में डिंपल यादव बढ़त बनाती दिख रही हैं। हालांकि, भाजपा के रघुराज शाक्य अपने शाक्य वोट बैंक के साथ-साथ दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने में कामयाब हो गए तो फिर डिंपल यादव की मुसीबत बढ़ा सकते हैं। अखिलेश और शिवपाल के साथ आने के बाद भाजपा अपनी राजनीति को गरमाने की कोशिश कर सकती है। इन सीटों पर 5 दिसंबर को मतदान होगा और 8 दिसंबर को मतगणना होगी।

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