‘आदिपुरुष’ से लगी है करोड़ों की भावनाओं को ठेस है
राम, हनुमान और रावण का यह कैसा स्वरूप
प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
इन दिनों फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर जो विवाद उत्पन्न हुए हैं, वे ऐसे विवाद हैं जो दूर तलक जाएँगे। जब तक इस फिल्म का टीजर नहीं आया था तब तक आम जनमानस बेहद खुश था। क्योंकि इस फिल्म को महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायण’ पर आधारित बताया जा रहा था। दूसरा एक लंबे अंतराल से भगवान राम पर कोई हिन्दी फिल्म नहीं आई। इसीलिए सभी खुश थे कि अब उन्हें उनके आराध्य भगवान राम पर कोई भव्य और बड़ी फिल्म देखने को मिल सकेगी। लेकिन ‘आदिपुरुष’ का 90 सेकिंड का टीजर देखकर माथा ठनक गया।
सदियों से भगवान राम, माता जानकी, हनुमान और रावण जैसे चरित्र देश-दुनिया के करोड़ों लोगों के मन-मस्तिक में ऐसे बसे हैं कि उनका नाम आते ही उनकी छवि पल भर में नयनों में उतर आती है। लेकिन ‘आदिपुरुष’ के टीजर में हनुमान जी और रावण की ही नहीं भगवान राम का स्वरूप भी ऐसा दिखाया है कि मन आक्रोशित हो उठता है। इसीलिए जिस सच्चे हिन्दू, सच्चे भक्त ने यह टीजर देखा वह आगबबूला हो बैठा। आखिर एक फिल्म निर्माता ने इतना दुस्साहस कैसे किया कि हमारे आराध्य को मन चाहा एक ऐसा विकराल रूप दे दिया, जिसकी कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की।
इस टीजर में हनुमान जी को जिस तरह का स्वरूप और जो वेशभूषा दी है वह किसी भी धार्मिक ग्रंथ या पुराण में अंकित नहीं है। ना ही भगवान राम के स्वरूप का कभी ऐसा चित्रण हुआ है। रावण को अवश्य हम एक अत्याचारी राजा के रूप में जानते हैं। जिसने माता जानकी का हरण किया। भगवान राम से युद्द किया। लेकिन सभी जानते हैं अपने कुछ दोषों और गलत आचरण के बावजूद वह भगवान शिव का परम भक्त था। शास्त्रों–वेदों का ज्ञाता था, एक विदद्वान था। रावण ने स्वयं शिव तांडव स्त्रोत आदि की रचना की। इसीलिए आज भी देश-विदेश में कितने ही स्थानों पर रावण की भी पूजा की जाती है।लेकिन निर्देशक ओम राऊत ने अपनी फिल्म ‘आदिपुरुष’ में हनुमान और रावण दोनों के स्वरूप का इस्लामिकरण कर दिया है। इनका स्वरूप हनुमान और रावण की नहीं खिलजी और चंगेज़ खान जैसा लगता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम, सहज, विनम्र राम भी इस फिल्म में कहीं से भी राम नहीं लगते। इसी कारण सभी राम-हनुमान भक्तों के दिलों को इतनी ठेस पहुंची है कि वे विचलित हो उठे हैं। आखिर करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ कोई खिलवाड़ कैसे कर सकता है।
दुख की बात यह है कि इस फिल्म का निर्माण टी सीरीज के भूषण कुमार द्वारा हो रहा है। जिनके पिता गुलशन कुमार स्वयं एक बड़े शिव भक्त थे। इसके निर्देशक ओम राऊत हाल ही में अपनी फिल्म ‘तान्हा जी’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। फिर इस फिल्म के संवाद लेखक भी वह मनोज मुंतसिर हैं जो स्वयं को हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा उपासक मानते नहीं थकते। साथ ही फिल्म में भगवान राम की भूमिका भी वह प्रभास कर रहे हैं। जिन्होंने फिल्म ‘बाहुबली’ से अपनी एक आदर्श छवि स्थापित की है।
फिर ‘आदिपुरुष’ के इस विवादित टीजर को 2 अक्तूबर को भगवान राम की जन्म भूमि अयोध्या में रिलीज किया गया। बाद में प्रभास ने दशहरे के दिन 5 अक्तूबर को दिल्ली मेँ भी जय श्रीराम का उद्घोष करके इस फिल्म को प्रचारित किया गया। इन लोगों ने सोचा यह सब नाटक करके वे अपने और अपनी फिल्म के प्रति लोगों का प्यार और सम्मान पा सकेंगे। इससे उन्होंने फिल्म में राम, हनुमान और रावण के स्वरूप की जो भद्दी संरचना की है, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
