दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक-2023 लोकसभा में हुआ पारित, अमित शाह बोले विपक्षी दलों के गठबंधन के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फिर सत्ता में आएंगे

लोकसभा ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक-2023 पारित कर दिया है। इस विधेयक में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम 1991 में संशोधन का प्रस्ताव है। यह विधेयक केंद्र सरकार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यों, कार्यकाल और सेवा संबंधी अन्य शर्तों के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है।
इस विधेयक में राष्ट्रीय राजधानी लोकसेवा प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान है। इस प्राधिकरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के प्रधान गृह सचिव शामिल होंगे। यह प्राधिकरण अधिकारियों के स्थानांतरण, नियुक्ति और अनुशासनात्मक कार्रवाई के संबंध में दिल्ली के उपराज्यपाल को सिफारिशें देगा। इस संबंध में केंद्र सरकार इस वर्ष मई में अध्यादेश लेकर आई थी।
विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि विपक्षी सदस्यों ने लंबे समय के बाद बहस में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा अधिवेशन में अब तक नौ विधेयक पारित किए जा चुके हैं। श्री शाह ने कहा कि विपक्षी सदस्यों ने सिर्फ अपने नए बनाए गठबंधन को सुरक्षित रखने के लिए आज की बहस में हिस्सा लिया। उन्होंने विपक्षी दलों पर आरोप लगाया कि वे लोगों से जुड़ें मामलों की नहीं बल्कि, अपने गठबंधन को बचाने की परवाह कर रहे हैं।
गृहमंत्री ने कहा कि विपक्षी दलों के गठबंधन के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फिर सत्ता में आएंगे। श्री शाह ने इस बात पर जोर दिया कि यह विधेयक संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी अपने फैसले में कहा था कि केंद्र सरकार दिल्ली से संबंधित कानून बना सकती हैं।
उन्होंने कहा कि संविधान संसद को राष्ट्रीय राजधानी के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है। गृहमंत्री ने कहा कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सत्ता में रह चुकी हैं, लेकिन अधिकार छीनने का इन सरकारों का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि जो भी सरकार बनी उसका उद्देश्य लोगों की सेवा करना था।
आम आदमी की पार्टी का नाम लिए बिना अमित शाह ने कहा कि 2015 में दिल्ली में सत्ता में आई पार्टी का एकमात्र उद्देश्य लड़ना था, दिल्ली के लोगों की सेवा करना नहीं। अमित शाह ने कहा कि मुद्दा स्थानांतरण और नियुक्ति का अधिकार लेने का नहीं था बल्कि राष्ट्रीय राजधानी में हो रहे भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए सर्तकता विभाग को अपने नियंत्रण में रखना था।
गृहमंत्री ने इस बात को भी दोहराया कि सरकार मणिपुर पर विस्तृत बहस के लिए तैयार है। इससे पहले, बहस की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को देश के संघीय ढांचे के विरूद्ध बताया। उन्होंने इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को इसे लाने की क्या जल्दी थी। उनका कहना था कि दूसरे राज्यों के अधिकार को भी कम करने के लिए ऐसे प्रयास किए जा सकते हैं।
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बैनर्जी ने कहा कि यह विधेयक संघीय ढांचे पर प्रहार है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य केंद्र के अधीनस्थ नहीं हैं। बैनर्जी ने कहा कि सरकार को जनादेश पर ध्यान देना चाहिए। दिल्ली की जनता को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि उन्हें किस तरह शासित किया जाए।
जनता दल यूनाइटेड के राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह ने विधेयक का विरोध किया और आरोप लगाया कि केंद्र दिल्ली पर अप्रत्यक्ष रूप से शासन करने की कोशिश कर रहा है।
भाजपा के रमेश बिधूडी ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अनेक वायदे किए हैं जो अधूरे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आप भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। वाईएसआरसीपी के पीवी मिधुन रेड्डी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य उपराज्यपाल की शक्तियों को बहाल करना है।
बीजू जनता दल के पिनाकी मिश्रा ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि संसद को दिल्ली के बारे में कानून बनाने का अधिकार है। एनसीपी की सुप्रिया सुले ने विधेयक को अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक बताया। बहस में हिस्सा लेने वालों में कांग्रेस के शशि थरूर, भाजपा की मीनाक्षी लेखी, शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल और आरएसपी के एन. के. प्रेमचंद्रन शामिल थे।