Shashi Kapoor Birthday: बहुत दिलचस्प है शशि कपूर की कहानी

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

दिलकश अभिनेता शशि कपूर (Shashi Kapoor) की आज 18 मार्च को 87 वीं जयंती है। शशि कपूर (Shashi Kapoor) एक ऐसे अभिनेता, फ़िल्मकार और रंगकर्मी थे, जिन्होंने अपने अभिनय  परिश्रम और अनुशासन से सफलता-लोकप्रियता की नयी बानगी लिख दी थी।

कई बरसों तक मैं जन्मदिन पर बधाई देता रहा

आज शशि (Shashi Kapoor) चाहे इस दुनिया में नहीं हैं। सात बरस पहले 4 दिसंबर 2017 को उनका निधन हो गया था। लेकिन अपनी फिल्मों और पृथ्वी थिएटर की बदौलत वह असंख्य दिलों में बसे हैं। मेरे साथ भी उनकी बहुत सी यादें, बहुत सी मुलाकातें हैं। कई बरसों तक मैं प्रति वर्ष उन्हें उनके जन्म दिन पर बधाई देता रहा। हालांकि अपने अंतिम वर्षों में शशि (Shashi Kapoor) इतने अस्वस्थ हो गए थे कि फोन पर बात करना उनके लिए मुश्किल सा हो गया था। लेकिन तब भी वह मुझसे जैसे तैसे थोड़ी सी बात करके मेरी शुभकामनायें स्वीकार कर लेते थे।

शशि कपूर को जब कोई फिल्मों में लेने को तैयार नहीं था

शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने फिल्म अभिनेता के रूप में तो लोकप्रियता पाई ही लेकिन एक फ़िल्मकार और रंगकर्मी के रूप में भी उन्होंने इतना काम किया, जो इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो चुका है। यूं शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने अपनी ज़िंदगी में सफलता और सम्मान के शिखर को तो छुआ। लेकिन उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया कि उन्हें कोई अपनी फिल्मों में लेने को तैयार नहीं था।

फिल्म ‘आग’ से रखा सिनेमा में कदम

हालांकि शशि (Shashi Kapoor) को भाई राज कपूर (Raj Kapoor) ने 1948 में अपनी पहली फिल्म ‘आग’ (Aag) से बाल कलाकार के रूप में प्रस्तुत किया था। बाद में ‘धर्मपुत्र’ और फिर फिल्म ‘यह दिल किसको दूँ’ से शशि (Shashi Kapoor) ने नायक के रूप में अपनी पारी शुरू की। लेकिन फिल्में सफल न होने के कारण शशि को उन फिल्मों से भी निकाल दिया गया, जिनकी वह शूटिंग शुरू कर चुके थे।

कोई हीरोइन साथ काम करने को तैयार नहीं थी

शशि कपूर (Shashi Kapoor) बताते थे—‘’तब मेरी हालत यह हो गयी कि यदि कोई मुझ पर तरस खाकर मेरे साथ फिल्म शुरू करने की हिम्मत भी करता तो कोई हीरोइन मेरे साथ काम करने को तैयार नहीं होती। लेकिन तब नंदा एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने मेरे साथ ‘जब जब फूल खिले’ में काम करना मंजूर कर लिया। संयोग से मेरी वह फिल्म सुपर हिट हो गयी। उसके बाद जिन निर्माताओं ने मुझे अपनी फिल्मों से निकाल दिया था वे भी मुझे अपनी फिल्मों में लेने के लिए उतावले हो गए। तब मुझे अहसास हुआ कि वक्त बहुत बड़ी चीज है।‘’

‘जब जब फूल खिले’ की सफलता से बदली किस्मत

‘जब जब फूल खिले’ की सफलता ने शशि कपूर (Shashi Kapoor) की ऐसी किस्मत बदली कि शशि कपूर के पास एक समय में करीब 40 फ़िल्में हो गयीं। ऐसे में शशि कपूर ने फ़िल्मी दुनिया में एक नया प्रचलन शुरू किया शिफ्ट सिस्टम का। शशि कपूर ने अपने एक दिन के काम के घंटे दो दो घंटे की शिफ्ट के हिसाब से  निश्चित कर दिये। इससे वह एक दिन में एक सेट से दूसरे सेट पर जाते और झट से एक फिल्म की दो घंटे शूटिंग करके दूसरी फिल्म के लिए चले जाते। इससे शशि कपूर फिल्म जगत के सबसे व्यस्त अभिनेता बन गए और उन्हें बिजी कपूर कहा जाने लगा।

मेरे पास माँ है’ एक अमर संवाद बन गया

अपने करियर में शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने करीब 150 फिल्मों में काम किया। जिनमें उनकी कन्यादान, वक्त, अभिनेत्री, शर्मीली, आ गले लग जा, चोर मचाये शोर, हसीना मान जाएगी, त्रिशूल, सुहाग, काला पत्थर जैसी फिल्में हैं तो ‘दीवार’ जैसी वह फिल्म भी जिसमें इनके द्वारा बोला गया संवाद- ‘मेरे पास माँ है’ एक अमर संवाद बन गया।

राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ दादा साहब फाल्के भी मिला

फिल्म ‘नयी दिल्ली टाइम्स’ के लिए तो शशि (Shashi Kapoor) को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। साथ ही फिल्म संसार के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के’ से भी उन्हें सम्मानित किया गया। वह ऐसे पहले भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने विदेशी फिल्मों में भी अपने नाम और काम का डंका बजाया।

थिएटर से खास लगाव था

उधर अपने पिता के साथ बचपन से ही उनके घुमंतू पृथ्वी थिएटर में काम करते हुए शशि कपूर (Shashi Kapoor) को थिएटर से खास लगाव था। इसी दौरान कोलकाता में शशि (Shashi Kapoor) की ब्रिटेन की थिएटर कंपनी ‘शेक्सपियरेना’ के मालिक की बेटी जेनिफर कैंडल से मुलाक़ात हुई। शशि ने देखा कि थिएटर दोनों का प्यार है तो दोनों में प्रेम हो गया और जुलाई 1958 में दोनों ने शादी कर ली।

‘पृथ्वी थिएटर’ मुंबई के रंगमंच की धड़कन बन चुका है

शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने अपने बैनर से कुल 8 फिल्में बनायीं। जिनमें ’36 चौरंगी लेन’ और ‘जुनून’ काफी सराही गईं। शशि ने फिल्मों से जो कमाया वह थिएटर में लगा दिया। अपने पिता की स्मृति में शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने मुंबई में 1978 में जिस ‘पृथ्वी थिएटर’ का निर्माण किया, आज वह मुंबई के रंगमंच की धड़कन बन चुका है।

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