फिल्म से जुड़े कुछ लोग और उनके समर्थकों का मत है- ‘’लोग राम, हनुमान और रावण का एक ही स्वरूप बरसों से देखते आए हैं। इसलिए उनका नया स्वरूप दर्शकों के गले नहीं उतार रहा। जबकि भगवान राम को या हनुमान को किसने देखा है। सभी की अपनी अपनी कल्पना है। इसलिए हमने एक नए ढंग से उनके स्वरूप को रचा है।‘’
लेकिन ये लोग ये नहीं बता रहे कि उन्होंने राम-रावण में से किसी को देखा है ? उन्होंने हनुमान, रावण और राम के ऐसे स्वरूप किस आधार पर रचे हैं। ठीक है किसी ने उन्हें नहीं देखा। लेकिन वाल्मीकि रामायण जो उसी काल की मानी जाती है जब भगवान राम एक मानव के रूप में धरती पर मौजूद थे। बाद में गोस्वामी तुलसीदास ने भी ‘राम चरितमानस’ की रचना की। इसके अतिरिक्त विभिन्न भाषाओं में अलग अलग रामायण भी लिखी गयी। जिनकी चौपाइया, श्लोक हमारे सभी देवी देवताओं के स्वरूप का वरण बखूबी करते हैं। उसी के आधार पर सदियों से रामलीलाएं भी हो रही हैं। बरसों से फिल्में भी बन रही हैं। विभिन रामायण में तथ्यों और कथानक में थोड़ा बहुत फर्क जरूर मिल जाता है। लेकिन मूल कहानी एक ही है। साथ ही उनके रूप और वेषभूषा भी लगभग एक जैसी हैं। जो स्वरूप ‘आदिपुरुष’ में दिखाया है वह कहीं भी नहीं लिखा है।
भगवान राम, सीता जी हनुमान जी सभी को लेकर हमारे यहाँ सन 1913 यानि मूक फिल्मों के युग से फिल्में बन रही हैं। सवाक युग में भी राम और रामायण के विभिन्न पात्रों को लेकर 100 से अधिक फिल्में बन चुकी हैं। ‘सम्पूर्ण रामायण’ और ‘राम राज्य’ जैसी फिल्में तो ऐसी फिल्मों का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। ‘राम राज्य’ तो एक ऐसी फिल्म थी जिसे महात्मा गांधी ने भी देखा था। इतना ही नहीं जापान और थाईलैंड सहित कितने ही देशों मेँ भी ‘रामायण’ को लेकर कितनी ही फिल्में और सीरियल बन चुके हैं।
हमारे यहाँ सन 1987 में सबसे पहले रामानन्द सागर ने ‘रामायण’ सीरियल बनाया। जिसका सबसे पहले दूरदर्शन पर प्रसारण हुआ और फिर दुनिया भर में कितनी ही जगह। भगवान राम हों या हनुमान, रावण सभी के वे स्वरूप सर्व मान्य रहे। वही रूप फिल्मों मेँ थे। लेकिन रावण खिलजी जैसा लगता था या हनुमान चंगेज़ खान जैसे यह कहीं भी नहीं है, कहीं भी। सिवाए ‘आदिपुरुष’ के। इसलिए यह फिल्म किसी भी कीमत पर दर्शकों को स्वीकार नहीं हो सकती।
फ़िल्मकारों का मत है कि ये तो टीजर है। फिल्म तो देखिये। लेकिन यहाँ सवाल यह है की दर्शकों को इस फिल्म के किसी संवाद और दृश्य पर तो अभी कोई आपत्ति है ही नहीं। क्योंकि यह फिल्म जनवरी 2023 में प्रदर्शित होगी। अभी तो आपत्ति सिर्फ और सिर्फ उनके स्वरूप को लेकर है। कहानी क्या रखी है, संवाद क्या हैं ये तो बाद में स्पष्ट होगा। कोई संवाद या दृश्य गलत हो तो उसे हटाया जा सकता है। लेकिन उनका स्वरूप तो पूरी फिल्म मेन यही रहेगा। और यह स्वरूप किसी भी तरह जनमानस को स्वीकार्य नहीं होगा।
इसलिए निर्माता को यह फिल्म रिलीज करनी है तो उसे ‘आदिपुरुष’ के इन चरित्रों को बदलकर उनकी फिर से नए ढंग से शूटिंग करनी होगी। या यह फिल्म बिना रिलीज हुए ठंडे बस्ते मेन चली जाएगी।
यूं अभी इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पास नहीं किया है। देखें वह क्या आपत्तियाँ दर्ज़ करता है। लेकिन सेंसर बोर्ड इसे पास कर भी देता है तो सरकार को किसी भी फिल्म को प्रतिबंधित करने अधिकार है। सेंसर आज चाहे किसी फिल्म को प्रतिबंध करने का अधिका नहीं रखता। उसके पास किसी फिल्म को प्रमाण पत्र देने या ना देने का अधिकार है। लेकिन राज्यों के मुख्यमंत्री या गृह मंत्री अपने राज्यों के शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी भी फिल्म को प्रतिबंधित कर सकते हैं। इसलिए ‘आदिपुरुष’ की इसी स्वरूप में रिलीज होने पर संभावनाएं ना के बराबर हैं। फिल्म की कहानी चाहे भगवान राम, हनुमान और सीता जी का गुणगान करे। लेकिन भगवान का स्वरूप भी सर्वमान्य होना चहये। वह स्वरूप जिसकी हम पूजा करते हैं।