Dev Anand: सुरैया से शादी ना होने पर जब देव आनंद फूट फूट कर रोये
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
दिलकश, सदाबहार और दिग्गज अभिनेता देव आनंद (Dev Anand) यदि आज होते तो 101 बरस के होते। लेकिन प्रकृति ने 13 बरस पहले ही उन्हें तब अपने पास बुला लिया था,जब वह 88 बरस के थे। लेकिन अपनी इस ज़िंदगी में देव आनंद (Dev Anand) इतना कुछ कर गए कि उन्हें सदियाँ याद करेंगी।
पंजाब के गुरदासपुर जिले में 26 सितंबर 1923 को जन्मे धर्मदेव पिशोरीमल आनंद नाम का किशोर, आँखों में बड़े सपने और जेब में 30 रुपए लेकर,लाहौर से मुंबई आया था तब उसकी उम्र 19 बरस थी। शुरू के तीन साल के कई संघर्ष के बाद 1946 में प्रदर्शित ‘हम एक हैं’ से देव आनंद (Dev Anand) बनकर उनकी फिल्मों में ऐसी शुरुआत हुई कि 65 बरसों के लंबे करियर, करीब 110 फिल्में करने और 88 की उम्र में पहुँचने पर भी देव साहब ज़रा नहीं थके थे।
लंदन में 3 दिसंबर 2011 को दुनिया से विदा होने से कुछ घंटे पहले तक उनके तन में वही ऊर्जा और मन में वही सपने थे जो 1940 के दशक में थे।
अशोक कुमार का स्टारडम देख फिल्मों में आए
बड़ी बात यह भी थी कि वह कभी संघर्ष, मेहनत, चुनौतियों और आलोचनाओं से घबराए नहीं। पिता अच्छे खासे वकील थे। बड़े दोनों बेटों मनमोहन और चेतन को उन्होंने उच्च शिक्षा दिलाई। लेकिन लाहौर गवरमेंट कॉलेज से अँग्रेजी साहित्य में बीए ऑनर्स करने के बाद, पिता की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी। जिससे वह इंग्लैंड नहीं जा पाये। तभी लाहौर में अपनी फिल्म ‘बंधन’ के जुबली समारोह में अशोक कुमार आए तो उनका स्टारडम देख देव आनंद (Dev Anand) ने भी फिल्मों में जाने का फैसला ले लिया।
देव मुंबई (Dev Anand) तो पहुँच गए। लेकिन उन्हें वहाँ की कृष्णा महल चाल में तीन अन्य लोगों के साथ रहना पड़ा। जहां सुबह नित्यकर्म के लिए बीसियों लोगों की कतार में लगना पड़ता था। लेकिन देव (Dev Anand) ने हिम्मत नहीं हारी। भाई चेतन आनंद (Dev Anand) भी तब मुंबई पहुँच चुके थे। देव (Dev Anand) ने स्टूडियो के चक्कर लगाने के साथ चेतन आनंद और बलराज साहनी के साथ रंगमंच भी करते रहे।
400 रुपए महीने पर मिली पहली फिल्म
जब पूना के प्रभात फिल्म्स के बाबूराव पई और निर्देशक पीएल संतोषी ने इन्हें ‘हम एक हैं’ के लिए 400 रुपए महीने पर लिया तो देव (Dev Anand) की खुशी का ठिकाना नहीं था। हालांकि उनकी यह पहली फिल्म चली नहीं। उधर जहां देश विभाजन हो गया। वहाँ बॉम्बे टाकीज़ ने अपनी फिल्म ‘जिद्दी’ के लिए कामिनी कौशल (Kamini Kaushal) के साथ देव (Dev Anand) को ले लिया। दिलचस्प यह था कि इस फिल्म को पहले अशोक कुमार करने वाले थे। जिनकी चमक देख देव उनका दीवाना हो गए थे।
