Shyam Benegal Death: अभी और फिल्म बनाना चाहते थे श्याम बेनेगल, 90 की उम्र में भी था गजब का जज़्बा – सार्थक सिनेमा के जनक का जाना
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
दिग्गज फ़िल्मकार श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) के निधन से स्तब्ध हूँ। अभी गत 14 दिसंबर को ही जब मैंने उनके 90 वें जन्मदिन पर बधाई दी थी, तो नहीं जानता था कि वह अब बस एक सप्ताह के मेहमान हैं। अभी दो दिन पहले मुंबई से लौटते हुए उनसे मिलने के लिए उन्हें कई बार फोन किया। लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला। जबकि वह हमेशा जवाब देते थे। बाद में पता लगा कि उनकी तबीयत ज्यादा खराब है। और अब उनके निधन के समाचार ने तो हिलाकर रख दिया है।
बरसों से हो रही थीं उनसे मुलाकातें
श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) को उनकी फिल्मों और उनके साथ मुलाकातों में मैंने जाना कि एक महान फ़िल्मकार ही नहीं दिलकश इंसान भी थे। इसी बरस उन्होंने फिल्मों में अपने 50 बरस पूरे किए थे। सन 1974 में आई फिल्म ‘अंकुर’ श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) की पहली हिन्दी फीचर फिल्म थी। हालांकि वृत्त चित्र और विज्ञापन फिल्मों का निर्माण तो वह ‘अंकुर’ से भी बहुत पहले से कर रहे थे।
पिछले 50 बरसों में श्याम जी (Shyam Benegal) ने एक से एक शानदार फिल्म बनाई। वह हिन्दी सिनेमा में कला फिल्मों के जनक थे। बरसों से पुराने अंदाज़ का जो सिनेमा चल रहा था बेनेगल ने उसे नयी सोच दी। जिसे सार्थक सिनेमा भी कहा गया। हमारे इस सिनेमा को देश के साथ विदेशों में भी खूब सराहा गया। इससे नए किस्म की कहानियों पर दिल की गहराइयों तक पहुँचने वाली फिल्में बनने लगीं।
कई शानदार फिल्मों के साथ सीरियल भी बनाए
श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) के बाद और भी कई फ़िल्मकार उनके पद चिह्नों पर चलते नज़र आए। श्याम बेनेगल ने ‘अंकुर’ से हिन्दी सिनेमा में जो अंकुर बोये आगे चलकर वे सिनेमा की नयी धारा बन गए। ‘अंकुर’ को तो सफलता मिली ही बाद में अपनी निशांत, मंथन, भूमिका, जुनून, कलयुग, आरोहण, मंडी, सुसमन, मम्मो, सरदारी बेगम, जुबैदा, वैल्कम टू सज्जनपुर और वेल डन अब्बा जैसी फिल्मों से, बेनेगल ने भारतीय सिनेमा को समृद्द कर दिया है। टीवी के लिए भी श्याम बेनेगल ने ‘भारत एक खोज’,‘यात्रा’ और संविधान’ जैसे अविस्मरणीय धारावाहिक बनाए।
खूब मिले सम्मान
श्याम बेनेगल को अपनी फिल्मों के लिए सम्मान भी खूब मिले। उन्हें जहां कुल 8 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। वहाँ 1980 में फिल्म ‘जुनून’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का एक फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। साथ ही भारत सरकार ने सन 2005 के लिए उन्हें भारतीय सिनेमा का शिखर पुरस्कार ‘दादा साहब फाल्के’भी प्रदान किया। इन पुरस्कारों के साथ सन 1976 में उन्हें पदमश्री और 1991 में पदमभूषण से भी सम्मानित किया गया। इन बड़े सम्मनों के साथ उन्हें एक और विशिष्ट सम्मान यह भी मिला कि राष्ट्रपति ने उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत भी किया।
मुजीबुर रहमान पर बनाई अंतिम फिल्म
‘मुजीब द मेकिंग ऑफ नेशन’ श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) की पिछली और अंतिम फिल्म ‘मुजिब-द मेकिंग ऑफ नेशन’ पिछले बरस ही 13 अक्तूबर को ही प्रदर्शित हुई थी। जो बंगला देश के संस्थापक और वहाँ के प्रथम राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की ज़िंदगी पर है। हालांकि अब बंगला देश में यकायक हालात एक दम बादल गए। इससे पहले वह भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के महान नेता महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस पर, ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’ और ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस-द फोरगॉटन हीरो’ जैसी फिल्में भी बना चुके हैं।
90 की उम्र में भी था गजब का जज्बा
अब श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) पिछले दो बरसों से गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे थे। लेकिन इस रोग और 90 की उम्र के बावजूद उनका जज्बा कम नहीं था। उनसे जब भी बात होती है उनका फिल्मों के प्रति जुनून और जोश साफ झलकता है। पिछले दिनों उनकी फिल्म ‘मंथन’ का 77 वें कान फिल्म समारोह के क्लासिक वर्ग में प्रदर्शन हुआ। मैंने ‘मंथन’ की इस उपलब्धि और उनके फिल्मों में 50 बरस होने पर जब बधाई दी तो वह खुश हुए थे। तब उन्होंने कहा था- ‘’अभी और भी काम करना चाहता हूँ।‘’ लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।