‘जिद्दी’(1948) ऐसी सफल हुई कि उसके बाद देव आनंद (Dev Anand) ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देव (Dev Anand) के पास कई फिल्में आने से उनके पास दस हज़ार रुपए जमा हो गए। उन्होंने उन रुपयों से अपनी फिल्म निर्माण संस्था नवकेतन की स्थापना कर दी। नवकेतन के बैनर से इनकी पहली फिल्म चेतन आनंद के निर्देशन में ‘अफसर’ (1950) आई। लेकिन यह फिल्म चली नहीं। तब देव ने अपनी अगली फिल्म ‘बाज़ी’ के लिए दोस्त गुरुदत्त को निर्देशक बनाया। साथ ही कल्पना कार्तिक और गीता बाली को अपने साथ लिया। यह फिल्म भी हिट साबित हुई।
देव आनंद (Dev Anand) का तेजी से संवाद बोलने, झुकते झुकाते मस्त अंदाज़ में लंबे और टेढ़े मेढ़े पग भरने का अंदाज़ इतना लोकप्रिय हुआ कि देव फैशन आइकन बन गए। रंग बिरंगे कपड़े, गले में मफ़लर, सिर पर टोपी और कभी जैकेट और काला सूट पहनने का इनका रूप इतना लोकप्रिय हुआ कि युवतियाँ इनकी दीवानी हो गईं। देव रोमांटिक स्टार बन गए।
जब भाई चेतन के कंधे पर सिर रखकर फूट फूट कर रोये
हालांकि प्रेम के इस राजकुमार का स्टार बनने से पहले अपनी स्टार नायिका सुरैया (Suraiya) के साथ प्रेम हो गया। दोनों ने विद्या, जीत, अफसर सहित कुल 7 फिल्मों में काम किया। लेकिन दोनों कि शादी में सुरैया की नानी दीवार बन गईं। सुरैया से शादी ना होने पर देव (Dev Anand) अपने बड़े भाई चेतन आनंद (Chetan Anand) के कंधे पर सिर रख फूट फूट कर रोये।
उधर सुरैया भी देव के प्रेम में आजन्म अविवाहित रहीं। देव ने बाद में 1954 में अपनी नायिका कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। एक बेटे सुनील और बेटी देवीना को जन्म देने के बाद कल्पना ने फिल्मों और मीडिया दोनों से दूरी बना ली।
अभिनय, लेखन, निर्माण और निर्देशन एक साथ
देव आनंद (Dev Anand) बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने एक सदाबहार अभिनेता के रूप में तो अपनी विशिष्ट पहचान बनाई ही। साथ ही अपने नवकेतन बैनर से फिल्मों के निर्माण के साथ उनका लेखन और निर्देशन भी किया। उनके निर्देशन में बनी पहले फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ थी।
देव आनंद (Dev Anand) कि शानदार फिल्मों की बात करें तो टैक्सी ड्राईवर, हम दोनों, सीआईडी, काला पानी, तीन देवियाँ, तेरे घर के सामने, ज्वैल थीफ, जॉनी मेरा नाम, तेरे मेरे सपने, इश्क इश्क इश्क, हीरा पन्ना, गेंबलर और अमीर गरीब जैसे और भी कुछ नाम हैं।
इनकी फिल्मों की एक बड़ी विशेषता फिल्म का संगीत भी रही। देव साहब को संगीत की इतनी समझ थी कि वह एसडी बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकार की धुनों में खामियां निकाल उन्हें और बेहतर बनवा देते थे।
‘गाइड’ और ‘हरे रामा हरे कृष्णा’
उधर देव आनंद (Dev Anand) की दो फिल्में ऐसी हैं जो उनकी सभी फिल्मों पर भारी हैं। एक भाई विजय आनंद के निर्देशन में बनी ‘गाइड’(1965) जिसमें उनके साथ वहीदा रहमान थीं। अपने समय से आगे बनी यह फिल्म आज विश्व की कालजयी फिल्मों में शुमार है। दूसरी देव आनंद (Dev Anand) के निर्देशन में बनी ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ जिसमें उन्होंने ज़ीनत अमान को लेकर एक नया इतिहास रचा।
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